हर दिल का अँधेरा मिटाने आई है ये ईद
इक नूर का दरिया बहाने आई है ईद
अफ़ज़ल दुआ मानिंद खुदा को है ये कबूल
कुरआन की अजमत बताने आई है ये ईद
इंसान की शैतानियत में बह गया इंसान
बहते हुए आंसू को पीने आई है ये ईद
वहशत की आग, ज़ुल्म की लपटों में जो जले
दिल पर उन्हें मरहम लगाने आई है ये ईद
----अरविंद पाण्डेय