पुष्प से कंटक का संयोग =========== |
स्वप्न :पृष्ठ ५
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२१
मनुज का सत्त्व-संवलित कर्म
सतत करता है आत्म-विकास.
तथा गंतव्य दिशा की और
दिखाता है वह अमल प्रकाश.
२२
प्रभा से पा विकास का लाभ,
कर्म होता है परम अमंद.
कर्म-पूर्णत्व-प्राप्ति पश्चात,
मनुज पाता है परमानंद.
२३
पुष्प से कंटक का संयोग,
कर रहा था यह वाणी सिद्ध-
'''मनुज का जीवन यह सुकुमार,
विपुल विघ्नों से है आविद्ध.''
२४
''सभी कंटक का जब कर नाश,
वीर सा करता है सत्कर्म,
प्रकृति करती है तब साहाय्य,
साथ देता है उसका धर्म.''
२५
वहीं पर एक वृक्ष के पास,
रुदन करता था अफल अनंग.
सत्त्व-गुण मध्य गमन से आज,
हो गया था उसका मद-भंग.
--- अरविंद पाण्डेय
क्रमशः
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शब्दार्थ
अनंग=कामदेव.
आविद्ध=घिरा हुआ.
अमंद= बाधा से मुक्त