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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

पंडित दीनदयाल उपाध्याय - एक राहुग्रस्त सूर्य

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक "राष्ट्र चिंतन" और "राष्ट्र जीवन की दिशा" मैंने हाई स्कूल के विद्यार्थी के रूप में पढी थी...
    अनेक विस्मयकारी और मौलिक चिंतन से समृद्ध इन पुस्तकों में "मैं और हम" शीर्षक लेख मुझे आजतक हर सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या और उनके समाधान के अन्वेषण के समय एक सम्पूर्ण समाधान के रूप में दिखाई देता है..यह लेख शाश्वत और सार्वभौम चिंतन का एक उच्छल सागर है..इस लेख को आधार बनाकर अनेक ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं... 
     1967 के संसदीय निर्वाचन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पवित्र नेतृत्व में भारतीय जनसंघ को 35 संसदीय क्षेत्रों में विजय प्राप्त हुई थी जो अभूतपूर्व और अप्रत्याशित मानी गयी थी किन्तु इससे यह सिद्ध हो गया था कि भारतीय जनमानस राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति से अनुप्राणित है और यदि उसकी इस प्रसुप्त राष्ट्रवादी चेतना को जागृत किया जाय तो भारतीय राष्ट्रीय चेतना का महजागरण सम्भव है..
    1967 में उनके प्रखर नेतृत्व को यह सफलता प्राप्त होती है और 1968 की फरवरी में ही उनकी अतिरहस्यमय रूप से हत्या कर दी जाती है..
    उनकी हत्या के बाद उनका शव तत्समय मुगलसराय सराय नामक रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों पर पाया गया था जब वे पटना के लिए रेलयात्रा पर थे..
    इस प्रकरण में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उन्हें उस दिन लखनऊ से दिल्ली जाना था किंतु पटना से एक महत्वपूर्ण व्यक्ति ने फोन कर उन्हें पटना के किसी कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया और उन्होंने लखनऊ से दिल्ली की यात्रा की जगह लखनऊ से पटना के लिए प्रस्थान किया और उनकी हत्या कर दी गयी..
     इस रहस्यमयी हत्या का अनुसंधान सीबीआई ने किया और आश्चर्यजनक रूप से सीबीआई, इस अतिमहत्वपूर्ण हत्या के षड्यंत्र पक्ष पर कोई साक्ष्य संकलित नहीं कर सकी..
    "एकात्म मानववाद" उनका एक अभूतपूर्व चिंतनपरक ग्रंथ है जिसमें उनकी एक और सार्वभौम शाश्वत चिंतन की मंदाकिनी है जिसमे स्नान करके कोई भी व्यक्ति अपने सामाजिक व्यक्तित्व को शुद्ध और पवित्र कर सकता है.. 
    बाद में उन्हीं के अनुयायियों द्वारा "गांधीवादी समाजवाद" शब्द द्वारा कुछ नया करने की वासना में इस एकात्म मानववाद के विचार को प्रतिस्थापित कर दिया गया.
      दीनदयाल जी की अनेक पुस्तकों में से एक अतिशय रोचक और प्रेरक पुस्तक  "सम्राट चंद्रगुप्त" भी है जो उन्होंने चुनार के किले में प्रवास करते हुए 24 घण्टे के अंदर ही लिखकर पूर्ण की थी..
     दीनदयाल जी यद्यपि भारतीय जनसंघ नामक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष थे किन्तु उनकी पुस्तकों और उनके दर्शन का अवगाहन प्रत्येक भारतीय को स्वयं को बौद्धिक रूप से समृद्ध करने हेतु किया जा सकता है... 
     आज ऐसे तपस्वी को उनके महाप्रयाण दिवस पर विनत श्रद्धांजलि 🌹
🇮🇳 अरविन्द पाण्डेय 🇮🇳