परावाणी : The Eternal Poetry
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शुक्रवार, 15 मार्च 2013
जय जय जय जयति परावाणी
जो वाणी, परिनिष्ठित ऋत में ,
वह वाणी, सिद्ध परावाणी !
क्षण क्षण जो क्षरण-शील कण है,
वह अक्षर करे, परावाणी !
बिखरी वैखरी विकल जो है ,
वह वाणी अविरत है आकुल ,
वीणा सी जो झंकार करे ,
जय जय जय जयति परावाणी
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
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