यही वक़्त है लटका दो अफ़ज़ल गुरु भी, देश मेरे !
आज रात ही उन्हें बता दो अपनी ताक़त, देश मेरे !
उन सब को दो, देश निकाला,जो उनके हमदर्द यहाँ,
सरकश के दर सर झुकता है जिनका,उनको,देश मेरे!
आज गांधी यही कह रहे हैं सुभाष के साथ , सुनो-
बनो नहीं अब और अहिंसक तुम, सीमा पर,देश मेरे !
अरविंद पाण्डेय