संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ
यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा.
नरेंद्र मार्गाट्ट इव प्रपेदे
विवर्णभावं स स भूमिपालः
राजमार्ग-संचरण कर रही दीप शिखा सी, इंदुमती.
वरण हेतु आए जिस वर को छोड़,बढ़ चली, मानवती.
उस नरेंद्र का हुआ मुदित मुखमंडल,सद्यः कांति-विहीन.
दीपशिखा-रथ बढ़ जाने से पथ-प्रासाद हुआ ज्यों दीन.
कालिदास की सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वरमणीय उपमा का उदाहरण-
यह देवी इंदुमती के स्वयंवर का वर्णन है रघुवंश का.
वे वरमाला लेकर वर के वरण हेतु संचरण कर रही हैं..............................शेष आप दृश्य को अपनी चेतना में रूपायित करें और सहृदय-हृदय-संवेद्य रस-स्वरुप होकर , अलौकिक आनंद का भोग करे..