जो लाखों लोग हिफाज़त तुम्हारी करते हैं.
कड़कती धूप, ठण्ड, शीतलहर सहते हैं.
तुम जिनके दम पे अब लेते हो दम आज़ादी का.
उन्हें भी देखना किस हाल में वो रहते हैं.
अगर अवाम के तन पर नहीं कपडे होंगे,
अगर गरीब हिन्दुस्तान के भूखे होंगे.
समझ लो फिर ये आज़ादी अभी अधूरी है.
अभी मंजिल में और हममे बहुत दूरी है.
अगर बारिश हो तो हर शख्स नाच नाच उठे .
अगर जो शाम ढले, सबके दिल में गीत उठे.
सभी बेख़ौफ़ घूमते हों रात , राहों में.
हर एक दिल हो यहाँ इश्क की पनाहों में.
हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.
हर एक शख्स में जब शायराना मस्ती हो.
हर एक शय खुद अपने आपमें जब हस्ती हो.
तभी आज़ादी का सपना मेरा पूरा होगा.
ज़रा भी कम जो मिले, लक्ष्य अधूरा होगा.
अरविंद पाण्डेय
बस वही हिन्दोस्ताँ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अति उत्कृष्ट देशभक्ति की कविता हैं ....जय हिंद !!!!!
जवाब देंहटाएंbahut sunder vichar .Kartavya path par badhe chalen.
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen.
http://anupamassukrity.blogspot.com/
आमीन !सुंदर देशभक्ति के भावों से ओतप्रोत कविता!
जवाब देंहटाएंसही मायनों में आज़ादी हो , अब हर भारतीय की यही पुकार है ..
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता !