वृन्दावन के निभृत कुञ्ज में श्री राधा-वनमाली .
स्वच्छ शिला पर बैठे थे , छाया करती थी डाली.
लोध्र पुष्प-रज से राधा का करते केशव श्रृंगार.
योगी थे साश्चर्य , देख , योगेश्वर का व्यापार .
प्राचीन काल में लाल रंग के लोध्र पुष्प के पराग के लेप से मुख का श्रृंगार किया जाता था.
कालिदास ऩे मेघदूत में लिखा है:
नीता लोध्रप्रसवरजसा पांडुतामानने श्री:
निभृत = एकांत.
साश्चर्य = आश्चर्य से युक्त.
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