सोमवार, 30 जुलाई 2012

ज्ञानिनामपि चेतान्सि देवी भगवती हि सा ..


श्रीकृष्णार्पणमस्तु  

करते  थे जो शीश झुकाकर चरणों में अभिवादन.
आज उन्हीं से  मांग रहे तुम सत्ता  हेतु समर्थन.
अमृत-पंथ के पथिक ! तुम्हें जाना था अम्बर पार.
किन्तु  'मार' से विजित देख तुमको हंसता संसार.

जिस निषिद्ध फल का प्रचार जब में तुमको करना था.
किसे ज्ञात था स्वयं तुम्हें भी,खाकर फल, गिरना था.


ज्ञान-संपन्न ऋषियों के भी चित्त को भगवती बलात ही मोह की ओर प्रवृत्त करती हैं.. आश्चर्य नहीं हो रहा मुझे कि अभी कुछ ही समय पूर्व जिसके चरणों में शीश झुकाकर शक्तिशाली लोग शिक्षा ग्रहण करते थे , वही उनसे समर्थन के लिए भिक्षाटन कर रहा. 


© अरविंद पाण्डेय