गुरुवार, 31 जनवरी 2013
टूटे हुए कुछ ख्वाब, हों कुछ पूरी मुरादें,
शनिवार, 26 जनवरी 2013
अब मोहम्मद मुस्तफा तशरीफ लाये हैं.
चांदनी ने हर तरफ़ चादर बिछाए हैं
अब मोहम्मद मुस्तफा तशरीफ लाये हैं.
नूर का दरिया बहा चारो तरफ़ देखो
प्यारे पैगम्बर मोहम्मद मुस्कुराए हैं
चौदवीं के चाँद सा जो मुस्कुराते हैं
वो हमारे दिल पे छाने आज आए हैं
हर तरफ़ छाई अमन-ओ-सुकून की खुशबू
प्यारे मोहम्मद करम बरसाने आए हैं
-- अरविंद पाण्डेय
अरविंद पाण्डेय
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गुरुवार, 10 जनवरी 2013
यही वक़्त है लटका दो अफ़ज़ल गुरु भी, देश मेरे !
यही वक़्त है लटका दो अफ़ज़ल गुरु भी, देश मेरे !
आज रात ही उन्हें बता दो अपनी ताक़त, देश मेरे !
उन सब को दो, देश निकाला,जो उनके हमदर्द यहाँ,
सरकश के दर सर झुकता है जिनका,उनको,देश मेरे!
आज गांधी यही कह रहे हैं सुभाष के साथ , सुनो-
बनो नहीं अब और अहिंसक तुम, सीमा पर,देश मेरे !
अरविंद पाण्डेय
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
बंगाल में रहकर भी रवीन्द्रनाथ से अपरिचय ....
मेरा श्रृंगार , तुम्हें करता हर्षित अपार !
फिर क्यों मेरे सुन्दर मुख से कर रहे रार !
अजीब बात है ...... बंगाल में रहकर भी रवीन्द्रनाथ से अपरिचय .... कैसी विडम्बना है यह .......... अभिजित दा ने शायद गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर को ठीक से नहीं पढ़ा ..... अन्यथा
वे ये बात समझ पाते कि वे जिस डेंट-पेंट की बात कर रहे थे वह स्त्री ही नहीं पुरुष के लिए भी ,, प्रत्येक व्यक्ति के लिए ,, क्यों और कितना आवश्यक है ...........
............एक बार महात्मा गांधी , गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर से मिलने गए थे .... साथ साथ शान्तिनिकेतन-भ्रमण के लिए निकलने के पूर्व, गुरुदेव ने दर्पण के सामने खड़े होकर, अपने श्वेत कुन्तलों ,, श्वेत श्मश्रु को सौम्यता के साथ संवारा और मुखमंडल को और अधिक दीप्तिमान और निर्दोष बनाने के लिए उसके एक एक अंश को ध्यान से देखा और त्वचा को अपने कोमल कर-स्पर्श और अङ्गुलि-संचालन से और अधिक स्फूर्तिमय बनाते हुए अपने वार्धक्य की भव्यता पर स्वयं ही मुग्ध से होकर, दर्पण के सामने संस्थित से हो रहे थे ..... जब उन्हें लगा कि अब वे भव्य और आकर्षक दिख रहे हैं तब महात्मा की ओर स्मित-मत्त सा होकर देखा ... महात्मा कुछ पल स्तब्ध सा उन्हें देखते रहे और फिर बोले - इस वृद्धावस्था में इतना श्रृंगार !
....... गुरुदेव तो अपने वार्धक्य की भव्य रम्यता की मस्ती में थे ... मुस्कुरा कर देखा महात्मा की ओर फिर कहा -- यौवन होता तब श्रृंगार की इतनी आवश्यकता न थी ... .. किन्तु , वार्धक्य में इतना श्रृंगार न करें तो मेरा अल्प भी असौंदर्य, मुझे देखने वाले को व्यथित कर सकता है ,, सुंदर वस्तु या सुंदर व्यक्ति को देखकर दर्शक प्रसन्न होता है ,, इसलिए ,, अब और अधिक सुन्दर दिखने का प्रयास करता हूँ ,,, असुंदर दिखकर , किसी दर्शक को निराश कैसे करून,, किसी को निराश करना भी तो हिंसा करना ही है ... अहिंसा के लिए ही तो श्रृंगार करता हूँ मैं कि जो मुझे देखे वह प्रसन्न हो जाए ....
.............महात्मा , गुरुदेव की इस अहिंसा-वृत्ति को देख, पुनः स्तब्ध-प्रसन्नता से परिपूर्ण हो गए थे और शायद यही वह क्षण था जब महात्मा ने रवीन्द्रनाथ को गुरुदेव कहना प्रारम्भ किया था ............
अब अभिजित दा ने यह दृश्य देखा होता तो पता नहीं क्या टिप्पणी करते .............. !!
!! डेंट-पेंट !!
अरविंद पाण्डेय
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बुधवार, 26 दिसंबर 2012
माताएं बुला रहीं हैं तुमको सिहर - सिहर
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012
मगर, जो दूसरों के लब पे तबस्सुम रख दे
कृष्णं वन्दे जगदगुरुं :
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
.............भारत में प्राचीन काल से ही शुद्ध और वास्तविक समाज-सेवा को प्रसन्नता-पूर्ण जीवन जीने के आवश्यक उपायों में बताया गया था .... पञ्च-ऋण से मुक्त होने और प्रतिदिन पञ्च-महायग्य करने का विधान प्रत्येक गृहस्थ के लिए किया गया है...किन्तु अज्ञानता के कारण आज अधिकाँश लोग इन उपायों का अवलंबन नहीं करते..... किन्तु सच ये है कि
हंसी हो लब पे तो दुनिया हसीन सजती है .
खिजां, बहार सी ताज़ातरीन लगती है.
मगर, जो दूसरों के लब पे तबस्सुम रख दे,
ज़मीं , फिरदौस से भी बेहतरीन लगती है.
........................अमरीका के मनोवैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह पाया है कि जो लोग शुद्ध और वास्तविक समाज-सेवा में स्वयं को व्यस्त रखते है वे अन्य समान-स्थिति वाले व्यक्तियों से अधिक प्रसन्न और तनावमुक्त जीवन जीते हैं......
........................अब पश्चिमी देशों में भी स्वयं को प्रसन्न रखने के लिए समाजसेवा को एक औषधि के रूप में प्रयोग किये जाने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ है .....
सभी मित्रों को सुप्रभात और नमस्कार...
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अरविंद पाण्डेय
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गुरुवार, 6 दिसंबर 2012
प्रकाश-पुंज का न तो लिंग होता , न जाति होती है, न धर्म होता है..
...... मलाला यूसुफजई एक ऐसे प्रकाश-पुंज का नाम है जो न स्त्री है न पुरुष ..क्योकिं प्रकाश-पुंज का न तो लिंग होता , न जाति होती है, न धर्म होता है..
और न ही वह पूर्वाग्रह के कारण प्रकाश का वितरण करता है..
...प्रकाश समानभाव से अपनी सीमा में आने वाली सभी वस्तुओं को मुक्त रूप से आलोकित करता है..
...........मलाला को लडकी के रूप में वर्गीकृत करके, उसे शिक्षा से वंचित करने के असफल प्रयास को नहीं देखा जा सकता .. जो अशक्त और असमर्थ होगा उसके साथ यह संभावित होगा...
..........आज भी भा
रत और विश्व के अनेक देशों में करोड़ों पुरुष ऐसे हैं जो शिक्षा से वंचित किये गए हैं,, जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिल रही .. जिन्हें मज़दूरी कराने के बाद न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं देकर क़ानून का खुला उल्लंघन किया जाता है..
..............इसलिए मलाला एक स्त्री नहीं है ... उसने शिक्षा-शत्रुओं के विरुद्ध कुछ किया नहीं ..बल्कि , शिक्षा-शत्रुओं ने उसके द्वारा वितरित हो रहे प्रकाश को उसी तरह धूल फेंक कर ढकने की कोशिश की जैसे कोई मूर्ख , सूर्य की ओर धूल फेंक कर उनके प्रकाश को अवरुद्ध करने का प्रयास करता है...
आप इस कविता को ज़रूर पढ़ें...
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अरविंद पाण्डेय
बुधवार, 5 दिसंबर 2012
पुलिस द्वारा आयोजित कार्यशाला
राष्ट्रीय सहारा , पटना , ४ दिसंबर.२०१२ |
मल्टी मीडिया मोबाइल फोन आपका बहुत अच्छा दोस्त साबित हो सकता है मगर यह आपका खतरनाक दुश्मन भी बन सकता है... कुछ दिन पहले बिहार के सभी पुलिस अधीक्षकों को मैंने महिला महाविद्यालयों तथा विद्यालयों में कार्यशाला आयोजित करने को कहा था जिससे छात्र
छात्राओं में मल्टी मीडिया सेल फोन और इंटरनेट की सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सके..
राज्य के दो जिलों -- सुपौल तथा शिवहर में छात्राओं के बीच यह कार्यशाला पुलिस द्वारा आयोजित की गई जिसके अत्यंत सकारात्मक प्रभाव देखे गए..आगामी कुछ दिनों में पटना सहित एनी जिलों में भी यह कार्यशाला आयोजित की जायेगी.. इस हेतु अपने सुझाव और सलाह यदि आप सभी मित्र देगे तो हमें खुशी होगी
अरविंद पाण्डेय
सोमवार, 26 नवंबर 2012
इस खून की हर बूँद पे वतन का क़र्ज़ है.
गुरुवार, 22 नवंबर 2012
एकमेव है चन्द्र किन्तु शत - शत बन इतराता है,
महाकाश, उत्फुल्ल - धवल सागर सा लहराता है.
एकमेव है चन्द्र किन्तु शत - शत बन इतराता है.
रात्रि गहन, कल-कल, छल-छल चेतना बही जाती है.
है सुषुप्ति का द्वार खुला निद्रा अब गहराती है.
स्वप्न-हीन हो निशा, दिवस में स्वप्न बनें साकार.
आओ , ऐसा ही अद्भुत हम , रचें एक संसार.
अरविंद पाण्डेय
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