आदमी बस चल रहा है.
यह बिना जाने
कि जाना है कहाँ , कैसे , किधर,
वक़्त उसका बेवजह ही ढल रहा है.
आदमी बस चल रहा है.
खुद उसी की आरजू ने
आग दिल में जो लगाईं,
वह उसी दोज़ख में बेबस ,
रात दिन बस जल रहा है.
आदमी बस चल रहा है.
-- अरविंद पाण्डेय
====================
दोज़ख = नरक