शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

तुम सो जाओ ...


तुम सो जाओ

कि वक्त की सर्दी में
सिकुड़ती हुई मेरी किस्मत भी
अब सोने को है ।

तुम सो जाओ

कि कुहासे के धुंध से ढके हुए
तुम्हारी यादों के फूल
तुषार के आंसुओं में
अब रोने को हैं ।

तुम सो जाओ

कि ख़ुद की ही खूबसूरती से
बेपनाह माहताब
स्याह बादलों की परछाईं में
ख़ुद से ही ख़ुद को डुबोने को है ।

तुम सो जाओ

कि कहकशा की खामोश गहराई में
पिघलकर बेजार बहती हुई
सितारों की मायूस रोशनी भी
अब अपना नूरानी वजूद
खोने को है ।

तुम सो जाओ

कि तुम्हारी साँसों से सरककर बिखरी हुई
महक से प्रफुल्लित
दिलकश सवेरा
अभी बहुत देर से होने को है ।

तुम सो जाओ ...

तुम सो जाओ .....



----अरविंद पाण्डेय

6 टिप्‍पणियां:

  1. तुम सो जाओं, मगर जग जाना मेरे मुकद्दर के साथ-साथ। लेकिन इस पल का आना तो अभी बाकी है। एहसास की बेहतर तस्वीर पेश कर रही है आपकी रचना। manzilaurmukam.blogpost.com

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  2. अरविन्द जी नमस्कार,
    पहली दफा पढ़ा आपको बेहद उम्दा रचना पढ़ने को मिली ... बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई कुबूल करें...


    अर्श

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  3. syah raat mein, faily thi ujli chandni....aur thee neervta ko cheerti kuchh khamosh chheekhe ....itne mein madhur ek ttn sunai di mujhko ....sulane ki maddhim lori sunai di mujhkao ...shayad aa jaye ab neend ke thehre hain kuchh pal...aa jaye mujhko chain...ke bas ab subh hone ko hai.... shashi bala

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  4. jade ki abhisapt kohre main lipti subah ko
    nikal pada hoon manzil kayam karne
    andhere main chalte -chalte -chalte-chalte thak gaya
    ab, ruk kar sustana chahta hoon
    par yaad aata hai manzil pane ka maksad
    aur bach khuch urja samet chal pada fir se
    aage chalte -2 chaurahe par ja pahuncha
    kuppa andhkar main har rasta ek sa dikhta hai , kahan jau? kahan jau? kahanjau?

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