कृष्णं वन्दे !!
मुझे पता नहीं कि रात है या दिन है अभी,
बस एक आग है जो खाक किये जाती है .
किसी पहर जो पलक खोल के जहां देखूं,
तो बस लहर सी इक,फलक पे लिए जाती है.
कभी कोयल की कूक सामगान लगती है ,
कभी महकी हवा कुरआन गुनगुनाती हैं .
ये किस मक़ाम पे लाया है मुझे इश्क मेरा ,
कि जिंदगी भी जश्न-ए-मौत अब मनाती है.
© अरविंद पाण्डेय
परमहंसीय स्थिति पर पहुँच गये हैं आप...जब द्वन्द्व मिट जाये।
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