श्री राधा म्रदुभाषिणी मृगदृगी माधुर्यसन्मूर्ती थीं . ''प्रियप्रवास'' महाकाव्य में श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय ' हरिऔध' ------------------------------------- |
तेरी रहमत,मेरी आँखों से दिल में यूँ उतरती है
कि जैसे शम्स की किरनें उतरती हैं खलाओं में .
कि जैसे खुश्क मौसम में कोई राही परेशां हो,
मगर,बस यूँ अचानक,इत्र घुल जाए हवाओं में.
कि जैसे आसमां में हो कोई आवारा सा तारा .
मगर मिल जाए उसको ताज कोई कहकशाओं में
तेरी रहमत , मेरी आँखों से दिल में यूँ उतरती है ,
कि चिड़िया का कोई बच्चा ज्यूँ हो माँ की पनाहों में.
अरविंद पाण्डेय