आदमी बस चल रहा है.
यह बिना जाने
कि जाना है कहाँ , कैसे , किधर,
वक़्त उसका बेवजह ही ढल रहा है.
आदमी बस चल रहा है.
खुद उसी की आरजू ने
आग दिल में जो लगाईं,
वह उसी दोज़ख में बेबस ,
रात दिन बस जल रहा है.
आदमी बस चल रहा है.
-- अरविंद पाण्डेय
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दोज़ख = नरक
कहीं कोई तो
जवाब देंहटाएंपथ का उजाला,
बनकर आता।
उत्कृष्ट ही नहीं, अति रोमांचक कविता "आदमी बस चल रहा है"........ ...
जवाब देंहटाएंआदमी चलते चलते यदि पल भर भी रुक कर सोचे तो उसे अपना श्रम व्यर्थ जान पडेगा इसी डर से वह बस चलता ही जाता है....
जवाब देंहटाएंचलने की चपलता ही जीवन का आरंभ है।
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