संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ
यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा.
नरेंद्र मार्गाट्ट इव प्रपेदे
विवर्णभावं स स भूमिपालः
राजमार्ग-संचरण कर रही दीप शिखा सी, इंदुमती.
वरण हेतु आए जिस वर को छोड़,बढ़ चली, मानवती.
उस नरेंद्र का हुआ मुदित मुखमंडल,सद्यः कांति-विहीन.
दीपशिखा-रथ बढ़ जाने से पथ-प्रासाद हुआ ज्यों दीन.
कालिदास की सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वरमणीय उपमा का उदाहरण-
यह देवी इंदुमती के स्वयंवर का वर्णन है रघुवंश का.
वे वरमाला लेकर वर के वरण हेतु संचरण कर रही हैं..............................शेष आप दृश्य को अपनी चेतना में रूपायित करें और सहृदय-हृदय-संवेद्य रस-स्वरुप होकर , अलौकिक आनंद का भोग करे..
कालिदास जी की काव्य रचना में भी इतना अच्छा विवरण नहीं होगा जितना आपके कविता में हैं "सहृदय-हृदय-संवेद्य रस-स्वरुप होकर , अलौकिक आनंद का भोग" परन्तु यह दैनिक जीवन में संभव नहीं दिखता हैं , आपकी संस्कृत तो अति उत्कृष्ट हैं ......
जवाब देंहटाएंमै करता हूँ दैनिक जीवन में ही और आप साक्षी भी हैं...
जवाब देंहटाएंपरम आदरणीय सर , आप तो बहुमुखी प्रतिभा के प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं , उपरोक्त टिपण्णी हमने अपने जैसे साधारण व्यक्तियों के लिये लिखी हैं ....सादर .
जवाब देंहटाएंसशक्त और सटीक अनुवाद।
जवाब देंहटाएंअतीव सुन्दरं विवरणम्।। यदि कालिदासः जीवित:अभविष्यति व्याख्येमं दृष्ट्वा निश्चयेन महदानन्दम् आनुभविष्यति।।
जवाब देंहटाएंनूनमेवानुवादस्य प्रतिदर्श इवानुवादस्ते।।
जवाब देंहटाएंउपमा अलंकारस्य सर्वोत्कृष्ट उदाहरण अस्ति।
जवाब देंहटाएंउपमा अलंकारस्य सर्वोत्कृष्ट उदाहरण अस्ति।
जवाब देंहटाएंकालिदास जी की अद्भुत रचना
जवाब देंहटाएंIT'S A WONDERFUL DESCRIPTION OF THE PROWESS OF THE GREAT WRITER KALIDASA.
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