मंगलवार, 2 जून 2009

मैं नहीं चाहती थी निन्दित रघुनन्दन हों..मैं नारी हूँ...3







श्री दुर्गा पूजा के महापर्व पर विश्व की सभी शक्ति-स्वरूपिणी नारियों को समर्पित.3
६ .
मैंने अपनी निजता का निर्भय किया दान.
प्रज्ज्वलित-अग्नि में कर प्रवेश, मैं थी अम्लान.

मैं नहीं चाहती थी निन्दित रघुनन्दन हों.
था स्वप्न - राम का सार्वभौम अभिनन्दन हो.

इसलिए, सहज निर्वासन था स्वीकार मुझे.
अन्यथा, राम क्या करते अस्वीकार मुझे?
७.
मैंने तमसा-तट पर लक्ष्मण से कहा -तात !
श्री राम बनें आदर्श चक्रवर्ती सम्राट .

वे करें प्रजा-पोषण सोदर भाई समान.
जीवन उनका, यश,धर्म,कीर्ति का हो निधान.

कहना उनसे- मैथिली नहीं हैं व्यथा-विद्ध.
बस एक कामना, राघव हों अतुलित प्रसिद्द.
७.
श्री राम-राज्य की नारी भी थी मैं, प्रबुद्ध.
मैंने चाहा था- रावण से हो महायुद्ध.

राक्षसी हिंस्र-संस्कृति का जिससे हो विनाश.
बंधुता तथा समता,स्वतन्त्रता का प्रकाश-

प्रत्येक मनुज के अंतर में उद्भासित हो.
वसुधा, करूणा से कुसुमित और सुवासित हो..
८.
यदि राम-सभा में जा,मैं करती अभिवेदन.
तब निश्चित ही निरस्त हो जाता निर्वासन.

श्री राम और मैं करते वैयक्तिक-विलास.
पर उस आदर्श-परिस्थिति का रुकता विकास.

जिसमें शासक त्यागा करते हैं पद अपना .
पर,जो आसक्त पदों में,उनसे क्या कहना !
९.

वास्तव में, मैंने साम्राज्ञी-पद त्यागा था.
क्या कहूं ,राज्य का जन-समुदाय अभागा था.

पुट-पाक सदृश वेदना राम को बींध गई.
जीवन भर मैं श्री राम-विरह में दग्ध हुई.

इस अग्नि-सिधु मंथन से बस यह अमृत मिला.
राघव के अक्षर यश का सुरभित पुष्प खिला.
१०.
मैं वही जबाला, जिसने नहीं विवाह किया.
पर, सत्यकाम जाबाल-पुत्र को जन्म दिया.

प्रारंभ किया जिसने परम्परा गुरुकुल में
है पिता-नाम अनिवार्य नहीं नामांकन में

गरिमामय नारी -स्वतन्त्रता का प्रथम घोष
था समय एक , मैं मानी जाती थी अदोष
८ .
मैं वही अपाला , कुष्ठ -रोग से जो पीड़ित.
थी देह नही रमणीय , पुरूष सब थे परिचित.

सौन्दर्य नहीं था छलक रहा मुझसे बाहर
पर, प्रज्ञा का सागर लहराता था अन्दर

मेरे मंत्रों से प्रथम वेद है आलोकित
मेधा-बल से मैनें समाज को किया विजित..
==============================
स्त्री के प्रति भारत की विलक्षण, शाश्वत और यथार्थवादी दृष्टि के विरोध में, बुद्धि-दरिद्रों द्वारा, माता मैथिली के निर्वासन का उदाहरण दिया जाता है..किन्तु यह उदाहरण उनके द्वारा ही दिया जाता है जिन्होंने एक बार भी वाल्मीकीय रामायण का पारायण नहीं किया.वाल्मीकीय रामायण के उत्तरकाण्ड के पैंतालीसवें सर्ग के सत्रहवें श्लोक में श्री राम का लक्ष्मण को दिया गया आदेश अंकित है--
गंगायास्तु परे पारे वाल्मीकेस्तु महात्मनः .
आश्रमो दिव्यसंकाशः तमसातीरमाश्रितः
श्री राम ने लक्ष्मण से कहा था -'' गंगा के पार स्थित तमसा नदी के तट पर, महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है..लक्ष्मण ! तुम कल प्रातः सीता को उसी आश्रम के निकट पहुचाकर वापस आना.''
अर्थात श्री सीता को निर्जन वन में छोड़ने का आदेश श्री राम का नहीं था.
इसी तरह,जब श्री मैथिली को वाल्मीकि आश्रम के निकट ले जाकर निर्वासन की राजाज्ञा लक्ष्मण द्वारा सुनाई गई तो उन्होंने लक्ष्मण से कहा-
यच्च ते वचनीयम स्यादपवादः समुत्थितः
मया च परिहर्तव्यम त्वम् हि मे परमा गतिः
अर्थात श्री मैथिली ने लक्ष्मण से श्री राम के लिए अपना सन्देश भेजा था- ''जनसमुदाय के बीच जो आपकी निंदा कुछ घटनाओं के कारण हो रही है उसे समाप्त करना मेरा भी कर्तव्य है..आप धर्मपूर्वक जनसमुदाय का पालन वैसे ही कीजिये जैसे अपने सगे भाइयों का करते हैं.मुझे आपके धर्मानुकूल शासन की चिंता है , अपने शरीर की नहीं. ''
इस प्रकार श्री मैथिली ने निर्वासन स्वीकार करके, वास्तव में, राज्य-हित में अपना साम्राज्ञी का पद त्यागा था.
मानव-मन की इस सर्वोत्कृष्ट अवस्था को हृदयंगम कर पाना लोभ,मोह,मद से कलुषित चित्त के लिए संभव नहीं.
श्री मैथिली द्वारा साम्राज्ञी-पद का स्वेच्छया किये गए त्याग की परम्परा का ही निर्वाह आज भी तब होता है जब कोई लाल बहादुर शास्त्री या कोई नीतीश कुमार किसी रेल दुर्घटना के बाद नैतिकता के वशीभूत, निजी रूप से दोषी न होते हुए भी, पद से त्यागपत्र देता है.

..पश्चिम में , महान नारीवादी चिन्तिका - सिमोन द बउआर एवं अन्यों द्वारा प्रारंभ किया गया नारी मुक्ति आन्दोलन , पश्चिमी समाज के लिए पूर्णतः हानिकारक रहा। .क्योंकि यह प्रतिक्रया में, पुरूष - द्वेष के साथ , प्रारंभ किया गया था ..
प्रतिक्रया या द्वेष में प्रारंभ किया गया कोई भी कार्य अपने परिणाम के साथ अप्रिय अंश भी लेकर आता है ..
वही हुआ..
पश्चिमी समाज में , नारी-वादी स्त्रियों ने, पुरूष द्वेष में ,पुरुषों से बचने के लिए, ऐसी विकृतियों को आत्मसात् किया जिसनें वहाँ की परिवार -प्रणाली का सर्वनाश कर दिया ।
माता , पिताके प्रारम्भिक प्रेम और वात्सल्य से वंचित युवा ,
सहजात मनोवृत्तियों के वशीभूत और मनोविकृतियों से पीड़ित स्त्री -पुरूष,
और खंडित परिवारों का विशाल खँडहर ॥
परिणाम यह भी हुआ कि भारत का कोई संत वहाँ जाए तो लाखों की संख्या में स्त्री -पुरूष उसके अनुयायी बनने के लिए तैयार , समर्पित ॥
आज सारा पश्चिम भारत की ओर आशा के साथ देख रहा कि भारत, उसके सामाजिक -अस्तित्व की रक्षा, अपने पुरातन किंतु चिर-नवीन संस्कारों के साथ कर पायेगा !
हम भारत के लोगों ने कभी किसी विषय पर खंडित अथवा अपूर्ण दृष्टि के साथ विचार नहीं किया ।
स्त्री - स्वतन्त्रता हमारे यहाँ जितनी वैज्ञानिकता के साथ उपलब्ध थी , वैसी कहीं नही थी, न है ।
इन कविताओं में मैंने भारत की उन महान स्त्रियों की स्तुति की है जिन्होनें अपनी प्रज्ञा के बल से स्त्री - मूलक सामाजिक क्रान्ति का नेतृत्व किया था जो आज की स्त्रियों के लिए भी अति कठिन है ।
आज ऋग्वेद के आकार लेने के हजारों साल बाद , भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि किसी बच्चे का विद्यालय में नामांकन कराते समय , यह अनिवार्य नही होगा कि उसके पिता का नाम बताया जाय ।
विद्यालय में यदि सिर्फ़ माता अपना ही नाम बताती है तो भी नामांकन किया जाएगा।
इस निर्णय को हम ऋग्वेद में वर्णित माता जबाला की कथा के प्रकाश में देखें तो लगेगा कि माता जबाला नें अपने आत्मबल से जो कार्य उस समय अकेले किया था उस कार्य को कराने के लिए आज सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पडा ।
माता जबाला नें अपने पुत्र जाबाल को को गुरुकुल में नामांकन के लिए भेजा ।
वहा कुलपति ने जाबाल से पिता का नाम पूछा और कहा कि पिता के नाम के साथ ही नामांकन होगा ।
जाबाल को पिता का नाम माँ ने कभी बताया नही था न ही वह अपने पिता से कभी मिला था .
उदास जाबाल माँ के पास आया और सारी बातें बताईं ..
माँ ने कहा कि तेरे पिता का नाम मैं भी नहीं जानती । मैं आश्रम में रहती थी । विवाह नही किया ।
किंतु प्रेम - पूर्ण स्थिति में किस ऋषि से तेरा जन्म हुआ , नही मालूम ।
तू जा गुरुकुल और आचार्य से कह दे कि मेरी माता का नाम जबाला है और मेरा नाम सत्यकाम जाबाल है .वे मंत्रद्रष्टा ऋषि हैं । किस ऋषि से मेरा जन्म हुआ , यह उन्हें भी नही मालूम .
बालक जाबाल जाता है गुरुकुल माँ के वचन दुहराता है वहाँ आचार्य से।
कुलपति, सत्यकाम जाबाल और माता जबाला की सत्यनिष्ठा का सम्मान करते हैं और जाबाल का नामांकन गुरुकुल में हो जाता है ।
इसी प्रकार माता अपाला कुष्ठ -रोग से पीड़ित थीं । किंतु, उन्होंने अपने प्रग्याबल से उस रोग को समाप्त किया । और मन्त्र-द्रष्टा ऋषि बनीं ।
समस्त पुरुषों के लिए सम्माननीय ।
भारतीय - संस्कृति में स्त्री-स्वातंत्र्य सार्वभौम रूप से उपलब्ध किए जाने का संकल्प है ।
किंतु यह स्वातंत्र्य अपने इन्द्रिय सुखों की प्राप्ति के लिए नही अपितु सत्यकाम जाबाल जैसा महान पुत्र उत्पन्न कराने के उद्देश्य से संकल्पित है ।
स्त्री अपने प्रग्याबल से समाज को सशक्त, सुबुद्ध , सुंदर , सुनम्र बना सकती हैं ।
स्त्री की सृष्टि ही इस हेतु हुई ।
किंतु ऐसा करने के लिए स्त्री को स्वयं प्रग्यावती , सशक्त , सुबुद्ध और अंतःकरण से सुंदर बनना होगा ।
सौन्दर्य स्त्री की नियति है --
पुरूष को वश में करने के लिए और उससे समाज की सार्वभौम सेवा कराने के लिए ।
पुरूष के समस्त कर्मों की प्रेरक स्त्री है --
स्त्री है तो पुरूष है --
स्त्री - पुरूष हैं तो समाज और प्रकृति सुरक्षित हैं ।
समस्त प्रकृति की रक्षा के लिए स्त्री का सुन्दरीकरण ,सशक्तीकरण और समरस स्त्री-पुरूष संबंधों का विकास आवश्यक है.

----अरविंद पाण्डे

43 टिप्‍पणियां:

  1. 'स्त्री - स्वतन्त्रता हमारे यहाँ जितनी वैज्ञानिकता के साथ उपलब्ध थी , वैसी कहीं नही थी, न है ।
    स्त्री है तो पुरूष है --
    स्त्री - पुरूष हैं तो समाज और प्रकृति सुरक्षित हैं '
    बहत अच्छा लिखा है.आप के यह विचार जानकार बेहद प्रसन्नता हुई.माता जबाला और माता अपाला को हमारा भी नमन.
    एक सुझाव- आप ने जो विडियो लगाया है वह half दीखता है..इसे ठीक कर सकते हैं.आप उस कोड को देखीये--width aur length की values को 180x170 cmsकर दें तो स्क्रीन ठीक हो जायेगा.
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  2. बधाई इस सुन्दर और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट के लिए.
    आगे की कड़ी का इंतज़ार रहेगा.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपने बहुत अच्छा लिखा है.आपके विचार जानकार ख़ुशी हुई. अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा.
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. स्त्री संबंधी आप की धारणा जानने से प्रसन्नता हुई। लेकिन सब बातों से सहमति नहीं है। भारतीय दृष्टिकोण क्या है। इस में तो सभी विचार हैं स्त्री पक्षी भी और स्त्री विरोधी भी? किसे भारतीय दृष्टिकोण समझा जाए?

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रस्तुत रचना मानवीय संवेदनाओं के उन पहलुओं को बयां करने में कामयाब है | जिस पर अब भी मानव समुदाय के मानस पटल की चैतन्यता की नींद नहीं खुली है | समाज अपने को पुरुष प्रधान बता कर महिला को अबला घोषित कर दी और अतीत से अब तक उस पर कई प्रकार के जुल्म करते रहे | क्योंकि उनके पास अपने पूर्वजों के द्वारा अपनाएँ गएँ उस शास्त्रों का अपूर्ण ज्ञान था और हम दुनिया के सामने इस अपूर्ण ज्ञान के सहारे आगे ........
    जहाँ तक स्त्रियों की महानता और मूल्य चेतना की बात है , आज यह प्रासंगिक है तो केवल ज्ञान के आभाव में | मानव समुदाय को समझना चाहिए कि आज वे जो इस धरती पर खड़े है उसमे उनका अभूतपूर्व योगदान है

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रस्तुत रचना मानवीय संवेदनाओं के उन पहलुओं को बयां करने में कामयाब है | जिस पर अब भी मानव समुदाय के मानस पटल की चैतन्यता की नींद नहीं खुली है | समाज अपने को पुरुष प्रधान बता कर महिला को अबला घोषित कर दी और अतीत से अब तक उस पर कई प्रकार के जुल्म करते रहे | क्योंकि उनके पास अपने पूर्वजों के द्वारा अपनाएँ गएँ उस शास्त्रों का अपूर्ण ज्ञान था और हम दुनिया के सामने इस अपूर्ण ज्ञान के सहारे आगे ........
    जहाँ तक स्त्रियों की महानता और मूल्य चेतना की बात है , आज यह प्रासंगिक है तो केवल ज्ञान के आभाव में | मानव समुदाय को समझना चाहिए कि आज वे जो इस धरती पर खड़े है उसमे उनका अभूतपूर्व योगदान है

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. Wonderful. I strongly believe that if women rule this world this world will become a better place than what men has done to this world.
    I salute the best half of the world (Not the better half).
    Chandar Meher
    lifemazedar.blogspot.com
    avtarmeherbaba.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  9. Aapne bahut hi khoobsurat chhando me Mata Jabala aur Mata Apala ke bare me bataya hai, jiske bare me bahuto ko jankari nahi hogi.
    Bharitya parampara me hamesha stri ka samman kiya gaya hai. Aisa aage bhi hona chahiye. Aaj striyan kisi se kam nahi hain. Isliye unhe kabhi bhi hey drishti se nahi dekhna chahiye. Kalpana Chawla, P T Usha, Indira Nooi jaisi striyan purushon ke liye bhi udahran hain.

    जवाब देंहटाएं
  10. Aapne bahut hi khoobsurat chhando me Mata Jabala aur Mata Apala ke bare me bataya hai, jiske bare me bahuto ko jankari nahi hogi.
    Bharitya parampara me hamesha stri ka samman kiya gaya hai. Aisa aage bhi hona chahiye. Aaj striyan kisi se kam nahi hain. Isliye unhe kabhi bhi hey drishti se nahi dekhna chahiye. Kalpana Chawla, P T Usha, Indira Nooi jaisi striyan purushon ke liye bhi udahran hain.

    जवाब देंहटाएं
  11. apne boht achha likha hai..kam log hi kabool karte hai ki स्त्री है तो पुरूष है --

    जवाब देंहटाएं
  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  13. Aapka lekhan sashakt hai....aapka blog bhi bahut achcha hai....naari per itna likhne ke liye badhai swikariyega....

    जवाब देंहटाएं
  14. पुरूष के समस्त कर्मों की प्रेरक स्त्री है --
    स्त्री है तो पुरूष है --
    स्त्री - पुरूष हैं तो समाज और प्रकृति सुरक्षित हैं ।
    समस्त प्रकृति की रक्षा के लिए स्त्री का सुन्दरीकरण ,सशक्तीकरण और समरस स्त्री-पुरूष संबंधों का विकास आवश्यक होगा ।

    आदरणीय अरविंद जी ,
    आप जैसा ही यदि हर पुरुष सोचे और नारियों के लिए इतने सम्मान जनक भाव रखे तो बहुत शीघ्र ही हमारे देश क्या पूरे विश्व में स्त्रियों को वह स्थान मिल जाय जिस सम्मान की वह हकदार है .अच्छे लेख एवं काव्य के लिए साधुवाद .
    हेमंत कुमार

    जवाब देंहटाएं
  15. vaah kitna achha likha hai aapne....agle post ka intzaar rahega

    जवाब देंहटाएं
  16. आपने बहुत अच्छा लिखा है.आपके विचार जानकार ख़ुशी हुई. अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा.
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  17. Hi Mr. Pandey,
    Thanks for your mail. Now i am a big fan of yours.:)
    I am not very good in hindi but still thoroughly enjoyed it.
    Keep writing.

    जवाब देंहटाएं
  18. well-versed poem and rightly placed explanation..thanks for such a nice creation of words..

    जवाब देंहटाएं
  19. vishwa ko aur jabala, virgin mary, sushmita sen ki zaarorat hai...

    ...nari uddhar ko bhi !!


    aap bahut accha likhte hain !!

    जवाब देंहटाएं
  20. DIG Pandey,
    You are already a hero for many NRIs here in USA. :)
    Many read my tribute to you and have appreciated you greatly.
    I am very happy. people appreciate honest work. and you are indeed doing one.

    जवाब देंहटाएं
  21. hi sir,
    the poem was extremely well written. stupendous effort i must say.thnks for visitin my blog.
    lookin forward to more posts by you.
    keep writing :)

    जवाब देंहटाएं
  22. आदरणीय पाण्डेय जी ,
    नारियों के लिए आपके द्वारा किया गया यह prayas बहुत achchha लगा .kash की हर bharteeya के andar यह bhavanaa aa jay ....apkii इस कोशिश के लिए meree हार्दिक shubhakamanayen .

    जवाब देंहटाएं
  23. aapke blog par sanyog se aa gya...

    jb ye dekha ki ye ek police wale ka blog h to thodi der ke liye stabdh rah gya...

    kya kariyega kbhi kbhi mind-set ke karan aadami dhokha kha jata h..

    bahut sundar soch h aapki...

    जवाब देंहटाएं
  24. समस्त प्रकृति की रक्षा के लिए स्त्री का सुन्दरीकरण ,सशक्तीकरण और समरस स्त्री-पुरूष संबंधों का विकास आवश्यक होगा ।

    Wonderful thoughts ..impressive profile page !!!

    जवाब देंहटाएं
  25. पुरूष के समस्त कर्मों की प्रेरक स्त्री है --
    स्त्री है तो पुरूष है --
    स्त्री - पुरूष हैं तो समाज और प्रकृति सुरक्षित हैं ।
    वस्तुतः सामाजिक प्राकृतिक विकास का कोई भी कार्य सशक्त एवं समरस स्त्री-पुरुष संबन्धो के अभाव में सम्पन्न नही हो सकता।
    किन्तु, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विद्यमान पितृसत्तात्मक सामाजिक कुरीतियाँ यथा- दहेज प्रथा, मादा-भ्रूण-हत्या, बाल-विवाह, नारी-अशिक्षा... सदियों से हमारे समाज, हमारी प्रकृति को खोखला कर रही है...विडम्बना तो यह है कि कहीं न कहीं पुरूष के समस्त दुष्कर्मों की प्रेरक भी स्त्री ही है...किन्तु आज इन समस्याओं पर विचार कर उनके समाधान की तरफ कदम बढाने का वक्त आ चुका है।
    कविवर मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में कहें तो...
    "हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी,
    आओ विचारें आज मिलकर हम ये समस्याएँ सभी"

    इस सामाजिक उत्थान परक विचार के सार्थक प्रसार हेतु आपको कोटि-कोटि साधुवाद.....

    "उत्तिष्ठतः जाग्रतः प्राप्यवरान्निबोधतः"
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  26. आपकी रचना पढ़ कर अच्छा लगा.aapki सोच को सलाम मै आपके ब्लॉग पर संयोग से आ गया लेकिन आज यह संयोग बहुत अच्छा रहा ,आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा .....इतना सब कैसे कर लेते है.....कभी हमारे ब्लॉग पर दस्तक दे....

    जवाब देंहटाएं
  27. आपकी रचना पढ़ कर अच्छा लगा.aapki सोच को सलाम मै आपके ब्लॉग पर संयोग से आ गया लेकिन आज यह संयोग बहुत अच्छा रहा ,आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा .....इतना सब कैसे कर लेते है.....कभी हमारे ब्लॉग पर दस्तक दे....

    जवाब देंहटाएं
  28. Your blog is indeed unique, enjoyed reading hindi after ages...perhaps a decade...thanx a bunch Arvind for following my blog...it is indeed encouraging. I shall stop by your blog often for inspiration :))

    best
    -nivi

    जवाब देंहटाएं
  29. Yah to bahut lamba ho gaya..koi bat nahin... Wishing "Happy Icecream Day"...
    See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"

    जवाब देंहटाएं
  30. इस सुंदर पोस्ट के लिये आपका आभार . स्त्री आंदोलन को बिना किसी परचम के आप खूब सहयोग कर रहे हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  31. स्त्री सशक्तीकरण एक सीमा तक ही आवस्यक है न की पूरी तरह से स्त्री का सशक्तीकरण कर दिया जाये !
    समस्त प्रकृति की रक्षा के लिए स्त्री सशक्तीकरण अनावश्यक होगा ।

    आमोद कुमार

    जवाब देंहटाएं
  32. Shri Pandey Ji ko sadar Pranam!
    Apke Vicharon se Avgat hue aour aapke protshahn se dhanya.!

    Abhar

    जवाब देंहटाएं
  33. jai shree radhe radhe mujhe aapke dwara likhe gye he bhut he achehe maa ke ley ek naari ke ley uska ye adhi kaar he.jai shree radhe radhe

    जवाब देंहटाएं
  34. I have been browsing online more than 3 hours today,
    yet I never found any interesting article like yours. It's pretty worth enough for me. Personally, if all web owners and bloggers made good content as you did, the internet will be much more useful than ever before.
    Visit my web site :: hemorrhoid miracle

    जवाब देंहटाएं

आप यहाँ अपने विचार अंकित कर सकते हैं..
हमें प्रसन्नता होगी...