सोमवार, 21 नवंबर 2011

Mere Mehboob Tere Dam Se Aravind Pandey Sings Rafi .wmv




मेरे सुर जब भी मिलते हैं रफ़ी के सुर से , या अल्लाह !
तेरे रहम-ओ-करम की इस अदा से इश्क होता है.

--  अरविंद पाण्डेय 



रविवार, 20 नवंबर 2011

मनु बनी लक्ष्मी बाई..



मुख पर थी चन्द्र-कांति,हांथों में चमक रहा था चन्द्रहास.
डलहौजी का दल दहल दहल,पहुंचा झांसी के आसपास.
पर, मात खा गया महाराजरानी के अद्भुत कौशल से.
था किला मिला खाली-खाली,कुछ मिला नहीं था छल-बल से.

फिर, कौंध उठीं बिजली सी तात्या टोपे संग ग्वालियर में.
भीषण था फिर संग्राम हुआ, अँगरेज़ लगे पानी भरने.
पर,नियति-सुनिश्चित था कि राजरानी धरती का त्याग करें.
उनके रहने के योग्य धरा थी नहीं , स्वर्ग में वे विहरें.

मनु बनी लक्ष्मी बाई , पर वह थी शतरूपा सी मनोज्ञ .
आईं थी मर्त्य-धरा पर , पर थीं वे सदैव ही स्वर्ग-योग्य 


- अरविंद पाण्डेय

चन्द्रहास = तलवार .. 
मनोज्ञ = सुन्दर 

बुधवार, 16 नवंबर 2011

मेरी आवारगी की राह ले आती है वो मंजिल



मेरी आवारगी की राह ले आती है वो मंजिल .
कि जिसकी चाह में तड़पा किया करते हैं शाहंशाह.


मगर ये राह है ऐसी कि जिस पर जब कोई राही ,
अगर निकला तो वापस लौट,घर को फिर न आएगा..


-- अरविंद पाण्डेय 

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

Let My Love be only for You

भीष्म पर कृपा
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Mercy on Bhishma
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रति हो कितु तुम्हीं से रति हो.
गति हो किन्तु तुम्हारे प्रति हो.
क्रोध-द्वेष भी यदि हो मुझमें,
वह भी मात्र तुम्हारे प्रति हो.

इस मिथ्या संसृति के प्रति अब ,
क्रोध-द्वेष भी नहीं, विरति हो.

Let My Love be only for You.
Let my moves be only towards You.
I will be, sometime, envious,
And angry,but only with You.

The World is not to be even angry with,
Let me be only for You and You and You.

- Aravind Pandey

सोमवार, 14 नवंबर 2011

मेरा कंठ , कृष्ण की सरगम ...

जोत से जोत जगाते चलो.
( फेसबुक लिंक )
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बचपन से श्री ज्ञानेश्वर सा.
गीत यही मैं गाता था.
खिले फूल, हंसते पेड़ों को,
देख देख मुस्काता था.

लगता जैसे कण कण से 
बस कृष्ण नाम - धुन होती है.
उन्हें पूजने को,फूलों की
माला प्रकृति पिरोती है.

वे ही देख रहे आँखों से,
बोल रहे हैं जिह्वा से.
बस, वे ही बस रहे सभी में,
सब जीवित हैं बस उनसे.

--  अरविंद  पाण्डेय  

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

देवता के चरण-कमलों पर, स्वतः ही झर रहा हूँ.



पूर्णिमा - परिरंभ से मधुरिम बनी इस यामिनी में,
आज अम्बर में, किरण बन, संतरण मैं कर रहा हूँ.
युग-युगांतर से गगन जो शून्य बन,अवसन्न सा था,
आज उसकी रिक्तता, आनंद से मैं भर रहा हूँ.


पवन-पुलकित पल्लवों के बीच हंसते कुसुम सा मैं,
देवता के चरण - कमलों पर, स्वतः ही झर रहा हूँ.
अब सहस्रों सूर्य , तारक , चन्द्र मेरे रोम में हैं,
था अभी तक रुद्ध,पर,स्वच्छंद ,अब ,मैं बह रहा हूँ.


-- अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 9 नवंबर 2011

दक्षिण काली के श्री चरणों में कोटि नमन



जिनके कराल-मुख में प्रविष्ट होकर, विनष्ट होते नक्षत्र.
जो घनीभूत स्वयमेव तमोगुण किन्तु,सृजन करतीं सर्वत्र.
जिनके करूणा-कटाक्ष से मैं हूँ आप्तकाम,निष्काम,अकाम.
उन श्री दक्षिण काली के श्री चरणों में मेरा कोटि प्रणाम.

बहुत दिनों की मेरी कामना थी कि - रामकृष्ण परमहंस के लिए जीवंत किन्तु अज्ञान से ढकी हुई आँखों के लिए प्रस्तर-मूर्ति मात्र , जगन्माता दक्षिणेश्वर कालिका का, दक्षिणेश्वर जाकर, दर्शन करूं..यह मनोकामना  पूरी हुई..

गगन-मार्ग से यात्रा के क्रम में भगवान् सविता के दर्शन के अनुभव पर कुछ पंक्तियाँ कल..


अरविंद पाण्डेय 

सोमवार, 7 नवंबर 2011

आज इस बक़रीद पर कुर्बान करता हूँ उन्हें ..




जो भी नेमत तूने  बख्शी है मुझे, मेरे खुदा.
आज इस बक़रीद पर कुर्बान करता हूँ उन्हें.
हैं सभी मुफलिस, तेरे दरबार में आए हुए.
तेरी चीज़ें ही तुझे कुर्बान कर, मदहोश हैं.

सभी मित्रों को 

आत्म-बलिदान का महापर्व 

बकरीद मुबारक. 


--- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

दीपावली मेरी..



 मासूम से इक दिल में कल मैंने जलाया इक चिराग.
अजब पुरनूर सी दिखती है ये दीपावली मेरी..
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राष्ट्रीय  सहारा 
२५ अक्टूबर .२०११   



--  अरविंद पाण्डेय 

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

स्मित-वदन सविता, धरा पर



आज स्वर्णिम अमृत, मधुरिम,
 दान करने मुक्त मन से.
स्मित-वदन सविता, धरा पर,
उतर आए थे गगन से.

पर, यहाँ पर व्यस्त थे सब, 
स्वर्ण-मुद्रा संकलन में.
अमृत का था ध्यान किसको,
भक्ति थी श्वोभाव धन में.


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स्मित-वदन = जिसके चेहरे पर मुस्कान हो .
श्वोभाव = ephemeral  = अल्पकालिक -- यह शब्द कठोपनिषद में प्रयुक्त है. 
 श्वः भविष्यति न वा अर्थात जो कल रहेगा या नहीं रहेगा - यह सुनिश्चित न हो - ऐसी वस्तु 
= शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तु .



-- अरविंद पाण्डेय