शरण्ये लोकानां तव हि चरणावेव निपुनौ !
अपने हृदय-कमल के कोमल किसलय की माला मैं,
माँ तेरी सुन्दर ग्रीवा में आज मुदित पहनाऊँ,
मन्त्र-पूत प्रज्ञा का सुरभित चन्दन-राग बनाकर
तेरे दोनों चारु - चरण को चर्चित करूं , सजाऊँ.
श्रीजगदम्बार्पणमस्तु
© अरविंद पाण्डेय
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