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शुक्रवार, 13 जुलाई 2012
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी
आँखे खुली रहना ही नहीं जागना हुआ,
आँखें जो हकीकत से रूबरू, तो फिर क्या बात !
अक्सरहाँ खुली आँख से सोते हैं यहाँ लोग.
उनके लिए तो दिन यूँ गुज़रता है जैसे रात.
© अरविंद पाण्डेय
1 टिप्पणी:
Smart Indian
19 जुलाई 2012 को 3:12 am बजे
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