आज स्वर्णिम अमृत, मधुरिम,
दान करने मुक्त मन से.
स्मित-वदन सविता, धरा पर,
उतर आए थे गगन से.
पर, यहाँ पर व्यस्त थे सब,
स्वर्ण-मुद्रा संकलन में.
अमृत का था ध्यान किसको,
भक्ति थी श्वोभाव धन में.
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स्मित-वदन = जिसके चेहरे पर मुस्कान हो .
श्वोभाव = ephemeral = अल्पकालिक -- यह शब्द कठोपनिषद में प्रयुक्त है.
श्वः भविष्यति न वा अर्थात जो कल रहेगा या नहीं रहेगा - यह सुनिश्चित न हो - ऐसी वस्तु
= शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तु .
-- अरविंद पाण्डेय