जिनके कराल-मुख में प्रविष्ट होकर, विनष्ट होते नक्षत्र.
जो घनीभूत स्वयमेव तमोगुण किन्तु,सृजन करतीं सर्वत्र.
जिनके करूणा-कटाक्ष से मैं हूँ आप्तकाम,निष्काम,अकाम.
उन श्री दक्षिण काली के श्री चरणों में मेरा कोटि प्रणाम.
बहुत दिनों की मेरी कामना थी कि - रामकृष्ण परमहंस के लिए जीवंत किन्तु अज्ञान से ढकी हुई आँखों के लिए प्रस्तर-मूर्ति मात्र , जगन्माता दक्षिणेश्वर कालिका का, दक्षिणेश्वर जाकर, दर्शन करूं..यह मनोकामना पूरी हुई..
गगन-मार्ग से यात्रा के क्रम में भगवान् सविता के दर्शन के अनुभव पर कुछ पंक्तियाँ कल..
अरविंद पाण्डेय