शनिवार, 21 मार्च 2009

तुझसे ही बनेगी मेरी किस्मत तू जान ले

तुझसे ही बनेगी मेरी किस्मत तू जान ले
तुझको ही चुनेगी मेरी किस्मत तू मान ले
अब तू न यूँ खामोश रह कुछ बोल तो ज़रा
गर मान नही दे तो अब मेरी ये जान ले


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आजकल कविता के लोकतांत्रिकीकरण के कारण ,
श्री मैथिली शरण गुप्त के शब्दों में -
''कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है ''
की स्थिति बन गयी है ..
उर्दू साहित्य ने अपनी गरिमा
को सुरक्षित रखा है ॥
उर्दू के एक शेर पर करतल-ध्वनि से
आकाश गुंजित हो उठता है ॥Align Left
यह इसलिए क्योंकि वहाँ छंदमुक्त कविता
को प्रश्रय नहीं मिला ..
...जिससे हर किसी का कवि बनना
सहज संभाव्य नहीं हो पाया ..

----अरविंद पाण्डेय

गुरुवार, 12 मार्च 2009

कृष्ण-प्रेम ही शाश्वत सुमधुर




कृष्ण-प्रेम ही शाश्वत सुमधुर
क्षण-जीवी है लौकिक प्रेम
प्रेम धरा पर कैसे सम्भव
है जिसका क्षण-भंगुर क्षेम

श्री राधा के चरण-चिह्न पर
नतमस्तक हूँ मै - अरविंद
होली पर्व सजा लाया है
मेरे लिए अतुल - आनंद

नीलकमल-श्रीकृष्ण-चरण में
अर्पित किया ह्रदय का फूल
केसरिया हो गया चित्त जब
दिखा कृष्ण का पीत-दुकूल


रंग नहीं , सत्कर्म, शक्ति वह
जो जीवन में रंग भरे
जीवन बहुरंगी करना यदि
आओ हम सत्कर्म करें ..

द्वेष , क्रोध का कलुष नहीं यदि ,
ह्रदय प्रेम से हो परिपूर्ण ..
फिर होली के लिए नहीं
आवश्यक किसी रंग का चूर्ण ..

स्नेह-सलिल में घुला हुआ हो
लाल रंग बन पावन प्रेम
जिह्वा , नयन बनें पिचकारी
बरसे सतत चतुर्दिक प्रेम ..


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----अरविंद पाण्डेय