२७ नवम्बर
पान किया जब छक कर मैंने ,
बच्चन की यह मृदु हाला.
बुझा ह्रदय का ताप, बन गया ,
मैं भी मधु का मतवाला .
अब तो जग को भूल, मग्न हूँ,
मैं ,मय के मृदु सागर में,
और किसी की नहीं विश्व में,
अब मेरी है मधु शाला.
आज श्री हरिवंश राय बच्चन के जन्म दिवस पर, मैं अपने द्वारा १५ वर्ष की उम्र में लिखे गए उस छंद को प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मैंने अपने पिता जी द्वारा दी गई '' मधुशाला '' के प्रथम पृष्ठ पर अंकित किया था..
--- अरविंद पाण्डेय
पाठकगण हैं पीने वाले..
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर छंद!
जवाब देंहटाएंDear Arbind Sir Charan Kamalo me sadar Pranam....
जवाब देंहटाएंwaise mai aapko gayatri Yuva Prakosth Kankarbagh Patna me mila hu Aap se bate v hui hai .....
Bhut hi sundar pankti ....Thanks