मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010

निष्काम-कर्म की मधुशाला .


वृन्दावन में जिन चरणों से,
लहराई रस की हाला.

जिनका चिंतन,स्मरण कर रहा,
प्रतिपल मुझको मतवाला.

गया धाम के उन्हीं विष्णुपद
को मैं अर्पित करता हूँ.

अपने निस्पृह,नित्यशुद्ध
निष्काम-कर्म की मधुशाला.
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श्री गया धाम का श्री विष्णुपद मंदिर.. 
सजल इन्दीवर सदृश  सुकोमल एवं पुष्कल, त्रिविक्रम श्री भगवान वामन के सर्व-काम-प्रद श्री चरण का प्रतिमान इस मंदिर में सुशोभित है.. इस विशाल मंदिर में ही श्री कृष्ण का एक छोटा सा मंदिर है जिसमें उनकी अतिशय सम्मोहक कृष्णवर्णा प्रतिमा विराजमान है.
मैं, गया में २००६ के प्रारंभ में, डी आई जी मगध क्षेत्र के रूप में  पदस्थापित हुआ.बिहार में कार्यरत होने के बाद, वासना थी मन में कि गया में  रहूँ कुछ दिनों तक और श्री महाविष्णु के श्री चरणों का और श्री महाबुद्ध के मनोहर मुख  का बारम्बार दर्शन कर सकूं..तो यह वासना पूर्ण हुई बिहार में २००५ से प्रारम्भ हुए सुशासन मे .. 
गया-पदस्थापन का एक ईश्वरीय लक्ष्य भी था कि मेरे माध्यम से २००२ में औरंगाबाद जिले के धावा रेलवे पुल पर अपराधियों द्वारा गिराई गई राजधानी एक्सप्रेस के अपराधियों को सामने लाया जा सके..
इस मानव-कारित दुर्घटना जैसे महा-अपराध में लगभग १५० निर्दोष रेल-यात्री मृत्यु को प्राप्त हुए थे और इस अपराध में अंतर्लिप्त अपराधियों को तत्कालीन पुलिस ने बचा लिया  था ..चूकि दूसरा कोई यह कार्य कर नहीं सकता था इसलिए नियति-प्रेरित कार्यकारी प्रधान के माध्यम से, ईश्वर द्वारा, मेरे गया-पदस्थापन की योजना क्रियान्वित कराई गई..इस प्रकरण को विराम..लंबा है ..कभी विस्तार से कहना ही है ब्लॉग में.
श्री विष्णुपद मंदिर का ऐतिहासिक माहात्म्य भी विलक्षण है.. भगवान चैतन्य को प्रथम बार भाव-समाधि इसी मंदिर में हुई थी..वे श्री चरणों का दर्शन करते खड़े थे मंदिर में..श्री चरणों की आरती की जा रही थी और उनके माहात्म्य से सम्बंधित संस्कृत के छंद उच्चारित किये जा रहे थे वहां के पुरोहित द्वारा..
उस स्तुति को सुनते सुनते निमाई तन्मय होने लगे और समाधिस्थ होकर गिर गए.. कुछ देर तक उस परम दुर्लभ ब्रह्मानंद में मग्न रहे ..
ज्ञाता , ज्ञेय, ज्ञान की त्रिपुटी विलुप्त थी..शेष  था मात्र परम चिन्मय आनंद..
इस घटना के बाद ही वह भाव-समाधि उन्हें बारम्बार होने लगी और परम नैय्यायिक  निमाई, दिव्य-रस-धारा प्रवाह के प्रवर्तक बने.. 
भक्ति-भागीरथी के इन  भगीरथ भगवान चैतन्य का जन्म-स्थल यही विष्णुपद मंदिर है ..और मेरा सौभाग्य कि मुझे और मेरी पुत्रियों और पत्नी को, प्रतिदिन तक  भी , श्री चरणों के दर्शन का अवसर मिल पाया..
इस मंदिर में श्री कृष्ण के लघु मंदिर के निकट भगवान् श्री रामकृष्ण परमहंस के पिताश्री एवं माताश्री, गया तीर्थयात्रा के क्रम में , सो रहे थे..यहीं उन्हें स्वप्न-सन्देश प्राप्त हुआ था कि श्री भगवान् उनके पुत्र के रूप में आगमन कर रहे हैं..यहाँ से जाने के बाद गदाधर का  जन्म हुआ जो बाद में भगवान् रामकृष्ण परमहंस के रूप में   रूपांतरित हुए.
इस प्रकार इस मंदिर से ही भारत की उन  दो दिव्य ज्योतियों का प्रज्ज्वलन हुआ जिन्होंने अपने हृदय और मस्तिष्क  की शक्तियों से पूरे विश्व को प्रभावित कर रखा है और आगामी सहस्राब्दियों तक प्रभावित रखेगीं .
गया की और संस्मृतियाँ हैं जो बाद में..
श्री कृष्णार्पणमस्तु 

----अरविंद पाण्डेय

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