25 दिसंबर
१ .
मैं जीसस हूँ,माता मरियम का यश उज्ज्वल
मैं,ईश्वर का प्रिय-पुत्र,धरा की कीर्ति अमल
मुझसे निःसृत होती करूणा की परिभाषा
मिटते जीवन को मिल जाती मुझसे आशा
है शूल-विद्ध मेरा शरीर , बह रहा रक्त
पर, मैं हूँ शुद्ध,बुद्ध आत्मा,शाश्वत विरक्त
२.
मैं, मेरी मैडगलिन के अंतर्मन का स्वर
मैं ,मानवता की महिमा का मूर्तन,भास्वर
मैं रक्त-स्नात करूणा से ज्योतित क्षमा-मूर्ति
मैं क्रूर आततायी की हूँ कामना-पूर्ति
मैं अपरिसीम ,अव्यक्त वेदना का समुद्र
मुझमें मिलकर अनंत बन जाता,क्षणिक,क्षुद्र
==============
आज भी,
यदि कोई, किसी को शूली पर चढ़ा दे,
शूल की भयानक वेदना से वह व्यक्ति तड़प रहा हो,
रक्त बहता जा रहा हो,
बेहोशी छाती जा रही हो,
और ऐसे में ,ऐसा व्यक्ति
शूली पर चढाने वाले के लिए अपने पिता
परमेश्वर से प्रार्थना करे कि -
'' हे पिता ! इन्हें क्षमा करना क्योकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं..''
तब,
ऐसे व्यक्ति को,
आज भी सारा विश्व
ईश्वर का पुत्र
कह कर पुकारेगा.
जीसस क्राइस्ट ईश्वर के पुत्र थे !
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आज भी,
यदि कोई, किसी को शूली पर चढ़ा दे,
शूल की भयानक वेदना से वह व्यक्ति तड़प रहा हो,
रक्त बहता जा रहा हो,
बेहोशी छाती जा रही हो,
और ऐसे में ,ऐसा व्यक्ति
शूली पर चढाने वाले के लिए अपने पिता
परमेश्वर से प्रार्थना करे कि -
'' हे पिता ! इन्हें क्षमा करना क्योकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं..''
तब,
ऐसे व्यक्ति को,
आज भी सारा विश्व
ईश्वर का पुत्र
कह कर पुकारेगा.
जीसस क्राइस्ट ईश्वर के पुत्र थे !
माता मरियम ,
जीसस
और
मेरी मैडगलिन
को
नमन
----अरविंद पाण्डेय
बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमैं, मेरी मैडगलिन के अन्तस्तल का स्वर
जवाब देंहटाएंमैं ,मानवता की महिमा का मूर्तन भास्वर....
^
^
ये पंक्ति बहुत ही...... सुंदर पंक्ति है .
पर ....
मैं अपरिसीम , अव्यक्त वेदना का समुद्र
मुझमें मिलकर,अनंत बन जाता, क्षणिक,क्षुद्र
इसका अर्थ समझ में नहीं आ रहा है. क्या आप इसकी व्याख्या कर सकते है ?
धन्यवाद .....
bahut badhiya lekhni
जवाब देंहटाएंजीसस और उनकी प्रियतम-शिष्या मेरी मैडगलिन की बहुत ही सुंदर तस्वीर है !बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है, आपने !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
बहुत अच्छी रचना है ।
जवाब देंहटाएंमैं अपरिसीम अव्यक्त वेदना का समुद्र
जवाब देंहटाएंमुझमें मिलकर अनंत बन जाता
क्षणिक क्षुद्र....
उन अनत शक्ति की शरण में असीम शांति की प्राप्ति होती है क्षुद्र से क्षुद्र को भी ...नमन ...!!
बहुत सुन्दर रचना......!!
जवाब देंहटाएंशुभेच्छु
प्रबल प्रताप सिंह
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बेहद खूबसूरत!
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन रचना.
अच्छी रचना है । बधाई .....!!!!!!!
जवाब देंहटाएंvery nice poem....
जवाब देंहटाएंxclnt.....
"मैं अपरिसीम , अव्यक्त वेदना का समुद्र
जवाब देंहटाएंमुझमें मिलकर,अनंत बन जाता, क्षणिक,क्षुद्र"
"" इश्वर अनंत आनंद का समुद्र ""
हमें बचपन से यही सिखाया गया था
"मैं अपरिसीम , अव्यक्त वेदना का समुद्र"
क्या इश्वर अपरिसीम ,अव्यक्त वेदना का समुद्र भी हैं ...???
कृपया इस पंक्ति कि व्याख्या समझाएं
सादर अंशु माला
बहुत सुन्दर कविता अरविन्द जी। जीसस को भारतीयता के रंग में रंग दिया आपने।
जवाब देंहटाएंbahut aachi hai bhaiya
जवाब देंहटाएंarvind ji,
जवाब देंहटाएंmere blog par aap aaye they behad khushi hui. is wajah se aapke blog par aapki rachanyen padhne ka saubhaagya mujhe praapt hua. bahut achha likhte hain aap. manawta aur dharm ke prati aapki buniyaadi soch atyant prabhaawshali hai. aapke soch aur kaarya se desh-samaj ki uttarottar pragati ho shubhkamnayen.