शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

मैं स्रष्टा की सर्वोत्तम मति की प्रथम-सृष्टि:मैं नारी हूँ:.1

नवरात्र के इस महापर्व पर विश्व की समस्त शक्तिस्वरूपा स्त्रियों को समर्पित :
मैं नारी हूँ , नर को मैनें ही जन्म दिया
मेरे ही वक्ष-स्थल से उसने अमृत पिया
मैं स्रष्टा की सर्वोत्तम मति की प्रथम-सृष्टि
मेरे पिघले अन्तर से होती प्रेम-वृष्टि ।

जिस नर को किया सशक्त कि वह पाले समाज
मैं, उसके अकरुण अनाचार से त्रस्त आज ।


मैं वही शक्ति, जिसने शैशव में शपथ लिया
नारी-गरिमा का प्रतिनिधि बन, हुंकार किया --
'' जो करे दर्प-भंजन, जो मुझसे बलवत्तर
जो रण में करे परास्त मुझे, जो अविजित नर ।


वह पुरूष-श्रेष्ठ ही कर सकता मुझसे विवाह
अन्यथा, मुझे पाने की, नर मत करे चाह ।''

क्रमशः

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यह लम्बी कविता मेरे अब तक के जीवनानुभवों के आधार पर प्रस्तुत है । यह क्रमशः प्रस्तुत की जायेगी ब्लॉग में ।

नारी के विषय में भारतीय दृष्टि , अतिशय वैज्ञानिक, मानव-मनोविज्ञान के गूढ़ नियमों से नियंत्रित , सामाजिक-विकास को निरंतर पुष्ट करने वाली तथा स्त्री - पुरूष संबंधों को श्रेष्ठतम शिखर तक ले जाने की गारंटी देती है ।

भारत ने सदा स्त्री -पुरूष संबंधों में स्त्री को प्रधानता दी और स्त्री को यह बताया कि कैसे वह पुरूष को अपने अधीन रख सकती है । कैसे वह पुरूष के व्यक्तित्व में निहित सर्वोत्तम संभावनाओं को प्रकृति और मानव-समाज के कल्याण में नियोजित करा सकती है ।

मैं इन कविताओं में , स्त्री के अनेक स्वरूपों को प्रस्तुत करते हुए यह कहना चाहता हूँ कि यदि समाज को अपराधमुक्त , अनाचार-मुक्त बनाना है तो स्त्री-पुरूष संबंधों को भारतीय-प्रज्ञा के आलोक में परिभाषित करना अनिवार्य है अन्यथा समाज को सुव्यवस्थित रूप से चलाना कठिन से कठिनतर होता जाएगा ।



----अरविंद पाण्डेय