श्री मनोज नाथ , आई पी एस (१९७३ बैच .बिहार संवर्ग ) |
श्री मनोज नाथ : ३० जून को सेवा निवृत्त हुए और आई पी एस मेस में ३० जून को उनके सम्मान में आयोजित रात्रि-भोज में वे ऐसे लग रहे थे मानो राष्ट्रीय पुलिस अकादमी से बस अभी अभी निकला हुआ कोई आई पी एस प्रोबेशनर हो...एक निरंतर प्रज्ज्वलित बौद्धिक-प्रदीप जिसका आलोक उनके जाने के बाद भी बिहार पुलिस को ज्योतित करता रहेगा.
मैं साक्षी हूँ इस सत्य का कि जिस पद पर आने के लिए प्रत्येक आई पी एस अधिकारी कामना करता है और उस कामना को पूर्ण करने लिए अक्सर उस पद की पवित्रता के पणन को अतिशय सहज भाव से स्वीकार कर लेता है उस पद की ओर उन्होंने उससे भी अधिक सहज होकर, देखा तक नहीं .. श्री मनोज नाथ का स्वागत करने को आतुर वह पद , उन्हें देखता ही रह गया और वे अपनी राह पर चलते गये..और , एक आई पी एस प्रोबेशनर की उन्मुक्त प्रफुल्लता के साथ आई पी एस मेस से ३० जून को अपनी चिरंतन स्वतन्त्रता का आलोक बिखेरते हुए विदा हुए .. सेवा-निवृत्ति के बाद अक्सर लोग कहते हैं कि वे स्वतंत्र नागरिक के अधिकारों का उपभोग करने के योग्य हो गये किन्तु श्री मनोज नाथ , सेवा-काल में भी उस स्वतन्त्रता का भोग-आस्वाद करते रहे जिसकी कल्पना तक करने में दूसरों को भय लगता है..
पटना में रहते हुए मैंने बिहार में अपराध-नियंत्रण के लिए उत्तरदायी माने जाने वाले पद पर विराजमान होते हुए और उस पद से मुक्त होते हुए अनेक लोगो को देखा है किन्तु उस पद पर पदासीन को भी मार्गदर्शन देने की क्षमता से संपन्न अधिकारी को पहली बार देखा था ,, अपनी अतुलनीय गरिमा की प्रभा से आलोकित ,, अपने प्रखर किन्तु फिर भी प्रफुल्लित भाव-प्रवाह के साथ..
मैंने उनके साथ एस पी के रूप में चार साल काम किया .. मेरे वे चार साल अगर मेरी सेवा में नहीं जुड़े होते तो शायद मुझे यह भान भी न होता कि मैंने अपने जीवन में क्या खो दिया .. एक वरीय अधिकारी अपने अधीनस्थ को क्या दे सकता है , उसे कितना मूल्यवान बना सकता है ,, उसमें मूल्यों के प्रति कितनी आसक्ति भर सकता है , यह उन्हें ही पता होगा जिन्होंने उनके साथ काम किया..
बिहार में २२ साल की सेवा-अवधि में डी जी पी के रूप में अगर किसी की याद करके मुझे रोमांच होता है तो वे थे श्री डी पी ओझा .. किन्तु, श्री डी पी ओझा ने डी जी पी के रूप में जो कुछ किया उससे कहीं अधिक गरिमा के साथ, वह सब कुछ और उससे भी अधिक, श्री मनोज नाथ ने बिना डी जी पी बने ही कर दिखाया .. और यह वे ही कर सकते थे..
सेवा नियमों के कारण , बिहार में ,भारतीय पुलिस सेवा के इस सूर्य का प्रकाश-संवरण हुआ है ..और, भारतीय पुलिस सेवा की वर्तमान और भावी पीढ़ी, भविष्य में शायद यह विश्वास भी न करे कि श्री मनोज नाथ जैसे अधिकारी भी हमारी सर्विस में हुआ करते थे ..
जिन्होंने उन्हें पहचाना उनका सौभाग्य था और वे दुर्भाग्यशाली हैं जिन्होंने उन्हें पहचान कर भी नहीं पहचाना ..
श्री मनोज नाथ पहचाने जाने की वासना से मुक्त थे ..
-- अरविंद पाण्डेय
सच है, ऐसे व्यक्तित्वों के साथ कार्य करना एक अनुभव है, श्री नाथ को अनेकों शुभकामनायें...
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