शुक्रवार, 17 मई 2019

गांधी जी की हत्या के उपेक्षित पहलू

गांधी जी की हत्या के उपेक्षित पहलू :
महात्मा गांधी ने भारत विभाजन के प्रकरण पर कहा था कि बटवारा मेरी लाश पर होगा..
.... 14 अगस्त 1947 के बाद वे अपने इस संकल्प और अभीप्सा के साथ ही श्वास ले रहे थे...विभाजन की असह्य वेदना उन्हें पल पल मार रही थी...उनका सारा राजनीतिक दर्शन उन्हें स्वयं इस रक्तरंजित विभाजन के साथ ही झूठा लग रहा था .....
.......वे भारत_पाकिस्तान के विभाजन और इस क्रम में जिन्ना और उसके गिरोह द्वारा किये गए नरसंहारों से मर्माहत थे और अपनी जिजीविषा को वे स्वेच्छया तिलांजलि दे चुके थे.....
...… और इसलिए जब मदनलाल पहवा ने 20 जनवरी 1948 को दिल्ली में गांधी निवास बन चुके बिरला हाउस पर बम चलाया और गांधी जी की सुरक्षा बढ़ा दी गयी तो उन्होंने गृहमंत्री सरदार पटेल को बुलाकर कहा कि उन्हें सुरक्षा नहीं चाहिए और अगर सुरक्षा हटाई नहीं गयी तो वे अनशन करेगें..... सरदार पटेल गांधी जी को जानते थे कि वे सुरक्षा नही हटाने पर आमरण अनशन करेगें... उन्हें दो स्थिति बनती दिख रही थी उन्हें -
1. सुरक्षा नही हटी तो गांधी जी अनशन करेगें और उनका वह अनशन उनकी मृत्यु का कारण बन सकता था .
2. सुरक्षा हटाने पर पाकिस्तान से दिल्ली में आये शरणार्थियों से गांधी जी पर आसन्न प्राण संकट था क्योंकि मदनलाल पहवा 20 जनवरी को गांधी जी पर असफल हमला कर चुका था...
..... गृहमंत्री सरदार पटेल ने दूसरा विकल्प चुना और गांधी जी को अनशन से बचाने के लिए उनकी  सुरक्षा को  हटा देने का आदेश दिया...
..... मैं पुलिस अधिकारी के रूप में हमेशा से सोचता रहा  हूँ कि गृहमंत्री के उस अनुचित आदेश को दिल्ली पुलिस प्रमुख ने क्यों मान लिया ? दिल्ली पुलिस प्रमुख कह सकते थे कि ---
"जबतक मैं पुलिस प्रमुख हूँ सुरक्षा नहीं हटाई जाएगी क्योंकि गांधी जी पर हमले की संभावना है..आप चाहें तो मुझे हटा दें.."
.... किन्तु दिल्ली पुलिस प्रमुख ने गृहमंत्री सरदार पटेल के अनुचित आदेश का पालन किया और गांधी जी की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी सभी लोगों द्वारा गांधी जी को असुरक्षित छोड़ दिया गया...
....30 जनवरी 1948 को सरदार पटेल गांधी जी  की हत्या के 15 मिनट पहले तक उनके साथ बिरला हाउस में थे......वे बिरला हाउस से निकलते हैं और गांधी जी प्रार्थना सभा की ओर बढ़ते हैं.... नाथूराम ने स्वयं भी देखा कि भारत के गृहमंत्री यहां हैं.... और प्रार्थना स्थल पर गांधी जी के पहुँचने के पहले ही  नाथूराम ने बड़ी आसानी से गांधी की हत्या कर दी...
.... गांधी जी वास्तव में अपने "ईश्वर अल्ला तेरो  नाम" के राजनीतिक दर्शन के साथ जिन्ना और उसके नरसंहारी गिरोह द्वारा किए गए विश्वासघात के बाद जीवित रहना ही नहीं चाहते थे...उन्होंने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा और इस वचन पर अडिग रहते हुए उन्होंने स्वयं को इतना असुरक्षित हो जाने दिया कि उनकी जीवित देह को लाश में बदल देने में पागल हत्यारे को कोई अवरोध या असुविधा नहीं हुई....
..... स्वतंत्र भारत में पुलिस कर्तव्यों में यह पहला राजनीतिक हस्तक्षेप था जिस कारण महात्मा गांधी जी की हत्या संभव हो पाई....
.... नाथूराम ने कोर्ट के सामने दिए गए अपने बयान में यह कहा था कि गांधी जी की सुरक्षा हटाकर वास्तव में उन्हें हमले का शिकार बन जाने के लिए छोड़ दिया गया था... और अगर सुरक्षा बनी रहती तो उन्हें मारना संभव नहीं था...
..... महात्मा गांधी के प्रति और इस देश के प्रति भक्ति रखने वालों को उनकी हत्या के इन उपेक्षित पहलुओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए...

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