मंगलवार, 26 जुलाई 2011

लोध्र पुष्प-रज से राधा का करते केशव श्रृंगार.


वृन्दावन के निभृत कुञ्ज में श्री राधा-वनमाली .
स्वच्छ शिला पर बैठे थे , छाया करती थी डाली.
लोध्र पुष्प-रज से राधा का करते केशव श्रृंगार.
योगी थे साश्चर्य , देख , योगेश्वर का व्यापार .


प्राचीन काल में लाल रंग के लोध्र पुष्प के पराग के लेप से मुख का श्रृंगार किया जाता था.
कालिदास ऩे मेघदूत में लिखा है:

नीता लोध्रप्रसवरजसा पांडुतामानने श्री: 


निभृत = एकांत.
साश्चर्य = आश्चर्य से युक्त. 







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5 टिप्‍पणियां:

  1. अनन्य प्रेम व्यापर ...
    हर्षित नयन अपार...!!

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  2. आपकी महिमा अपरम्पार हैं , भगवान श्री कृष्ण का सुंदर विवरण --!!

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  3. satwik prem ki gahri anubhuti...man pe chha gayi ye panktiyan...or sabse badhkar manas patal pe sirf or sirf satwikta ka ehsaas hota hai.....apke blog ko padhne ka or apke geeton ko sunne ka adbhut anand hai....jai sri krishna

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