शनिवार, 2 नवंबर 2013

दिया, खुद अपनी शहादत का, जलाया जाए.

 कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं 



तरह  तरह के बिक रहे  हैं चिरागान  यहाँ.
जिन्हें  खरीदने  को  लोग  परेशान  यहाँ.
 कोई चिराग ना मिला कि जो दिल खुश कर दे.  
सदी की स्याह सियासत में  रोशनी  भर दे.

तो आओ दोस्त, सियासत को जगाया जाए 
दिया, खुद अपनी शहादत का,  जलाया जाए.

Aravind Pandey 

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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

खिले चाँद की दीद मुबारक !

ॐ आमीन।


 परमानन्द - मयी   यह    ईद  !
शुभ हो, सब को, शशि की दीद !

सब को हो यह  ईद मुबारक !
खिले चाँद  की दीद मुबारक ! 

एक  मास की  ईश-भक्ति  का  पुण्य    हुआ  साकार 
नील - गगन  का  किया काल ने  शशि से शुभ श्रृंगार 
शिव-ललाट की चन्द्र-रश्मि, झरती,जल बन,अम्बर से 
ईद  और  श्रावण  में  देखो ,  सौम्य सुधा-रस   छलके    


अरविंद पाण्डेय 
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शनिवार, 6 जुलाई 2013

मौसिकी की मय

मौसिकी की मय 


अरविंद पाण्डेय
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वर्ण-विहीन समाज व्यवस्था




भविष्य में चीन द्वारा भारत में अवैध रूप से घुसकर बनाए गए और न हटाए गए तम्बुओं को ये लोग अकेले अकेले हटा पायेगे..???

...........आजकल फेसबुक और अन्य सोशल साइट्स पर अनेक प्रोफाइल , पेज या ग्रुप में अपनी अपनी जाति की उत्कृष्टता , सर्वोच्चता आदि की बाते प्रस्तुत की जा रही हैं............. यह सत्य भी है कि प्रत्येक जाति या वर्ण की अपनी विशिष्टताएं होती हैं और समाज के सर्वांगीण विकास में उनका विशिष्ट उपयोग भी है ............. किन्तु, इस देश को अगर महाशक्ति बनाना है तब जाति-वाद, वर्ण-वाद समाप्त करना होगा................ 

...........अगर हम इतिहास और अन्य प्रमाणों के आधार पर देखें तो पायेगे कि ब्राह्मण , ब्रह्मर्षि. कायस्थ या क्षत्रिय -------- ये चार नहीं बल्कि केवल २ वर्ण हैं ........ और इसीतरह पिछड़े-वर्ग और अनुसूचित जाति-जनजातियों में परिगणित लगभग २०० जातियां वास्तव में २०० नहीं अपितु केवल २ वर्ण हैं.................इसलिए अब, हम भारत के लोग ३०० जातियों में विभाजित न होकर, अगर सिर्फ एक ''वर्ण'' बन जायं -- तो देश का हित होगा......... 

..........ब्राह्मण , ब्रह्मर्षि या कायस्थ, क्षत्रिय आदि के विशिष्ट पेज और ग्रुप फेसबुक पर उपलब्ध हैं ............. जिनके अवलोकन से स्पष्ट होता है कि उसके लिखने वाले व्यक्तियों के अपने कुछ सामूहिक लक्ष्य हैं.... 


............मगर क्या वे लक्ष्य , अकेले प्राप्त हो सकेगे.....??? यदि लोकतंत्र में संख्या का अपना विशिष्ट व्यावहारिक महत्त्व रखती है तब क्या अकेले - अकेले ये तीनो स्वघोषित लक्ष्य प्राप्त कर पायेगे...??? ............ और क्या इन वर्गों के के नौजवानों की रोज़गार की समस्या का समाधान अकेले चलने से हो पायेगा...?? 


............. क्या इन लेखों को लिखने वालों को पता है कि उनकी अलग-अलग जनसंख्या क्या है ???? 


.............. और अगर एक काफिले में आ जांय तब उनकी जनसंख्या क्या होगी ...?? 


.......और अगर आज की व्यवस्था में जनसंख्या का कोई विशिष्ट महत्त्व है तब क्या एक काफिले में चलना श्रेयस्कर नहीं है .??? 



अरविंद पाण्डेय
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शुक्रवार, 31 मई 2013

ऐसा दीप कहाँ से लाऊं..



ॐ : आमीन 

तुम ही पुष्पों में परिमल बन महक रहे हो,
तुम्हें कौन सा कुसुम चढाऊं..
जिसकी सुरभि न तुम्हें मिली हो,
ऐसा फूल कहाँ से लाऊं.

तुम भास्कर बन सकल जगत को भासित करते,
तुम्हें कौन सा दीप दिखाऊं,
जो तुमको प्रकाश से भर दे ,
ऐसा दीप कहाँ से लाऊं..

अरविंद पाण्डेय
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बुधवार, 15 मई 2013

बहुत कुर्बानियां दी हैं हमारे कुनबे ने...




हर इक शहीद ने दिया जो शहादत देकर,
वही पैगाम मैं ज़िंदा ही देने आया हूँ. 
बहुत कुर्बानियां दी हैं हमारे कुनबे ने, 
मैं इस दफा उन्हीं को जिब्ह करने आया हूँ. 


ये पंक्तियाँ वास्तव में क्रुद्ध-कवि श्री Desh Ratna की एक कविता के पढने के बाद निकलीं...उन्हें धन्यवाद .......... 

.......अब बलिदान के संकल्प का नहीं अपितु राष्ट्र-शत्रुओं की बलि चढाने के संकल्प लेने का युग है............


अरविंद पाण्डेय
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सोमवार, 13 मई 2013

अमृत-विंदु खिचता है ..




श्रीकृष्णार्पणमस्तु 

धरती के अन्तस्तल से जब अमृत-विंदु खिचता है 
ताप, तरणि का संश्लेषित,जब पादप से मिलता है 
मानव  की  निःश्वास-वायु  से  होता  परिसंपुष्ट ,
प्रकृति-नटी के इतने श्रम के बाद पुष्प खिलता है .



अरविंद पाण्डेय
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शनिवार, 11 मई 2013

स्वर भी तुम, अक्षर भी तुम





कृष्णं वन्दे 

तुम स्वर में उतर पड़े हो,
मैं चुप कैसे रह जांऊ .
स्वर भी तुम, अक्षर भी तुम,
मैं तुम्हें लिखूं फिर गाऊं..



अरविंद पाण्डेय
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बुधवार, 1 मई 2013

श्रम से शिव का अभिषेक करें.





मैं श्रमिक ईश के उपवन का, 
मैं ही मादक मधु, मधुवन का. 
मेरे ही श्रम से महक रहा , 
कोना कोना नंदन-वन का. 

श्रम से संकल्प संवरता है, 
श्रम से सौन्दर्य निखरता है. 
जो श्रमिक वही फलदार वृक्ष सा 
मधुर स्वादु फल, फलता है. 


श्रम से शिव का अभिषेक करें. 
आओ श्रम से संताप हरें . 

अरविंद पाण्डेय 
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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

जय जय श्री हनुमान..

हरिः ॐ तत्सत्महाभटचक्रवर्तीरामदूताय नमः 

जब संकट आए कोई , हों व्याकुल मन प्राण.
शत्रु शक्तिशाली करे मारक शर - संधान . 
स्मरण करे एकाग्र हो , करे बस यही गान -
रामदूत रक्षा करो , जय जय श्री हनुमान. 

© अरविंद पाण्डेय..

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

श्री श्री दुर्गा बत्तीस नामावली : स्वर : अरविंद पाण्डेय

श्री श्री दुर्गा बत्तीस नामावली
अरविंद पाण्डेय 
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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

प्रथमं शैलपुत्री च !

ॐ नमश्चण्डिकायै 
प्रथमं शैलपुत्री च !
.......... आप सभी मित्रों को नवरात्र महापर्व के लिए मंगल कामनाएँ ! ...........
...........माँ विंध्यवासिनी का यह  भजन आप सभी के लिए ............

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तुम कर दो अब कल्याण,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल-रानी
तुमने ही तो कृष्ण -रूप में ब्रज में रास रचाया
युगों युगों तक भक्त जनों के मन की प्यास बुझाया
शिव ही तो राधा बनकर ब्रज की धरती पर आए
इस प्यासी धरती पर मीठी रसधारा बरसाए

हम रस के प्यासे लोग, न चाहे भोग, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी

सारे ज्ञानी-जन कहते हैं तुम करुणा की सागर
फ़िर कैसे संसार बना है दुःख की जलती गागर
तुम हो स्वयं शक्ति जगजननी फ़िर ये कैसी माया
इस धरती पर पाप कहाँ से किसने है फैलाया

हे माता हर लो पीर, बंधाओ धीर ,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी


बिना तुम्हारे शिव शंकर भी शव जैसे हो जाते
तुमसे मिलकर शिव इस जग को पल भर में उपजाते
तुमने स्वयं कालिका बनाकर मधु-कैटभ को मारा
दुःख में डूबे ब्रह्मा जी को तुमनें स्वयं उबारा

हम आए तेरे द्वार, छोड़ संसार, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी
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यह गीत मेरे द्वारा लिखा गया और इसकी धुन तैयार की गयी । वीनस म्यूजिक कंपनी द्वारा इसे अन्य भक्ति गीतों के साथ २००३ में एक एलबम के रूप में रिलीज़ किया गया ।
इस गीत में शिव के श्री राधा रानी के रूप में अवतार लेने तथा महाकालिका के श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेने के रहस्य का वर्णन है ।
अरविंद पाण्डेय 
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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

मै पूर्ण, शून्य, सर्वत्र आज ..



नभ की अनंतता सिमट सिमट,
मुझमे है आज समाई.
मै पूर्ण, शून्य, सर्वत्र आज 
मेरी ही सत्ता छाई..

............तुम जो सोचते हो वही हो और अभी नहीं हो तो शीघ्र हो जाओगे 
........इसलिए , यह तुम पर निर्भर है कि तुम क्या होना चाहते हो ...................


अरविंद पाण्डेय 
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सोमवार, 8 अप्रैल 2013

आएंगें तुम्हें याद हमारे ही सबक , दोस्त !


ॐ आमीन 

मुमकिन है भूलना हमें  नाम-ओ-निशान से 
हम  मिट  न  सकेगें, मगर,दौर-ए-जहान से
आएंगें तुम्हें याद हमारे ही  सबक  , दोस्त 
जब जब कभी गुजरोगे किसी इम्तिहान से  


भारत की आज़ादी के प्रथम योद्धा, अमर शहीद श्री मंगल पाण्डेय को,,
मेरी ओर से ,, आप सभी की ओर से समर्पित पंक्तियां ..............
सभी मित्रों को नमस्कार और शुभ शर्वरी !


अरविंद पाण्डेय
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गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

दिल भी खिले जो चाँद सा तो बात बने




श्रीकृष्णार्पणमस्तु

खिलता है हर इक रोज़ चाँद आसमान में .
दिल  भी  खिले  जो चाँद सा तो बात बने .

मिलता है हर इक रोज़ फलक इस ज़मीन से 
इन्सां  से  जो  इन्सां   मिले  तो  बात  बने 


अरविंद पाण्डेय
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रविवार, 31 मार्च 2013

मोमिन है वो जो मस्त मौसिकी की मय पिए.



आमीन
कुछ लोग पिया करते हैं मयखाने की शराब ,
मोमिन है वो जो मस्त मौसिकी की मय पिए.

पीने पे सभी को नशा होता है, मेरे दोस्त,
पीता वो अस्ल में, जो है नशे में बिन पिए.


अरविंद पाण्डेय
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शुक्रवार, 29 मार्च 2013

कान्हा न माने Samiksha Nandita sing Holi Song




Happy Holi to all Music Lovers !!
Traditional Holi Song , Composed by Aravind Pandey and Sung by Samiksha Pandey and Nandita Pandey ..


अरविंद पाण्डेय 
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गुरुवार, 28 मार्च 2013

जो हर बेरंग को रँग दें , वो दुनिया जीत लाते हैं '




श्रीकृष्णार्पणमस्तु

चलो होली में तुमको इक अजब दास्ताँ सुनाते हैं 
बहुत लंबा नहीं बस, एक मिसरा गुनगुनाते हैं-
' न अब है वक़्त कोई जंग तलवारों से लड़ने का
जो हर बेरंग को रँग दें , वो दुनिया जीत लाते हैं '

सभी मित्रों को होली की मंगल कामनाएं 

अरविंद पाण्डेय 
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मंगलवार, 26 मार्च 2013

मन में शिव-संकल्प सदा हो....




तन्मे मनः शिवसंकल्प मस्तु 

गगन बना करता है साक्षी 
प्रतिदिन चन्द्र-उदय का .
किन्तु , मनुज के अंतर में 
फिर, क्यों बादल है भय का. 

मन में शिव-संकल्प सदा हो,
वाणी में मधु-विन्दु .
तभी ह्रदय में उदित 
हुआ करता आनंदित इंदु . 



अरविंद पाण्डेय 
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रविवार, 24 मार्च 2013

भगत, सुखदेव अब कभी न यहाँ आएगें







23 मार्च 
इन्कलाब जिंदाबाद 
  
दिया जला के शहादत का, हमको छोड़ चले 
हुए फना, पर, आँधियों का भी रुख मोड़ चले 

मगर सोचा न था-ऐसा भी वक़्त आएगा 
बस एक दिन ही भगत याद हमें आयेगा 

हर एक बाप ये सोचेगा कि उसका बेटा 
कहीं अशफाक,भगत सा न ज़िन्दगी दे लुटा 

हर एक नौजवाँ सलमान की तस्वीर लिए 
बस,उस जैसा ही बन के जीने के लिए ही जिए 

किया है हमने जो सलूक शहीदों से,सुनो 
उसे न माफ़ ये तारीख करेगी , सुन लो 

जो लूटते हैं मुल्क को वो मुस्कुराएगें 
भगत, सुखदेव अब कभी न यहाँ आएगें 


अरविंद पाण्डेय 
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बुधवार, 20 मार्च 2013

ढलेंगें हम न कभी,हमको यूँ ही चलना है




चरैवेति 
अगर अवाम के तन पर नहीं कपडे होंगे
अगर गरीब हिन्दुस्तान के भूखे होंगे
समझ लो फिर ये आज़ादी अभी अधूरी है
अभी मंजिल में और हममे बहुत दूरी है

हो सुबह,रात हो या गर्म दुपहरी की तपिश
हमें हर हाल में मंजिल की ओर बढ़ना है 
ढले महताब, सितारे या शम्स ढल जाए
ढलेंगें हम न कभी,हमको यूँ ही चलना है



अरविंद पाण्डेय
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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

जय जय जय जयति परावाणी




जो वाणी, परिनिष्ठित ऋत में ,
वह वाणी, सिद्ध परावाणी ! 
क्षण क्षण जो क्षरण-शील कण है,
वह  अक्षर  करे,  परावाणी !

बिखरी वैखरी विकल जो है ,
वह वाणी अविरत है आकुल ,
वीणा सी जो झंकार करे ,
जय जय जय जयति  परावाणी

अरविंद पाण्डेय
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सोमवार, 4 मार्च 2013

वक़्त के पहिये के नीचे पिस रही हर शय यहाँ...




थक चुके हों गर कदम,फिर भी तुझे चलना ही है. 
हो बहुत गहरा अन्धेरा,शब को, पर, ढलना ही है. 
वक़्त के पहिये के नीचे पिस रही हर शय यहाँ. 
आज जो सरताज,कल मुफलिस उसे बनना ही है. 


अरविंद पाण्डेय 
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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.



हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.


अरविंद पाण्डेय
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रविवार, 10 फ़रवरी 2013

गर, हमारे सर की तरफ,आँख उठा देखोगे,..



गर, हमारे सर की तरफ,आँख उठा देखोगे,
तो सुन लो - हाँथ भर की रस्सी के फंदे में,
तुम अपने सर को लटकता हुआ भी देखोगे. 

अरविंद पाण्डेय 
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बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

जीवन बस यूँ ही चलता है .




ॐ आमीन 

जीवन बस यूँ ही चलता है .

कुछ खोता,फिर, कुछ पाता है,
पाकर ज्यूँ ही इठलाता है,
दो पल चमक चमक कर सूरज,
बेबस हो, यूँ ही ढलता है ,

जीवन बस यूँ ही चलता है  ..



अरविंद पाण्डेय
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शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

मेरी नई पुस्तक

 द्वारा प्रकाशित 

हम बिहार के बच्चे हैं.

ये पुस्तक बिहार के स्कूलों में बच्चों के बीच बिहार भक्ति आंदोलन ट्रस्ट द्वारा निःशुल्क बाटी जायेगी .... To Get this BOOK Free on internet, kindly click and download : नीचे लिंक क्लिक कीजिये....


अरविंद पाण्डेय 
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गुरुवार, 31 जनवरी 2013

टूटे हुए कुछ ख्वाब, हों कुछ पूरी मुरादें,




सुप्रभात और नमस्कार सभी मित्रों को...आज की परावाणी आपके लिए :

है कौन वो सपने न रहे जिसके अधूरे,
ख़्वाबों के महल जिसके हुए हूबहू पूरे.
टूटे हुए कुछ ख्वाब, हों कुछ पूरी मुरादें,
दोनों को लिए साथ, तू बढ़ता चला जा रे.

अरविंद पाण्डेय 
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शनिवार, 26 जनवरी 2013

अब मोहम्मद मुस्तफा तशरीफ लाये हैं.



चांदनी ने हर तरफ़ चादर बिछाए हैं
अब मोहम्मद मुस्तफा तशरीफ लाये हैं.

नूर का दरिया बहा चारो तरफ़ देखो
प्यारे पैगम्बर मोहम्मद मुस्कुराए हैं

चौदवीं के चाँद सा जो मुस्कुराते हैं
वो हमारे दिल पे छाने आज आए हैं

हर तरफ़ छाई अमन-ओ-सुकून की खुशबू
प्यारे मोहम्मद करम बरसाने आए हैं

-- अरविंद पाण्डेय


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गुरुवार, 10 जनवरी 2013

यही वक़्त है लटका दो अफ़ज़ल गुरु भी, देश मेरे !




यही वक़्त है लटका दो अफ़ज़ल गुरु भी, देश मेरे !
आज रात ही उन्हें बता दो अपनी ताक़त, देश मेरे !
उन सब को दो, देश निकाला,जो उनके हमदर्द यहाँ,
सरकश के दर सर झुकता है जिनका,उनको,देश मेरे!


आज गांधी यही कह रहे हैं सुभाष के साथ , सुनो-
बनो नहीं अब और अहिंसक तुम, सीमा पर,देश मेरे !


अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

बंगाल में रहकर भी रवीन्द्रनाथ से अपरिचय ....



मेरा श्रृंगार , तुम्हें करता हर्षित अपार !
फिर क्यों मेरे सुन्दर मुख से कर रहे रार !

अजीब बात है ...... बंगाल में रहकर भी रवीन्द्रनाथ से अपरिचय .... कैसी विडम्बना है यह .......... अभिजित दा ने शायद गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर को ठीक से नहीं पढ़ा ..... अन्यथा 
वे ये बात समझ पाते कि वे जिस डेंट-पेंट की बात कर रहे थे वह स्त्री ही नहीं पुरुष के लिए भी ,, प्रत्येक व्यक्ति के लिए ,, क्यों और कितना आवश्यक है ........... 
............एक बार महात्मा गांधी , गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर से मिलने गए थे .... साथ साथ शान्तिनिकेतन-भ्रमण के लिए निकलने के पूर्व, गुरुदेव ने दर्पण के सामने खड़े होकर, अपने श्वेत कुन्तलों ,, श्वेत श्मश्रु को सौम्यता के साथ संवारा और मुखमंडल को और अधिक दीप्तिमान और निर्दोष बनाने के लिए उसके एक एक अंश को ध्यान से देखा और त्वचा को अपने कोमल कर-स्पर्श और अङ्गुलि-संचालन से और अधिक स्फूर्तिमय बनाते हुए अपने वार्धक्य की भव्यता पर स्वयं ही मुग्ध से होकर, दर्पण के सामने संस्थित से हो रहे थे ..... जब उन्हें लगा कि अब वे भव्य और आकर्षक दिख रहे हैं तब महात्मा की ओर स्मित-मत्त सा होकर देखा ... महात्मा कुछ पल स्तब्ध सा उन्हें देखते रहे और फिर बोले - इस वृद्धावस्था में इतना श्रृंगार ! 
....... गुरुदेव तो अपने वार्धक्य की भव्य रम्यता की मस्ती में थे ... मुस्कुरा कर देखा महात्मा की ओर फिर कहा -- यौवन होता तब श्रृंगार की इतनी आवश्यकता न थी ... .. किन्तु , वार्धक्य में इतना श्रृंगार न करें तो मेरा अल्प भी असौंदर्य, मुझे देखने वाले को व्यथित कर सकता है ,, सुंदर वस्तु या सुंदर व्यक्ति को देखकर दर्शक प्रसन्न होता है ,, इसलिए ,, अब और अधिक सुन्दर दिखने का प्रयास करता हूँ ,,, असुंदर दिखकर , किसी दर्शक को निराश कैसे करून,, किसी को निराश करना भी तो हिंसा करना ही है ... अहिंसा के लिए ही तो श्रृंगार करता हूँ मैं कि जो मुझे देखे वह प्रसन्न हो जाए .... 
.............महात्मा , गुरुदेव की इस अहिंसा-वृत्ति को देख, पुनः स्तब्ध-प्रसन्नता से परिपूर्ण हो गए थे और शायद यही वह क्षण था जब महात्मा ने रवीन्द्रनाथ को गुरुदेव कहना प्रारम्भ किया था ............
अब अभिजित दा ने यह दृश्य देखा होता तो पता नहीं क्या टिप्पणी करते .............. !!
!! डेंट-पेंट !!

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बुधवार, 26 दिसंबर 2012

माताएं बुला रहीं हैं तुमको सिहर - सिहर



ॐ : आमीन 

हे  शुभ्र- वर्ण, शुभ्राम्बर, सुन्दर,  शुभ्र - नयन
अविरल-अनुकम्पा-अनुरंजित,अपराजित-मन
आओ , अपराधों से कलुषित  अब   धरती पर 
माताएं  बुला  रहीं  हैं   तुमको  सिहर - सिहर

कोलाहल  में   है  दबी  हुई   ॐ कार - ध्वनि
आकुल , अविरल आँसू  से भीगी आज अवनि


अरविंद पाण्डेय 

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

मगर, जो दूसरों के लब पे तबस्सुम रख दे

कृष्णं वन्दे जगदगुरुं : 

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन 

.............भारत में प्राचीन काल से ही शुद्ध और वास्तविक समाज-सेवा को प्रसन्नता-पूर्ण जीवन जीने के आवश्यक उपायों में बताया गया था .... पञ्च-ऋण से मुक्त होने और प्रतिदिन पञ्च-महायग्य करने का विधान प्रत्येक गृहस्थ के लिए किया गया है...किन्तु अज्ञानता के कारण आज अधिकाँश लोग इन उपायों का अवलंबन नहीं करते..... किन्तु सच ये है कि 

हंसी  हो लब पे तो दुनिया हसीन सजती है .
खिजां, बहार सी ताज़ातरीन लगती है.
मगर, जो दूसरों के लब पे तबस्सुम रख दे,
ज़मीं , फिरदौस से भी बेहतरीन लगती है.

........................अमरीका के मनोवैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह पाया है कि जो लोग शुद्ध और वास्तविक समाज-सेवा में स्वयं को व्यस्त रखते है वे अन्य समान-स्थिति वाले व्यक्तियों से अधिक प्रसन्न और तनावमुक्त जीवन जीते हैं......
........................अब पश्चिमी देशों में भी स्वयं को प्रसन्न रखने के लिए समाजसेवा को एक औषधि के रूप में प्रयोग किये जाने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ है .....

सभी मित्रों को सुप्रभात और नमस्कार...

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अरविंद पाण्डेय
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गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

प्रकाश-पुंज का न तो लिंग होता , न जाति होती है, न धर्म होता है..




...... मलाला यूसुफजई एक ऐसे प्रकाश-पुंज का नाम है जो न स्त्री है न पुरुष ..क्योकिं प्रकाश-पुंज का न तो लिंग होता , न जाति होती है, न धर्म होता है..
और न ही वह पूर्वाग्रह के कारण प्रकाश का वितरण करता है..
...प्रकाश समानभाव से अपनी सीमा में आने वाली सभी वस्तुओं को मुक्त रूप से आलोकित करता है..
...........मलाला को लडकी के रूप में वर्गीकृत करके, उसे शिक्षा से वंचित करने के असफल प्रयास को नहीं देखा जा सकता .. जो अशक्त और असमर्थ होगा उसके साथ यह संभावित होगा...
..........आज भी भा
रत और विश्व के अनेक देशों में करोड़ों पुरुष ऐसे हैं जो शिक्षा से वंचित किये गए हैं,, जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिल रही .. जिन्हें मज़दूरी कराने के बाद न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं देकर क़ानून का खुला उल्लंघन किया जाता है.. 
..............इसलिए मलाला एक स्त्री नहीं है ... उसने शिक्षा-शत्रुओं के विरुद्ध कुछ किया नहीं ..बल्कि , शिक्षा-शत्रुओं ने उसके द्वारा वितरित हो रहे प्रकाश को उसी तरह धूल फेंक कर ढकने की कोशिश की जैसे कोई मूर्ख , सूर्य की ओर धूल फेंक कर उनके प्रकाश को अवरुद्ध करने का प्रयास करता है...
आप इस कविता को ज़रूर पढ़ें...


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अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

पुलिस द्वारा आयोजित कार्यशाला

राष्ट्रीय सहारा , पटना , ४ दिसंबर.२०१२ 


मल्टी मीडिया मोबाइल फोन आपका बहुत अच्छा दोस्त साबित हो सकता है मगर यह आपका खतरनाक दुश्मन भी बन सकता है... कुछ दिन पहले बिहार के सभी पुलिस अधीक्षकों को मैंने महिला महाविद्यालयों तथा विद्यालयों में कार्यशाला आयोजित करने को कहा था जिससे छात्र
छात्राओं  में मल्टी मीडिया सेल फोन और इंटरनेट की सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सके..
राज्य के दो जिलों -- सुपौल तथा शिवहर में छात्राओं के बीच यह कार्यशाला पुलिस द्वारा आयोजित की गई जिसके अत्यंत सकारात्मक प्रभाव देखे गए..आगामी कुछ दिनों में पटना सहित एनी जिलों में भी यह कार्यशाला आयोजित की जायेगी.. इस हेतु अपने सुझाव और सलाह यदि आप सभी मित्र देगे तो हमें खुशी होगी 





अरविंद पाण्डेय 

सोमवार, 26 नवंबर 2012

इस खून की हर बूँद पे वतन का क़र्ज़ है.


26 नवंबर :
संविधान-दिवस
और
संविधान पर आक्रमण का दिवस



हमने तो बहाया है खून बस ये  सोचकर.
इस खून की हर बूँद  पे वतन का क़र्ज़ है.
राहों में बनाएँ हैं शहादत के  कुछ निशाँ, 
उनको तो बचाना अब तुम्हारा भी फ़र्ज़ है.

-- अरविंद पाण्डेय



अरविंद पाण्डेय www.biharbhakti.com

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

एकमेव है चन्द्र किन्तु शत - शत बन इतराता है,



महाकाश,  उत्फुल्ल - धवल  सागर  सा लहराता  है.
एकमेव  है चन्द्र किन्तु  शत - शत  बन  इतराता है.

रात्रि गहन, कल-कल, छल-छल चेतना बही जाती है.
है   सुषुप्ति  का  द्वार खुला  निद्रा  अब  गहराती है.

स्वप्न-हीन हो निशा, दिवस  में  स्वप्न  बनें साकार.
आओ  ,  ऐसा  ही  अद्भुत   हम ,   रचें    एक संसार.



अरविंद पाण्डेय 

रविवार, 18 नवंबर 2012

आओ ! षष्ठी - उत्सव पर प्रार्थना करें हम


आओ  षष्ठी - उत्सव  पर  प्रार्थना  करें हम.



सृष्टि - प्रसविता महासूर्य को नमन करें हम.
नयनों से शुभ-दृश्य अमृत-आचमन करें हम.
कर्णों में बस साम-गान की ध्वनि  गुंजित हो.
आओ ! षष्ठी - उत्सव  पर  प्रार्थना  करें हम.

कण - कण में हंसते ईश्वर का हो अब दर्शन.
द्वेष-अमर्ष मिटे , बस  प्रेयस का  हो वर्षण.
ह्रदय सदा पूरित हो छलके  प्रेम - अमृत से.
रहे मनीषा अभिषिन्चित अविरल बस ऋत से.


अरविंद पाण्डेय 
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शनिवार, 17 नवंबर 2012

मिले या ना मिले मंजिल तो भी हंसते रहना.



हर  एक  शख्स  यहाँ  वक्त पर ही चलता है. 
अगर रुक जाय वक्त भी तो तुम चलते रहना. 
ये  जिंदगी  है तो  बस आबशार खुशियों का.
मिले या ना मिले मंजिल तो भी हंसते रहना.



अरविंद पाण्डेय

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शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

वो भी मजहब के रिवाजों की बात करते हैं..





जिन्हें कुरआन  से,गीता से वास्ता  न रहा, 
वो भी मजहब के रिवाजों की बात करते हैं.
कभी मज़ार पे,मस्जिद में,कभी मन्दिर में,
कभी मोमिन,कभी पंडित का स्वांग भरते हैं.

हर एक सर,जो  है सज़दे में, ज़रूरी तो नहीं.
कि वो झुका हो इबादत में,बस,खुदा के लिए.
हमने देखा है कि मछली की ताक में अक्सर,
यहाँ  बगले  भी  इबादत  सा किया  करते हैं.


अरविंद पाण्डेय


यह समय सुचिन्तन और सचिंत होने का है



हमारे लिए वैयक्तिक-उपनिवेशों के रूप में उपलब्ध ब्रिटेन और अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय देशों में बेरोजगारी तथा उससे उत्पन्न अपराध आदि अन्य समस्याओं में निरंतर वृद्धि हो रही है इसलिए चीन, जापान , कोरिया आदि को छोड़कर अन्य एशियाई देशों को आगा
मी कुछ वर्षों में ही उस विकल्प के लिए तैयारी करनी होगी जिसमें कि हम अपने युवाओं को यथायोग्य काम दे सकें अन्यथा इन देशों में एक द्वेषाधारित राष्ट्रवाद का उदय होगा जिसकी तीव्र-तरंगों का आधात इतना भयावह होगा कि वहाँ काम करने वाले हमारे लोग सीधे अपने - अपने देशों में आकर गिरेंगें .
अपने देश में प्रौद्योगिकी और विज्ञान की शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम में होने के कारण हम एक वैज्ञानिक-समाज का निर्माण नहीं कर पाए..किन्तु चीन , जापान , कोरिया आदि एशियाई देशों में प्रद्योगिकी और विज्ञान की शिक्षा का माध्यम उनकी मातृभाषा होने के कारण वहाँ वैद्यानिक समाज का विकास हुआ और आज इन देशों के गावों में कुटीर-उद्योग में बनाए जा रहे इलेक्ट्रानिक सामानों से हमारा बाज़ार भरा पड़ा है.. 
खुली वैश्विक अर्थनीति जिस समय प्रवर्तित हुई उस समय हम प्रतियोगिता के मंच पर अपनी सशक्त भूमिका के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि यहाँ के योग्य युवा यूरोपीय देशों में ही अपना भविष्य देख रहे थे..किन्तु , चीन , जापान आदि ने उस भूमिका को बहुत पहले ही पहचान लिया था और उसके लिए तैयारी भी कर चुके थे.. वास्तव में भारत में खुली अर्थव्यवस्था का समय-पूर्व प्रसव हो गया और परिणाम था कि हम चीन आदि के पुष्ट अर्थ-शिशु के समक्ष कुपोषित शिशु जैसे रह गये और आज भी वह कुपोषण बना हुआ है.. कोरिया की सैमसंग कंपनी का गैलेक्सी अब इस समय अमेरिका के आई फोन से आगे बढ़ने का सफल प्रयास करता हुआ देख रहा और हम इस ऐतिहासिक अर्थ-युद्ध में बाज़ार बन कर मात्र युद्ध-भूमि ही उपलब्ध करा रहे हैं.


इस समाचार क्लिपिंग से स्पष्ट संकेत मिलता है कि भविष्य में आर्थिक-अतृप्ति के कारण उत्पन्न सामाजिक-संकट से ग्रस्त ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देश, हम भारत की युवा-प्रतिभाओं का उसी प्रकार स्वागत नहीं कर पायेगे जैसा वे पहले करते रहे हैं..
यह समय सुचिन्तन और सचिंत होने का है और शायद हमारे यहाँ अधिकांश लोगो का ध्यान इस ओर नहीं है ..

अरविंद पाण्डेय 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

अहं ब्रह्मास्मि,अनलहक की गूँज रूह में है

महाशक्ति पीठ विन्ध्याचल 

लिए मिठास कुछ अमरित सा अपने पानी में.
मेरी  गंगा  यहाँ  मस्ती   में   बही   जाती   है.

बहुत   हंसीन  सी   आवाज़   हवाओं  में   है,
कि  ज्यों  कोई  परी वेदों  की  रिचा  गाती है.

खुद   अपने  तन  के ही करीब हुआ  तो पाया. 
मेरे  इस  गाँव  की मिट्टी की महक आती है.

यहाँ  रमजान की रानाइयां भी  नाजिल हैं .
यहाँ   नवरात्र  के  मन्त्रों  की सदा आती है.

अहं  ब्रह्मास्मि,अनलहक की गूँज रूह में है,
न जाने फिर भी  क्यूँ, ये रूह  कसमसाती है.

-- अरविंद पाण्डेय 


बुधवार, 7 नवंबर 2012

नीरज जी के साथ एक काव्य मंच पर



यह वीडियो एक मई २००८ को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुई कवि-गोष्ठी का है .. हिन्दी दैनिक समाचारपत्र दैनिक जागरण द्वारा आयोजित  इस गोष्ठी में मैंने अपने सवक्तव्य  काव्य-पाठ से श्रोताओं से संवाद किया ... श्री गोपालदास नीरज इस गोष्ठी के अध्यक्ष थे तथा उन्होंने भी अपनी कविताओं गीतों के सुरस से श्रोताओं को रस-सिक्त किया ... नीरज जी के साथ यह दूसरा मंच था जहाँ मैंने काव्य-पाठ किया ..इस हेतु मैं  मुजफ्फरपुर के श्री अमरेंद्र तिवारी जी का आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे अनुरोध पर यह वीडियो अथक-प्रयास के बाद पहले स्वयं प्राप्त किया फिर मुझे उपलब्ध कराया...

अरविंद पाण्डेय 


शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

मेरे आँगन में ही,मुफलिस सा,चाँद आया है !

गौर्यै धात्र्यै नमो नमः
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करवा चौथ .

सभी व्रती-नारियों के सम्मान में .आज माँ गौरी का स्मरण करते हुए.
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मेरे सनम ! मेरे महबूब ! आज की शब् तो,
मेरे आँगन में ही , मुफलिस सा चाँद आया है.

बड़ा  बेनूर  सा  दिखता  है चौथ का ये  चाँद.
तुझी  को  देख, लग रहा है, ये शरमाया है.

तेरी नज़रों का नूर , दीद में मेरी, हरदम,
मेरे  हमनूर !  जो चारो  पहर  समाया है. 

उसी नज़र-ए-करम की भीख माँगने शायद,
मेरे  आँगन में  ही,मुफलिस सा, चाँद आया है.




-- अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

..फिर दोनों का था रखा नाम-इंदिरा और लक्ष्मी बाई.


31 अक्तूबर

ये क्या रहस्य-उन्नीस नवम्बर को दोनों ऩे जन्म लिया.
ये क्या रहस्य है-दोनों की माँ  ऩे बचपन में छोड़ दिया.
दोनों के नामों का मतलब है एक ,एक सा  जीवन  था.
वैधव्य, पुत्र की मृत्यु,देश के लिए समर्पित तन-मन था.

बचपन में एक छबीली ,  प्रियदर्शिनी  दूसरी  कहलाई.
फिर दोनों  का  था रखा नाम इंदिरा  और लक्ष्मी बाई.


1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध आधुनिक विश्व इतिहास की एक ऐसी सशक्त घटना है जिसमें भारत ने श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में यह दिखाया कि वह सामरिक स्तर भी विश्व की महाशक्ति अमेरिका से मोर्चा लेने का संकल्प ले सकता है और भारत के इस पौरुष के शंखनाद में अमेरिका की पाकितान के लिए निकल रही आह दब कर रह गई .. बस यही एक घटना श्रीमती इंदिरा गांधी को विश्व इतिहास की सबसे सशक्त महिलाओं में से एक रूप में स्थापित करती है..भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि हम ऐसे व्यक्तित्वों को भी दल-गत कुदृष्टि से देखते रहे हैं.. मैंने इस कविता में उन समानताओं का उल्लेख किया है जो श्रीमती इंदिरागांधी और महारानी लक्ष्मीबाई में थीं..यहाँ तुलना नहीं की जा रही ..बस उस संयोग को बताया गया है जो विलक्षण है और भारत की इन दो स्त्री रत्नों में पाया जाता है..
-- अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

रामदूत रक्षा करो , जय जय श्री हनुमान



हरिः  ॐ तत्सत् महाभटचक्रवर्ती रामदूताय नमः

जब संकट आए कोई , हों व्याकुल मन प्राण.
शत्रु  शक्तिशाली  करे   मारक शर - संधान .
स्मरण करे एकाग्र हो , करे  बस  यही गान -
" रामदूत  रक्षा  करो ,  जय जय श्री हनुमान "

-- अरविंद पाण्डेय 



रविवार, 7 अक्तूबर 2012

शैशव के ही सन्निकट स्वर्ग हँसता है



स्वप्न और विस्मृति  है  अपना जीवन.
है  सुदूर ,  आत्मा  का  मूल - निकेतन. 
तारक सा ज्योतित नभ से यहाँ उतरता.
आकर वसुधा पर,कुछ विस्मृति में रहता.

गरिमा के जलद-सदृश हम विचरण करते.
ईश्वर   के   शाश्वत  सन्निवास में  रहते.  
शैशव के  ही सन्निकट  स्वर्ग   हँसता  है.
तब,  सार्वभौम शासक  सा शिशु सजता है.

पर,जब यह शिशु, विकसित किशोर में होता.
तब, सघन कृष्ण - छाया  परिवेष्टित  होता.
यह,  किन्तु,  किया करता प्रकाश का दर्शन.
जब   होता   है   उन्मुक्त   हर्ष  का  वर्षण.

-- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

अब अपनों से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे..




बहुत  कर लिया बंद, अब ज़रा भारत खोलो.
कहा खड़े हो  दुनिया  में अब खुद  को  तोलो.
बाजारों   में  कब्ज़ा  है  जापान ,  चीन   का.
कितनी  दौलत  वहाँ  जा  रही ,यह तो बोलो.


एक  वक़्त  था  जब  यूनानी, रोमन सारे.
खूब   खरीदा  करते  थे  सामान   हमारे.
वही  सुनहरी  सदी आज फिर कोई दे दे-
अब  अपनों  से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे.

-- अरविंद पाण्डेय 




रविवार, 12 अगस्त 2012

रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र !


रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र 
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समस्या भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण की है: कुछ सूत्र हैं जो उन्हें आंदोलन के रूप में शुरू करना चाहिए जो भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण के पक्षधर हैं..

१.सभी नागरिक संकल्प लें कि वे हानि उठायेगे किन्तु अपना काम साधने के लिए रिश्वत नहीं देगे..

२.विद्यालयों में विशेषरूप से दून स्कूल और अन्य तथाकथित अच्छे विद्यालयों में '' रिश्वत न लेने के फायदे '' विषय पर पाठ्यक्रम शुरू किया जाय.

३.स्कूलों में डोनेशन देकर प्रवेश देने के कार्य को रिश्वत का अपराध घोषित करने के लिए क़ानून बनाया जाय.

४.स्कूलों में उपहार लेने और देने की सीमा भी निर्धारित की जाय जिससे उपहार आदि के आधार पर स्टेटस का मूल्यांकन होना बंद हो.

५.एक १० करोड या ऊपर के साबित भ्रष्टाचार के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान हो..जिससे २००० रुपये की रिश्वत और २०० करोड की रिश्वत में फर्क हो सके...
                  आप सहमत हैं ..यदि हाँ तो अभी --- राजनीति के मोह से बचकर ये सब कीजिये ..
                     वरना जीतने के लिए '' व्यावहारिक '' Practical होना पडेगा फिर क्या होगा उन सपनों का जिन्हें बाँटते हुए यहाँ तक की मंजिल तय की है.

-- अरविंद पाण्डेय