ॐ : आमीन
तुम ही पुष्पों में परिमल बन महक रहे हो,
तुम्हें कौन सा कुसुम चढाऊं..
जिसकी सुरभि न तुम्हें मिली हो,
ऐसा फूल कहाँ से लाऊं.
तुम भास्कर बन सकल जगत को भासित करते,
तुम्हें कौन सा दीप दिखाऊं,
जो तुमको प्रकाश से भर दे ,
ऐसा दीप कहाँ से लाऊं..
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
तृप्त कर सकूँ कैसे तुमको
जवाब देंहटाएंधनयवाद प्रवीण जी
जवाब देंहटाएं