श्रीरामभद्रः विजयते:
मिले तर्क से परे ,तुम्हारे होनें की अनुभूति.
प्रतिपल,प्रतिपदार्थ में तुम हो-बस हो यही प्रतीति .
समय नहीं,अब कृपा करो अभिराम-रूप हे राम.
हर ध्वनि जो मैं सुनूं गूंजता हो उसमे बस ''राम''.
राम तुम्हारा नाम लिए फिरते हैं जो बाज़ार..
राम तुम्हारा नाम लिए फिरते हैं जो बाज़ार..
मंदिर जिनकी राजनीति है, रामभक्ति व्यापार.
उन्हें कहो अब तुम्हीं, किसी की बात रहे ना मान.
मंदिर का करें पहले भारत-निर्माण.
उन्हें कहो अब तुम्हीं, किसी की बात रहे ना मान.
मंदिर का करें पहले भारत-निर्माण.
शिला-शिला थी पावन जिसकी,जो आपका निवास.
खंड खंड कर उसे , दिया लाखों जन को संत्रास.
सत्ता में रह किया जिन्होंने पौरुष का अपमान.
कंदहार में बेचा सारे भारत का अभिमान.
जिन्हें न चिंता राम-रूप मानव का हो उत्कर्ष.
कहीं,किसी को कष्ट नहीं हो, सब में हो बस हर्ष.
दैहिक,दैविक भौतिक तापों से समाज हो मुक्त.
राजनीति में वही तुम्हारा,करते, नाम,प्रयुक्त.
कह दो उनसे कण कण में तुम दीप रहे हो, राम !
कह दो उनसे हर मानव का हृदय तुम्हारा धाम .
कह दो-''मुस्लिम भी, ईसाई भी हैं मेरे पुत्र.
मंदिर जैसा मस्जिद भी है सबके लिए पवित्र.''
----अरविंद पाण्डेय