मंगलवार, 15 नवंबर 2011

Let My Love be only for You

भीष्म पर कृपा
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Mercy on Bhishma
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रति हो कितु तुम्हीं से रति हो.
गति हो किन्तु तुम्हारे प्रति हो.
क्रोध-द्वेष भी यदि हो मुझमें,
वह भी मात्र तुम्हारे प्रति हो.

इस मिथ्या संसृति के प्रति अब ,
क्रोध-द्वेष भी नहीं, विरति हो.

Let My Love be only for You.
Let my moves be only towards You.
I will be, sometime, envious,
And angry,but only with You.

The World is not to be even angry with,
Let me be only for You and You and You.

- Aravind Pandey

सोमवार, 14 नवंबर 2011

मेरा कंठ , कृष्ण की सरगम ...

जोत से जोत जगाते चलो.
( फेसबुक लिंक )
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बचपन से श्री ज्ञानेश्वर सा.
गीत यही मैं गाता था.
खिले फूल, हंसते पेड़ों को,
देख देख मुस्काता था.

लगता जैसे कण कण से 
बस कृष्ण नाम - धुन होती है.
उन्हें पूजने को,फूलों की
माला प्रकृति पिरोती है.

वे ही देख रहे आँखों से,
बोल रहे हैं जिह्वा से.
बस, वे ही बस रहे सभी में,
सब जीवित हैं बस उनसे.

--  अरविंद  पाण्डेय  

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

देवता के चरण-कमलों पर, स्वतः ही झर रहा हूँ.



पूर्णिमा - परिरंभ से मधुरिम बनी इस यामिनी में,
आज अम्बर में, किरण बन, संतरण मैं कर रहा हूँ.
युग-युगांतर से गगन जो शून्य बन,अवसन्न सा था,
आज उसकी रिक्तता, आनंद से मैं भर रहा हूँ.


पवन-पुलकित पल्लवों के बीच हंसते कुसुम सा मैं,
देवता के चरण - कमलों पर, स्वतः ही झर रहा हूँ.
अब सहस्रों सूर्य , तारक , चन्द्र मेरे रोम में हैं,
था अभी तक रुद्ध,पर,स्वच्छंद ,अब ,मैं बह रहा हूँ.


-- अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 9 नवंबर 2011

दक्षिण काली के श्री चरणों में कोटि नमन



जिनके कराल-मुख में प्रविष्ट होकर, विनष्ट होते नक्षत्र.
जो घनीभूत स्वयमेव तमोगुण किन्तु,सृजन करतीं सर्वत्र.
जिनके करूणा-कटाक्ष से मैं हूँ आप्तकाम,निष्काम,अकाम.
उन श्री दक्षिण काली के श्री चरणों में मेरा कोटि प्रणाम.

बहुत दिनों की मेरी कामना थी कि - रामकृष्ण परमहंस के लिए जीवंत किन्तु अज्ञान से ढकी हुई आँखों के लिए प्रस्तर-मूर्ति मात्र , जगन्माता दक्षिणेश्वर कालिका का, दक्षिणेश्वर जाकर, दर्शन करूं..यह मनोकामना  पूरी हुई..

गगन-मार्ग से यात्रा के क्रम में भगवान् सविता के दर्शन के अनुभव पर कुछ पंक्तियाँ कल..


अरविंद पाण्डेय 

सोमवार, 7 नवंबर 2011

आज इस बक़रीद पर कुर्बान करता हूँ उन्हें ..




जो भी नेमत तूने  बख्शी है मुझे, मेरे खुदा.
आज इस बक़रीद पर कुर्बान करता हूँ उन्हें.
हैं सभी मुफलिस, तेरे दरबार में आए हुए.
तेरी चीज़ें ही तुझे कुर्बान कर, मदहोश हैं.

सभी मित्रों को 

आत्म-बलिदान का महापर्व 

बकरीद मुबारक. 


--- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

दीपावली मेरी..



 मासूम से इक दिल में कल मैंने जलाया इक चिराग.
अजब पुरनूर सी दिखती है ये दीपावली मेरी..
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राष्ट्रीय  सहारा 
२५ अक्टूबर .२०११   



--  अरविंद पाण्डेय 

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

स्मित-वदन सविता, धरा पर



आज स्वर्णिम अमृत, मधुरिम,
 दान करने मुक्त मन से.
स्मित-वदन सविता, धरा पर,
उतर आए थे गगन से.

पर, यहाँ पर व्यस्त थे सब, 
स्वर्ण-मुद्रा संकलन में.
अमृत का था ध्यान किसको,
भक्ति थी श्वोभाव धन में.


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स्मित-वदन = जिसके चेहरे पर मुस्कान हो .
श्वोभाव = ephemeral  = अल्पकालिक -- यह शब्द कठोपनिषद में प्रयुक्त है. 
 श्वः भविष्यति न वा अर्थात जो कल रहेगा या नहीं रहेगा - यह सुनिश्चित न हो - ऐसी वस्तु 
= शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तु .



-- अरविंद पाण्डेय 

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

कहना-खिंचा-खिंचा रहता है दिल,उनको कर याद..


कृष्ण-मित्र सुदामा:

कहना - श्वास श्वास में लेता हूँ उनका ही नाम.
गली-गली फिरता हूँ, मन में ही लेकर व्रज-धाम.
कहना-खिंचा-खिंचा रहता है दिल,उनको कर याद.
कहना-अब मुझको अपना लें,बस इतनी फ़रियाद...

वृदावन की यात्रा पर गए एक मित्र से सुदामा का श्री कृष्ण के लिए सन्देश :


--  अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 12 अक्टूबर 2011

महारास : नौ वर्षों की आयु कृष्ण की,सजल-जलद सी काया.



१ 

एक निशा में सिमट गईं थीं   मधुमय निशा सहस्र .
एक  चन्द्र  में  समा  रहे थे अगणित  चन्द्र अजस्र.
स्वर्गंगा का सुरभि-सलिल उच्छल प्रसन्न बहता था.
सकल सृष्टि में  महारास  का  समाचार  कहता था.

२ 
शरच्चंद्रिका निर्मल-नभ का आलिंगन करती थी.
अम्बर के  विस्तीर्ण पृष्ठ पर अंग-राग भरती थी.
तारक,बनकर कुसुम,उतर आये थे मुदित धरणि पर.
प्रभा-पूर्ण थी धरा , शेष थीं किरणें नही तरणि पर.

गर्व भरी  गति से यमुना जी  मंद मंद बहतीं थीं .
मैं  भी कृष्ण-वर्ण की  हूँ - मानो सबसे कहतीं थीं.
शुभ्र चंद्रिका,कृष्ण-सलिल पर बिछी बिछी जाती थी.
कृष्णा, आलिंगन-प्रमुग्ध, आरक्त छिपी जातीं थीं.

४ 
पृथुल पुलिन पर, पारिजात,पुष्पित-वितान करता था.
पवन, उसे कम्पित कर,कुसुमास्तरण मृदुल  रचता था.
प्रकृति,परम प्रमुदित,कण-कण,क्षण-क्षण प्रसन्न हंसता था.
आज धरा पर ,  प्रतिक्षण  में  शत-कोटि  वर्ष  बसता था.

५ 
नौ वर्षों की आयु कृष्ण की, सजल जलद सी काया.
कनक-कपिश पीताम्बर, नटवर वपु की मोहक माया.
श्रीवत्सांकित  वक्ष ,  वैजयंती   धारण  करता  था. 
कर्णिकार दोनों कर्णों में श्रुति-स्वरुप सजता था.

मस्तक पर कुंचित अलकावलि पवन-केलि करती थी .
चारु-चन्द्र-कनकाभ-किरण चन्दन-चर्चा भरती थी.
चन्दन-चर्चित चरण ,सृष्टि को शरण-दान करता था.
करूणा-वरुणालय-नयनों से रस-निर्झर बहता था.

७ 
पारिजात का भाग्य, आज उसकी शीतल छाया  में.
श्री व्रजराज तनय राजित थे, निज निगूढ़ माया में.
उधर, गगन  में चारु  चंद्रिका, नवल नृत्य करती थी.
इधर, कृष्ण के मधुर अधर - पुट पर वंशी सजती थी.

८ 
महाकाल , तब  महारास के दर्शन  हेतु  पधारे .
व्रज-वनिता का रूप , मुग्ध,साश्चर्य देव थे सारे.
व्रज-सुन्दर ने सस्मित देखा, वंशी मधुर बजाया.
क्लींकार  का  गुंज  गोपिकाओं में मात्र, समाया.

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महारास के रहस्य पर श्री कृष्ण को अर्पित मेरी  लम्बी कविता  का यह एक अंश है .. मेरी यह लम्बी कविता , मेरी आगामी पुस्तक का प्रमुख अंश होगी..

जैसे आइन्स्टीन के द्वारा देखे गए सापेक्षता के रहस्य को विश्व में बस दो-चार लोग ही पूरी तरह समझ पाते हैं , उसी तरह महारास के रहस्य को विश्व में श्री कृष्ण-कृपा-प्राप्त कुछ लोग ही, वास्तव में,  समझ पाते हैं.

महारास के समय श्री कृष्ण की अवस्था नौ वर्ष की थी ..

जिन गोपिकाओं ने महारास में भाग लिया था उनमे सभी , श्री कृष्ण से अधिकतम दो वर्ष मात्र  बड़ी थीं.

 श्री राधा जी,  श्री कृष्ण से एक वर्ष बड़ी थीं. ..


-- अरविंद पाण्डेय 

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

कोटि कोटि सूर्यों की आभा एक ज्योति में हुई प्रविष्ट

जगन्माता धूमावती -यन्त्र 


महानिशा में किया प्रज्ज्वलित माँ को अर्पित दीप,विशिष्ट 
कोटि कोटि सूर्यों की आभा एक ज्योति में हुई प्रविष्ट.
देखा सूर्य - चन्द्र को लेते जन्म और फिर देखा अंत.
देखा माँ की मधुर-मूर्ति , फिर देखा भीषण रूप , दुरंत.


सो अकामयत एकोsहं बहुस्यां प्रजायेय .. 
उन्होंने -- ईश्वर ऩे कामना की कि मैं एक हूँ , अनेक को जन्म दूं... 
और ये अनंत अपरिसीम ब्रह्माण्ड उत्पन्न हो गया.. 

पृथ्वी माता , प्रति सेकेण्ड ३० किलोमीटर की गति से , भगवान सूर्य की परिक्रमा कर रही हैं.. 
एक सेकेण्ड के लिए भी उनकी यात्रा रुकी नहीं .. जन्म से अब तक... 

क्या हम पृथ्वी पर अपने अपने अहंकार में डूबे हुए लोगो को यह  अनुभव होता है कि हम एक ऐसे पिंड पर जीवन बिता रहे हैं जो इतनी तेज़ गति से यात्रा कर रहा है अंतरिक्ष में.. 

विज्ञान कहता है की जिस दिन मनुष्य को यह अनुभव हो जाय , उस व्यक्ति की तुरंत मृत्यु हो जायेगी..

-- अरविंद पाण्डेय