मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

कोटि कोटि सूर्यों की आभा एक ज्योति में हुई प्रविष्ट

जगन्माता धूमावती -यन्त्र 


महानिशा में किया प्रज्ज्वलित माँ को अर्पित दीप,विशिष्ट 
कोटि कोटि सूर्यों की आभा एक ज्योति में हुई प्रविष्ट.
देखा सूर्य - चन्द्र को लेते जन्म और फिर देखा अंत.
देखा माँ की मधुर-मूर्ति , फिर देखा भीषण रूप , दुरंत.


सो अकामयत एकोsहं बहुस्यां प्रजायेय .. 
उन्होंने -- ईश्वर ऩे कामना की कि मैं एक हूँ , अनेक को जन्म दूं... 
और ये अनंत अपरिसीम ब्रह्माण्ड उत्पन्न हो गया.. 

पृथ्वी माता , प्रति सेकेण्ड ३० किलोमीटर की गति से , भगवान सूर्य की परिक्रमा कर रही हैं.. 
एक सेकेण्ड के लिए भी उनकी यात्रा रुकी नहीं .. जन्म से अब तक... 

क्या हम पृथ्वी पर अपने अपने अहंकार में डूबे हुए लोगो को यह  अनुभव होता है कि हम एक ऐसे पिंड पर जीवन बिता रहे हैं जो इतनी तेज़ गति से यात्रा कर रहा है अंतरिक्ष में.. 

विज्ञान कहता है की जिस दिन मनुष्य को यह अनुभव हो जाय , उस व्यक्ति की तुरंत मृत्यु हो जायेगी..

-- अरविंद पाण्डेय