परावाणी : The Eternal Poetry
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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011
कभी खाब में बोल उठा मैं ..
कभी मुझे पंडित ऩे समझा,
मैं , मंदिर जाने वाला.
कभी मौलवी का गुमान था ,
मैं , कुरान पढ़ने वाला.
कभी खाब में बोल उठा मैं
अल्लाहुम , गोविन्द कभी,
सभी तरह की मदिरा से
महकी है, मेरी मधुशाला.
-- अरविंद पाण्डेय
मेरे घर का छोटा आँगन
हरसिंगार,रजनीगंधा के
वृक्ष बने हैं मधुबाला .
मृदु-समाधि में धीरे धीरे,
ले जाती सुगंध-हाला .
कभी किसी के द्वार न जाता ,
मैं मधुरिम मधु पीने को,
मेरे घर का छोटा आँगन
ही है मेरी मधुशाला.
-- अरविंद पाण्डेय
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