बुधवार, 4 जनवरी 2012
किसी ऩे याद किया और कोई याद आया.
शनिवार, 24 दिसंबर 2011
मैं जीसस हूँ,माता मरियम का यश, उज्जवल
25 दिसंबर
१ .
मैं जीसस हूँ,माता मरियम का यश उज्ज्वल
मैं,ईश्वर का प्रिय-पुत्र,धरा की कीर्ति अमल
मुझसे निःसृत होती करूणा की परिभाषा
मिटते जीवन को मिल जाती मुझसे आशा
है शूल-विद्ध मेरा शरीर , बह रहा रक्त
पर, मैं हूँ शुद्ध,बुद्ध आत्मा,शाश्वत विरक्त
२.
मैं, मेरी मैडगलिन के अंतर्मन का स्वर
मैं ,मानवता की महिमा का मूर्तन,भास्वर
मैं रक्त-स्नात करूणा से ज्योतित क्षमा-मूर्ति
मैं क्रूर आततायी की हूँ कामना-पूर्ति
मैं अपरिसीम ,अव्यक्त वेदना का समुद्र
मुझमें मिलकर अनंत बन जाता,क्षणिक,क्षुद्र
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आज भी,
यदि कोई, किसी को शूली पर चढ़ा दे,
शूल की भयानक वेदना से वह व्यक्ति तड़प रहा हो,
रक्त बहता जा रहा हो,
बेहोशी छाती जा रही हो,
और ऐसे में ,ऐसा व्यक्ति
शूली पर चढाने वाले के लिए अपने पिता
परमेश्वर से प्रार्थना करे कि -
'' हे पिता ! इन्हें क्षमा करना क्योकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं..''
तब,
ऐसे व्यक्ति को,
आज भी सारा विश्व
ईश्वर का पुत्र
कह कर पुकारेगा.
जीसस क्राइस्ट ईश्वर के पुत्र थे !
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आज भी,
यदि कोई, किसी को शूली पर चढ़ा दे,
शूल की भयानक वेदना से वह व्यक्ति तड़प रहा हो,
रक्त बहता जा रहा हो,
बेहोशी छाती जा रही हो,
और ऐसे में ,ऐसा व्यक्ति
शूली पर चढाने वाले के लिए अपने पिता
परमेश्वर से प्रार्थना करे कि -
'' हे पिता ! इन्हें क्षमा करना क्योकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं..''
तब,
ऐसे व्यक्ति को,
आज भी सारा विश्व
ईश्वर का पुत्र
कह कर पुकारेगा.
जीसस क्राइस्ट ईश्वर के पुत्र थे !
माता मरियम ,
जीसस
और
मेरी मैडगलिन
को
नमन
----अरविंद पाण्डेय
शनिवार, 17 दिसंबर 2011
तो फिर कुछ बात होगी.
तुम आये साथ जो मौसम के तो आना भी क्या आना.
बिना मौसम अगर आओ तो फिर कुछ बात होगी.
अगर , बूंदों को मुझसे है मुहब्बत तो मेरे घर,
बिना मौसम, मेरी खातिर ही , बस, बरसात होगी.
प्रह्लाद जी ऩे कहा , '' हाँ , इसमें भी वे श्री हरि निवास करते हैं..''
इतना सुनते ही मृत्यु के वशीभूत उस महाराक्षस ऩे अपने खड्ग से उस खम्भे पर प्रहार किया ..
श्री मद्भागवत में वर्णित है कि -- प्रहलाद के वचन को सत्य सिद्ध करने के लिए श्री हरि उस खम्भे से नृसिंह रूप में प्रकट हो गए.................''
जिन लोगो ऩे श्रीमद्भागवत का पाठ एवं मनन नहीं किया , मेरी दृष्टि में, वे एक विलक्षण असीम , अनंत आनंद के भोग से वंचित हैं...
इन चार पंक्तियों में उसी महाभाव को प्रकट किया गया है कि जब, जहाँ जो नहीं है , वह , वहाँ भी प्रकट हो सकता है यदि दर्शक और दृश्य में अनन्य सम्बन्ध हो .. यदि यह नहीं तो दृश्य , अपनी प्रकृति अर्थात अपने स्वार्थ के अनुसार ही दर्शक के समक्ष प्रकट होता है और दर्शक को भ्रम होता है कि वह दृश्य , उसके लिए प्रकट हुआ.. संसार में यही दिखाई देता है .. सूर्य , चन्द्र, तारक, पुष्प, फल, आदि अपनी प्रकृति के वशीभूत उदय-अस्त , प्रफुल्ल-शुष्क हो रहे किन्तु .. मनुष्य-मनुष्य के बीच सारे सम्बन्ध इसी प्रकृति के हैं ..किन्तु , मोह और अज्ञानवश प्रेम , स्नेह का भ्रम होता है...
स्वामी विवेकानंद ऩे माया की व्याख्या करते हुए कहा -- पुत्र, माता का अपमान करता है, किन्तु माता , पुत्र के प्रति स्नेह ही रखती है,, यही माया है.......,
-- अरविंद पाण्डेय
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011
गुरुवार, 1 दिसंबर 2011
सोमवार, 28 नवंबर 2011
मेरी खुद की मधुशाला
नहीं बनाया कभी किसी ने,
अपनी मर्जी की हाला.
अपना कह कर सभी पी रहे,
किसी दूसरे का प्याला.
किन्तु, हाथ में मेरे, जो तुम
देख रहे हो चषक नया,
उसे भेजती, हर दिन, मुझ तक,
मेरी खुद की मधुशाला.
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चषक = प्याला
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ऋषयो मन्त्र द्रष्टारः
उपनिषद् कहते हैं की ऋषियों ने मन्त्रों का दर्शन किया , उन्हें लिखा या उनकी रचना नहीं की जैसे कवी या लेखक करते हैं.. यह व्यवहार में भी देखा जाता है कि जो जिस कवि या लेखक में अनुभूति जितनी ही गहन होती है उसकी कविता या साहित्य उतना ही प्रभाव उत्पन्न करता है ..
सदा से ही अधिकांश धर्म के प्रवाचकों में स्वयं के अनुभव का अभाव रहता है.. वे किसी तथाकथित गुरु या सम्प्रदाय के ग्रंथों को पढ़कर या याद करके उसे ही लोगो को सुनाया करते हैं और लोग उनका अनुकरण करना प्रारम्भ कर देते हैं ..
मेरी उपर्युक्त कविता इसी भाव को प्रस्तुत करती है...
मानो '' हाला '' वह अनुभूति है जो किसी साधना से साधक को प्राप्त होती है..
'' किसी दूसरे का प्याला '' का अर्थ दूसरे संत द्वारा अनुभव किया गया ज्ञान ..
अधिकांश कथित संत या धर्म-प्रवक्ता किसी दूसरे के अनुभव को ही बताते हैं...
'' मेरी खुद की मधुशाला '' मेरी आत्मा , मेरा अपना अनुभविता ..
जो मैं स्वयं हूँ..
सोऽहं !
सोऽहं !
सोऽहं !
-- अरविंद पाण्डेय
रविवार, 27 नवंबर 2011
अब मेरी है मधुशाला ..
२७ नवम्बर
पान किया जब छक कर मैंने ,
बच्चन की यह मृदु हाला.
बुझा ह्रदय का ताप, बन गया ,
मैं भी मधु का मतवाला .
अब तो जग को भूल, मग्न हूँ,
मैं ,मय के मृदु सागर में,
और किसी की नहीं विश्व में,
अब मेरी है मधु शाला.
आज श्री हरिवंश राय बच्चन के जन्म दिवस पर, मैं अपने द्वारा १५ वर्ष की उम्र में लिखे गए उस छंद को प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मैंने अपने पिता जी द्वारा दी गई '' मधुशाला '' के प्रथम पृष्ठ पर अंकित किया था..
--- अरविंद पाण्डेय
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शनिवार, 26 नवंबर 2011
Learn to Respect the Protectors
२६ नवम्बर
आहत ताज
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जीना है यदि स्वाभिमान से ,
पीना है मधुरिम हाला.
रक्षक का सम्मान सुरक्षित
रक्खे हर पीने वाला.
जिस जिस मदिरालय में ऐसा
नहीं हुआ, तो फिर सुन लो.
भक्षक के कब्ज़े में होगी
जल्दी ही वह मधुशाला.
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पुलिस वह रक्षक-संगठन है जो प्रतिदिन , रात-दिन ,हमारी रक्षा में तत्पर रहता है ..अपनी लाख कमियों के बावजूद, पुलिस ही है जो ताज होटल और ताजपोशी के सपने के साथ जी रहे लोगों की और बिना सोचे समझे ताजपोशी किसी की भी कर देने वाले आम लोगो की रक्षा करती है..
हम भारत के लोगों को चाहिए कि हम अपने रक्षकों का भी सुखद जीवन सुनिश्चित करें और उन्हें सम्मान देना सीखें ..इसके लिए हमें चाहिए कि हम पश्चिम के विकसित देशों में पुलिस को दी जा रही सुविधाओं और सम्मान समतुल्य ही अपने देश में भी पुलिस को वही सुविधाएं और सम्मान दें...
-- अरविंद पाण्डेय
सोमवार, 21 नवंबर 2011
Mere Mehboob Tere Dam Se Aravind Pandey Sings Rafi .wmv
मेरे सुर जब भी मिलते हैं रफ़ी के सुर से , या अल्लाह !
तेरे रहम-ओ-करम की इस अदा से इश्क होता है.
-- अरविंद पाण्डेय
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