१
एक निशा में सिमट गईं थीं मधुमय निशा सहस्र .
एक चन्द्र में समा रहे थे अगणित चन्द्र अजस्र.
स्वर्गंगा का सुरभि-सलिल उच्छल प्रसन्न बहता था.
सकल सृष्टि में महारास का समाचार कहता था.
२
शरच्चंद्रिका निर्मल-नभ का आलिंगन करती थी.
अम्बर के विस्तीर्ण पृष्ठ पर अंग-राग भरती थी.
तारक,बनकर कुसुम,उतर आये थे मुदित धरणि पर.
प्रभा-पूर्ण थी धरा , शेष थीं किरणें नही तरणि पर.
३
गर्व भरी गति से यमुना जी मंद मंद बहतीं थीं .
मैं भी कृष्ण-वर्ण की हूँ - मानो सबसे कहतीं थीं.
शुभ्र चंद्रिका,कृष्ण-सलिल पर बिछी बिछी जाती थी.
कृष्णा, आलिंगन-प्रमुग्ध, आरक्त छिपी जातीं थीं.
४
पृथुल पुलिन पर, पारिजात,पुष्पित-वितान करता था.
पवन, उसे कम्पित कर,कुसुमास्तरण मृदुल रचता था.
प्रकृति,परम प्रमुदित,कण-कण,क्षण-क्षण प्रसन्न हंसता था.
आज धरा पर , प्रतिक्षण में शत-कोटि वर्ष बसता था.
५
नौ वर्षों की आयु कृष्ण की, सजल जलद सी काया.
कनक-कपिश पीताम्बर, नटवर वपु की मोहक माया.
श्रीवत्सांकित वक्ष , वैजयंती धारण करता था.
कर्णिकार दोनों कर्णों में श्रुति-स्वरुप सजता था.
६
मस्तक पर कुंचित अलकावलि पवन-केलि करती थी .
चारु-चन्द्र-कनकाभ-किरण चन्दन-चर्चा भरती थी.
चन्दन-चर्चित चरण ,सृष्टि को शरण-दान करता था.
करूणा-वरुणालय-नयनों से रस-निर्झर बहता था.
७
पारिजात का भाग्य, आज उसकी शीतल छाया में.
श्री व्रजराज तनय राजित थे, निज निगूढ़ माया में.
उधर, गगन में चारु चंद्रिका, नवल नृत्य करती थी.
इधर, कृष्ण के मधुर अधर - पुट पर वंशी सजती थी.
८
महाकाल , तब महारास के दर्शन हेतु पधारे .
व्रज-वनिता का रूप , मुग्ध,साश्चर्य देव थे सारे.
व्रज-सुन्दर ने सस्मित देखा, वंशी मधुर बजाया.
क्लींकार का गुंज गोपिकाओं में मात्र, समाया.
======================
महारास के रहस्य पर श्री कृष्ण को अर्पित मेरी लम्बी कविता का यह एक अंश है .. मेरी यह लम्बी कविता , मेरी आगामी पुस्तक का प्रमुख अंश होगी..
जैसे आइन्स्टीन के द्वारा देखे गए सापेक्षता के रहस्य को विश्व में बस दो-चार लोग ही पूरी तरह समझ पाते हैं , उसी तरह महारास के रहस्य को विश्व में श्री कृष्ण-कृपा-प्राप्त कुछ लोग ही, वास्तव में, समझ पाते हैं.
महारास के समय श्री कृष्ण की अवस्था नौ वर्ष की थी ..
जिन गोपिकाओं ने महारास में भाग लिया था उनमे सभी , श्री कृष्ण से अधिकतम दो वर्ष मात्र बड़ी थीं.
श्री राधा जी, श्री कृष्ण से एक वर्ष बड़ी थीं. ..
-- अरविंद पाण्डेय
व्रज-सुन्दर ने सस्मित देखा, वंशी मधुर बजाया.
क्लींकार का गुंज गोपिकाओं में मात्र, समाया.
======================
महारास के रहस्य पर श्री कृष्ण को अर्पित मेरी लम्बी कविता का यह एक अंश है .. मेरी यह लम्बी कविता , मेरी आगामी पुस्तक का प्रमुख अंश होगी..
जैसे आइन्स्टीन के द्वारा देखे गए सापेक्षता के रहस्य को विश्व में बस दो-चार लोग ही पूरी तरह समझ पाते हैं , उसी तरह महारास के रहस्य को विश्व में श्री कृष्ण-कृपा-प्राप्त कुछ लोग ही, वास्तव में, समझ पाते हैं.
महारास के समय श्री कृष्ण की अवस्था नौ वर्ष की थी ..
जिन गोपिकाओं ने महारास में भाग लिया था उनमे सभी , श्री कृष्ण से अधिकतम दो वर्ष मात्र बड़ी थीं.
श्री राधा जी, श्री कृष्ण से एक वर्ष बड़ी थीं. ..
-- अरविंद पाण्डेय
आपसे अनुरोध है कि आप इसी तरह यहाँ हमे ब्लोग पर ही पूरी पढवा दीजिये…………चाहे थोडी थोडी ही लगायें…………आपने सही कहा ये सिर्फ़ उसे ही समझ आ सकता है जिसे वो समझाना चाहता हो या जिसने इस गूढ रहस्य को जाना हो…………गोपी तो एक भाव है जिसमे कृष्ण समाया है वरना उससे अलग तो कुछ भी नही……………वो ही गोपी वो ही कृष्ण फिर दोनो मे अन्तर कैसा………………आजकल मै भी कृष्ण लीला लिख रही हूँ यदि फ़ुर्सत मिले तो देखियेगा ब्लोग का लिंक दे रही हूँ।
जवाब देंहटाएंhttp://ekprayas-vandana.blogspot.com
पृथुल पुलिन पर, पारिजात,पुष्पित-वितान करता था.
जवाब देंहटाएंपवन, उसे कम्पित कर,कुसुमास्तरण मृदुल रचता था.
अद्भुत भाव व शब्द संयोजन।
आया तो था कविता के लिए कुछ लिखने ............किन्तु ये केवल "कविता" ही कहाँ रह गयी ...ये तो कृष्णकन्हैया के आराधना की पंक्ति गुणगान की ......बहुत कुछ ...क्या लिखूँ..शब्द साथ नहीं दे रहे ......मेरी तरफ से एक यही कमेन्ट ......हरेकृष्ण हरेकृष्ण ||
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना,भक्तिभाव से ओत-प्रोत,बधाई !
जवाब देंहटाएं'गर्व भरी गति से यमुना जी मंद मंद बहतीं थीं .
जवाब देंहटाएंमैं भी कृष्ण-वर्ण की हूँ - मानो सबसे कहतीं थीं.'
भावपूर्ण अभिव्यक्ति की अद्भुत कला श्री कृष्ण कृपा का महा प्रसाद है।.........आपको बधाई !
अद्भुत अनुपम प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं