शुक्रवार, 31 मई 2013

ऐसा दीप कहाँ से लाऊं..



ॐ : आमीन 

तुम ही पुष्पों में परिमल बन महक रहे हो,
तुम्हें कौन सा कुसुम चढाऊं..
जिसकी सुरभि न तुम्हें मिली हो,
ऐसा फूल कहाँ से लाऊं.

तुम भास्कर बन सकल जगत को भासित करते,
तुम्हें कौन सा दीप दिखाऊं,
जो तुमको प्रकाश से भर दे ,
ऐसा दीप कहाँ से लाऊं..

अरविंद पाण्डेय
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बुधवार, 15 मई 2013

बहुत कुर्बानियां दी हैं हमारे कुनबे ने...




हर इक शहीद ने दिया जो शहादत देकर,
वही पैगाम मैं ज़िंदा ही देने आया हूँ. 
बहुत कुर्बानियां दी हैं हमारे कुनबे ने, 
मैं इस दफा उन्हीं को जिब्ह करने आया हूँ. 


ये पंक्तियाँ वास्तव में क्रुद्ध-कवि श्री Desh Ratna की एक कविता के पढने के बाद निकलीं...उन्हें धन्यवाद .......... 

.......अब बलिदान के संकल्प का नहीं अपितु राष्ट्र-शत्रुओं की बलि चढाने के संकल्प लेने का युग है............


अरविंद पाण्डेय
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सोमवार, 13 मई 2013

अमृत-विंदु खिचता है ..




श्रीकृष्णार्पणमस्तु 

धरती के अन्तस्तल से जब अमृत-विंदु खिचता है 
ताप, तरणि का संश्लेषित,जब पादप से मिलता है 
मानव  की  निःश्वास-वायु  से  होता  परिसंपुष्ट ,
प्रकृति-नटी के इतने श्रम के बाद पुष्प खिलता है .



अरविंद पाण्डेय
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शनिवार, 11 मई 2013

स्वर भी तुम, अक्षर भी तुम





कृष्णं वन्दे 

तुम स्वर में उतर पड़े हो,
मैं चुप कैसे रह जांऊ .
स्वर भी तुम, अक्षर भी तुम,
मैं तुम्हें लिखूं फिर गाऊं..



अरविंद पाण्डेय
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बुधवार, 1 मई 2013

श्रम से शिव का अभिषेक करें.





मैं श्रमिक ईश के उपवन का, 
मैं ही मादक मधु, मधुवन का. 
मेरे ही श्रम से महक रहा , 
कोना कोना नंदन-वन का. 

श्रम से संकल्प संवरता है, 
श्रम से सौन्दर्य निखरता है. 
जो श्रमिक वही फलदार वृक्ष सा 
मधुर स्वादु फल, फलता है. 


श्रम से शिव का अभिषेक करें. 
आओ श्रम से संताप हरें . 

अरविंद पाण्डेय 
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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

जय जय श्री हनुमान..

हरिः ॐ तत्सत्महाभटचक्रवर्तीरामदूताय नमः 

जब संकट आए कोई , हों व्याकुल मन प्राण.
शत्रु शक्तिशाली करे मारक शर - संधान . 
स्मरण करे एकाग्र हो , करे बस यही गान -
रामदूत रक्षा करो , जय जय श्री हनुमान. 

© अरविंद पाण्डेय..

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

श्री श्री दुर्गा बत्तीस नामावली : स्वर : अरविंद पाण्डेय

श्री श्री दुर्गा बत्तीस नामावली
अरविंद पाण्डेय 
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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

प्रथमं शैलपुत्री च !

ॐ नमश्चण्डिकायै 
प्रथमं शैलपुत्री च !
.......... आप सभी मित्रों को नवरात्र महापर्व के लिए मंगल कामनाएँ ! ...........
...........माँ विंध्यवासिनी का यह  भजन आप सभी के लिए ............

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तुम कर दो अब कल्याण,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल-रानी
तुमने ही तो कृष्ण -रूप में ब्रज में रास रचाया
युगों युगों तक भक्त जनों के मन की प्यास बुझाया
शिव ही तो राधा बनकर ब्रज की धरती पर आए
इस प्यासी धरती पर मीठी रसधारा बरसाए

हम रस के प्यासे लोग, न चाहे भोग, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी

सारे ज्ञानी-जन कहते हैं तुम करुणा की सागर
फ़िर कैसे संसार बना है दुःख की जलती गागर
तुम हो स्वयं शक्ति जगजननी फ़िर ये कैसी माया
इस धरती पर पाप कहाँ से किसने है फैलाया

हे माता हर लो पीर, बंधाओ धीर ,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी


बिना तुम्हारे शिव शंकर भी शव जैसे हो जाते
तुमसे मिलकर शिव इस जग को पल भर में उपजाते
तुमने स्वयं कालिका बनाकर मधु-कैटभ को मारा
दुःख में डूबे ब्रह्मा जी को तुमनें स्वयं उबारा

हम आए तेरे द्वार, छोड़ संसार, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी
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यह गीत मेरे द्वारा लिखा गया और इसकी धुन तैयार की गयी । वीनस म्यूजिक कंपनी द्वारा इसे अन्य भक्ति गीतों के साथ २००३ में एक एलबम के रूप में रिलीज़ किया गया ।
इस गीत में शिव के श्री राधा रानी के रूप में अवतार लेने तथा महाकालिका के श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेने के रहस्य का वर्णन है ।
अरविंद पाण्डेय 
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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

मै पूर्ण, शून्य, सर्वत्र आज ..



नभ की अनंतता सिमट सिमट,
मुझमे है आज समाई.
मै पूर्ण, शून्य, सर्वत्र आज 
मेरी ही सत्ता छाई..

............तुम जो सोचते हो वही हो और अभी नहीं हो तो शीघ्र हो जाओगे 
........इसलिए , यह तुम पर निर्भर है कि तुम क्या होना चाहते हो ...................


अरविंद पाण्डेय 
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