शनिवार, 8 मई 2010

तुम स्वप्न-शान्ति मे मिले मुझे-गुरुदेव रवींद्रनाथ के प्रति


तुम प्रकृति-कांति में मिले मुझे ,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

रश्मिल-शैय्या पर शयन-निरत,
चंचल-विहसन-रत अप्रतिहत,
परिमल आलय वपु,मलायागत,

तुम अरुण-कांति में मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

जब विहंस उठा अरविंद-अंक,
अरुणिम-रवि-मुख था निष्कलंक,
पतनोन्मुख  था पांडुर मयंक,

तुम काल-क्रांति में मिले मुझे ,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन .

जब ज्वलित हो उठा दिव्य-हंस,
सम्पूर्ण हो गया ध्वांत-ध्वंस,
गतिशील हो उठा मनुज-वंश,

तुम कर्म-क्लान्ति मे मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

आभा ले मुख पर पीतारुण,
धारणकर, कर में कुमुद तरुण,
जब संध्या होने लगी करुण,

तुम निशा-भ्रान्ति में मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

जब निशा हुई परिधान-हीन,
शशकांत हो गया प्रणय-लीन,
चेतनता  जब हो गई दीन,

तुम स्वप्न-शान्ति मे मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

तुम प्रकृति-कांति मे मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन..

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यह गीत मैंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रति हुई अपनी वास्तविक अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए लिखा था दिनांक ०८.१०.१९८३ को .. रवीन्द्रनाथ का जीवन मुझे अपना सा लगता है..मुझे लगता है मैं उनके साथ रहा हूँ.या मैं वही था ..बड़ी गहन अनुभूतियाँ हैं ..कभी विस्तृत रूप मे व्यक्त होंगी ही..
यह गीत मैंने ७ मई के अवसर पर आपके लिए प्रस्तुत किया  है..
ब्लॉग में अपनी टिप्पणी अवश्य लिखे आप..

----अरविंद पाण्डेय

13 टिप्‍पणियां:

  1. Very touching & meaningful words. Congratulation & Thanks for sharing.

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  2. Very touching & meaningful words. Congratulations & Thanks for sharing.

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  3. गुरुदेव का विलक्षण व्यक्तित्व ....कोई भी कवि बन जाये सहज संभाव्य है ...गहरी अनुभूतियाँ कविता में छलक कर आ रही हैं ...शुद्ध हिंदी के सुन्दर शब्दों के साथ इसकी गरिमा दर्शनीय है ...

    आभार ...!!

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  4. बहुत सरस, रोचक और प्रेरक कविता। आभार!

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  5. Pandey ji mai aap ke shabd-chayan ki dakshataa ko pranaam kartaa hoon. Adhunik Hindi Sahitya ke aap daideeptimaan sitaare hain. Aapse apeksha hai ki aap ka srijan kaushal jan samanya ko bhi satat dishe deta rahega aur jeevanoapyogi sahitya ka yeh pravaah aviral chalta rahega.

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  6. पाण्डेय जी मै आप के शब्द-चयन की दक्षता को प्रणाम करता हूँ. आधुनिक हिंदी साहित्य के आप दैदीप्तिमान सितारे हैं. आपसे अपेक्षा है कि आप का सृजन कौशल जन सामान्य को भी सतत दिशा देता रहेगा और जीवनोपयोगी साहित्य का यह प्रवाह अविरल चलता रहेगा.

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  7. Fantabulous poetry Sir........The composition of words and the beauty of words that are so specifically and substantially used is seldom seen now a days.Thanks for giving me the chance to read your poem.......I am spellbound.Thank you again.

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  8. जिसके पास सरस्वती का वास हो उसे क्या कहना पहली बार ब्लॉग पर आया मंत्रमुग्ध हो गया ....

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  9. tabiyat prassan hue,bahut dino bad koi arthpurna kavita blog per nazar aayee.dhanyavad, likhte rahiye aap jaise logo se hi hindi ko sambal mil rha hai......utkrist

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  10. pahli bar aapke blog per vichran kiya...mja aa gya....yhi kho gya....adbhut.....shabdo ka utkrist chayan..

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  11. बहुत भाव पूर्ण कविता |सुंदर शब्द चयन के लिए बधाईआशा

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