बुधवार, 17 दिसंबर 2008

अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए ..




तुम रखा करते हो अक्सर,जिनके सर सोने का ताज
कह रहा है मुल्क उनका सर कुचलना चाहिए

हो जिन्हें अब फिक्र अपनी औ ' वतन के शान की
सोनेवाले उन सभी को जाग उठाना चाहिए

दिल में हो ईमान ,बाजू में हो लोहे की खनक
ऐसे ही रहवर के सर पर ताज रखना चाहिए

जिनके आगे तुम खड़े हो सर झुकाए , कांपते
उनका सर , फांसी के फंदे पर लटकाना चाहिए

आज जिनके सर की कीमत सिर्फ़ कौडी भर बची
उनके आगे अब कभी ये सर झुकना चाहिए

इक तरफ़ हो घुप अँधेरा इक तरफ़ दरिया- ए- नूर
अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए


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अरविंद पाण्डेय

6 टिप्‍पणियां:

  1. आतंक के अंधेरों के खिलाफ रौशनी हैं आपके शब्द। देश के लिए दीवानगी पैदा करती है आपकी रचना। http://manzilaurmukam.blogspot.com/

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  2. one gets a glimpse of revolution in your poems.I remember one poem of Ramdhari singh Dinkar:-
    kshma shobhti us bhujang ko jiske pass garak ho
    usko kya jo danthin vish hin vinit saral ho

    Carry on and be our torch-bearer

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  3. main jab bhi apka poem padhta hoon to main soch mein par jata hoon ki this is the right way. but ur too good, keep it up

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  4. Arvindji namaskar;
    sanyogvash mujhe aapki poem padhne ka mauka mila. ek bar mujhe yakin hi nahi hua ki koi policevala apne aapme itni savednaye rakhta hai. baharhal jankar khusi hui ki rojana ki bhagdaur ke bad bhi aap apni kala se jag ko do char kara rahe hai. aapne dil chhu lene vali rachnaye ki hai. kabhi milne ka mauka mila to aapki kavitaye sununga. thanks
    Niraj Pandey
    Reporter
    Hindustan New Delhi
    mob- 9911774646
    niraj.poo@gmail.com

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  5. arvind sir...kya yeesa..ho sakta..hai...?sab log sirf sochte hai but kare gha koun?ho sakta hai..karnewale ke...shabdh...he...tut ke..bhikar ghaye.....

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  6. आप कि कविताये उच्च कोटि से सुसजित है
    जब अर्थ लगाया जाता है तो कई अर्थ निकलते है
    या भाब समझ में आने पर व्यक्ती भावः बिभोर हो जाता है

    सार भरी कविता के लिए ध्नायाबाद
    कुछ तिप्कल सब्द के अर्थ भी साथ दे दीया करे
    सध्न्य्बाद

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