गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

मेरे घर का छोटा आँगन


हरसिंगार,रजनीगंधा के 
वृक्ष बने हैं मधुबाला .

मृदु-समाधि में धीरे धीरे,
ले जाती सुगंध-हाला .

कभी किसी के द्वार न जाता ,
मैं मधुरिम मधु पीने को,

मेरे घर का छोटा आँगन
ही है मेरी मधुशाला.

-- अरविंद पाण्डेय 

सोमवार, 28 नवंबर 2011

मेरी खुद की मधुशाला


नहीं बनाया कभी किसी ने,
अपनी मर्जी की हाला.

अपना कह कर सभी पी रहे,
किसी दूसरे का प्याला.

किन्तु, हाथ में मेरे, जो तुम 
देख रहे हो चषक नया,

उसे भेजती, हर दिन, मुझ तक,
मेरी खुद की मधुशाला.

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चषक = प्याला 

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ऋषयो मन्त्र द्रष्टारः  

उपनिषद् कहते हैं की ऋषियों ने मन्त्रों का दर्शन किया , उन्हें लिखा या उनकी रचना नहीं की जैसे कवी या लेखक करते हैं.. यह व्यवहार में भी देखा जाता है  कि जो जिस कवि या लेखक में अनुभूति जितनी ही गहन होती है उसकी कविता या साहित्य उतना ही प्रभाव उत्पन्न करता है .. 
सदा से ही अधिकांश धर्म के प्रवाचकों में स्वयं के अनुभव का अभाव रहता है.. वे किसी तथाकथित गुरु या सम्प्रदाय के ग्रंथों को पढ़कर या याद करके उसे ही लोगो को सुनाया करते हैं और लोग उनका अनुकरण करना प्रारम्भ कर देते हैं .. 
मेरी उपर्युक्त कविता इसी भाव को प्रस्तुत करती है...

मानो '' हाला '' वह अनुभूति है जो किसी साधना से साधक को प्राप्त होती है..
 '' किसी दूसरे का प्याला '' का अर्थ दूसरे संत द्वारा अनुभव किया गया ज्ञान .. 
अधिकांश कथित संत या धर्म-प्रवक्ता किसी दूसरे के अनुभव को ही बताते हैं... 
'' मेरी खुद की मधुशाला '' मेरी आत्मा , मेरा अपना अनुभविता .. 
जो मैं स्वयं हूँ.. 

सोऽहं ! 
सोऽहं ! 
सोऽहं ! 

-- अरविंद पाण्डेय 

रविवार, 27 नवंबर 2011

अब मेरी है मधुशाला ..

२७ नवम्बर 

पान किया जब छक कर मैंने ,
बच्चन की यह मृदु हाला.

बुझा ह्रदय का ताप, बन गया ,
मैं भी मधु का मतवाला .

अब तो जग को भूल, मग्न हूँ,
मैं ,मय के मृदु सागर में,

और किसी की नहीं विश्व में,
अब मेरी है मधु शाला. 

आज श्री हरिवंश राय बच्चन के जन्म दिवस पर, मैं अपने द्वारा १५ वर्ष की उम्र में लिखे गए  उस छंद को प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मैंने अपने पिता जी द्वारा दी गई  '' मधुशाला '' के प्रथम पृष्ठ पर अंकित किया था.. 

--- अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 26 नवंबर 2011

Learn to Respect the Protectors


२६ नवम्बर 
आहत   ताज
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जीना है यदि स्वाभिमान से , 
पीना है मधुरिम हाला.

रक्षक का सम्मान सुरक्षित
 रक्खे हर पीने वाला.

जिस जिस मदिरालय में ऐसा
नहीं हुआ, तो फिर सुन लो.

भक्षक के कब्ज़े में होगी 
जल्दी ही वह मधुशाला.

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पुलिस वह रक्षक-संगठन है जो प्रतिदिन , रात-दिन ,हमारी रक्षा में तत्पर रहता  है ..अपनी लाख कमियों के बावजूद, पुलिस ही है जो ताज होटल  और ताजपोशी के सपने के साथ जी रहे लोगों की और बिना सोचे समझे ताजपोशी किसी की भी कर देने  वाले आम लोगो की रक्षा करती है.. 
हम भारत के लोगों को चाहिए कि हम अपने रक्षकों का भी सुखद जीवन सुनिश्चित करें और उन्हें सम्मान देना सीखें ..इसके लिए हमें चाहिए कि हम पश्चिम के विकसित देशों में पुलिस को दी जा रही सुविधाओं और सम्मान समतुल्य ही अपने देश में भी पुलिस को वही सुविधाएं और सम्मान दें... 

-- अरविंद पाण्डेय 

सोमवार, 21 नवंबर 2011

Mere Mehboob Tere Dam Se Aravind Pandey Sings Rafi .wmv




मेरे सुर जब भी मिलते हैं रफ़ी के सुर से , या अल्लाह !
तेरे रहम-ओ-करम की इस अदा से इश्क होता है.

--  अरविंद पाण्डेय 



रविवार, 20 नवंबर 2011

मनु बनी लक्ष्मी बाई..



मुख पर थी चन्द्र-कांति,हांथों में चमक रहा था चन्द्रहास.
डलहौजी का दल दहल दहल,पहुंचा झांसी के आसपास.
पर, मात खा गया महाराजरानी के अद्भुत कौशल से.
था किला मिला खाली-खाली,कुछ मिला नहीं था छल-बल से.

फिर, कौंध उठीं बिजली सी तात्या टोपे संग ग्वालियर में.
भीषण था फिर संग्राम हुआ, अँगरेज़ लगे पानी भरने.
पर,नियति-सुनिश्चित था कि राजरानी धरती का त्याग करें.
उनके रहने के योग्य धरा थी नहीं , स्वर्ग में वे विहरें.

मनु बनी लक्ष्मी बाई , पर वह थी शतरूपा सी मनोज्ञ .
आईं थी मर्त्य-धरा पर , पर थीं वे सदैव ही स्वर्ग-योग्य 


- अरविंद पाण्डेय

चन्द्रहास = तलवार .. 
मनोज्ञ = सुन्दर