बुधवार, 28 मार्च 2012

तेरे दोनों चारु - चरण को चर्चित करूं , सजाऊँ.

शरण्ये लोकानां तव हि चरणावेव निपुनौ !


अपने हृदय-कमल के कोमल किसलय की माला मैं,
माँ तेरी सुन्दर ग्रीवा में आज मुदित पहनाऊँ,
मन्त्र-पूत प्रज्ञा का सुरभित चन्दन-राग बनाकर 
 तेरे दोनों  चारु - चरण को चर्चित करूं , सजाऊँ.


श्रीजगदम्बार्पणमस्तु 


© अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

किताब-ए-कौम में रोशन जो निशाँ रहते हैं.

वन्दे मातरं ! 

23 मार्च ! 

जेहन में जोश हो, पर , फिर भी होश पूरा हो.
न जिसका सोज़, निशाना कभी अधूरा हो.
किताब-ए-कौम में रोशन जो निशाँ रहते हैं.
उसी को राजगुरु , सुखदेव , भगत कहते हैं.

© अरविंद पाण्डेय 

महाकाल को भी मथकर जो महाप्रलय में करतीं नृत्य.

प्रथमं शैलपुत्री च !

जागृत-जन के लिए सतत जो प्रतिकण में हैं प्रतिपल दृश्य.
कितु,  वही  कालिका , सुप्त को अप्रतीत हैं और  अदृश्य.
महाकाल को  भी  मथकर  जो महाप्रलय में  करतीं नृत्य.
मुझे बोध है मैं उनका प्रिय - पुत्र, और  अनुशासित भृत्य.

© अरविंद पाण्डेय

गुरुवार, 22 मार्च 2012

कि जिंदगी भी जश्न-ए-मौत अब मनाती है.

कृष्णं वन्दे !!

मुझे पता नहीं कि रात है या दिन है अभी, 

बस एक आग है जो खाक किये जाती है .


किसी पहर जो पलक खोल के जहां देखूं,

तो बस लहर सी इक,फलक पे लिए जाती है.


कभी कोयल की कूक सामगान लगती है ,

कभी महकी हवा कुरआन गुनगुनाती हैं .


ये किस मक़ाम पे लाया है मुझे इश्क मेरा ,

कि जिंदगी भी जश्न-ए-मौत अब मनाती है.


© अरविंद पाण्डेय

रविवार, 18 मार्च 2012

बोलो क्या रहस्य है इस मायामय - जग का , राम ..


शिशु की स्वतःप्रफुल्ल हंसी में दिखे आज तुम श्याम .
स्वतः-सुगन्धित सौम्य सुमन में भी तुम थे अभिराम.
किन्तु, दीन कृश-काय पुरुष में तुम निराश से क्यूँ थे,
बोलो क्या रहस्य है इस मायामय - जग का , राम !!

© अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

हर एक गम जो मिला वो मुझे तराश गया.

वासुदेवः सर्वं ! 

हर एक गम जो मिला वो मुझे तराश गया.
मिलीं जो ठोकरें उनसे भी मिला इल्म नया.
बहुत  सी  कोशिशें  हुईं  मुझे   हराने   की,
करम खुदा का, कि शैतान मुझसे हार गया.



सभी मित्रों का स्वागत और नमस्कार...




© अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

मैं खुद भी साथ चल रहा होता तुम्हारे, प्रीस्ट,.


प्रीस्ट वैलेंटाइन का मृत्यु-दिवस ! 



मैं खुद भी साथ चल रहा होता तुम्हारे, प्रीस्ट,
खुल कर जो खड़े होते क्लाडिअस के तुम खिलाफ.
ज़ालिम हो सल्तनत तो ज़रा जोर से कहो.
छुप छुप के इन्कलाब कोई इन्कलाब है.


© अरविंद पाण्डेय




सभी मित्रों का स्वागत और नमस्कार ..

मैं प्रीस्ट वैलेंटाइन द्वारा क्लादिअस के मानवता-विरोधी क़ानून का छुप कर उल्लंघन किये जाने को नापसंद करता हूँ.. उन्हें गांधी जी की तरह खुल कर सिविल नाफरमानी -- सविनय अवज्ञा करनी चाहिए थी..

 अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

तू ही तू बस रहा है दिल के आशियाने में

वासुदेवः सर्वं


हुए हैं रहनुमा बहुत से इस ज़माने में,
सजे हैं शेर नाज़नीं कई , अफसाने में.
मगर तू राह भी,मंजिल भी, रहनुमा भी है .
तू ही तू बस रहा है दिल के आशियाने में.

  अरविंद  पण्डेय 

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

फिरदौस की महकी फिजा जैसी.


वासुदेवः सर्वं 

तेरे  तन  पर  तो  बस  परियां  ही परियां उड़ रही है.
तू  अब तो  हो गई फिरदौस की महकी  फिजा जैसी.
ज़मीन-ओ-ख़ाक  पर  तेरा उतरना है बहुत मुश्किल,
ये कैसा हुआ ये फासला कैसे , हुई  ये इब्तदा  कैसी.

© अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

रोशन चिरागों को बचाता हूँ...



कभी खुद मैं ही बन कर आँधियां दीपक बुझाता हूँ.
कभी फानूस बन, रोशन चिरागों को बचाता हूँ.
अंधेरा भी कभी बनकर सुलाता हूँ जहाँ को मैं,
मैं ही बन रोशनी सूरज की,गुलशन को सजाता हूँ.


© अरविंद पाण्डेय