गुरुवार, 1 सितंबर 2011

हरतालिका तृतीया के महापर्व पर : मैं तो बनूगी शिव की पुजारन:नंदिता पाण्डेय के स्वर में.



हरतालिका तृतीया :

सकल विश्व की माताओं को सतत प्रणाम !!!

कालिदास का यह छंद मुझे अत्यंत प्रिय है और मेरे द्वारा किया गया  इसका अनुवाद भी  मुझे अतिशय प्रिय है..आप सभी इसे ज़रूर पढ़ें और अपने विचार लिखें .

कुमार संभव में कालिदास :

तं वीक्ष्य वेपथुमती सरसांगयष्टिः
निक्षेपणाय पदमुद्ध्रितमुद्वहन्ती
मार्गाचलव्यतिकराकुलितेवसिन्धु:
शैलाधिराजतनया न ययौ न तस्थौ.

मेरा अनुवाद:

उन्हें देखकर पुलक-सुगन्धित,कम्पितदेह शिवानी.
तत्पर जो अन्यत्र गमन को,शिव-सरसांग भवानी.
पथ-स्थित-अचलारुद्ध नदी सी आकुल,पर,आनंदित.
न तो स्थित रहीं न तो कहीं अन्यत्र हो सकीं प्रस्थित.

यह दृश्य उस समय का है जब शिव-प्राप्ति हेतु किया जा रहा जगन्माता पार्वती का तप पूर्णप्राय हो चुका होता है.भगवान शिव, वटु-वेश में वहां आते हैं और शिव-निंदा करते हुए पार्वती को तप से निवारित करने का प्रयास करते हैं..पहले तो माता उन्हें तर्क से परास्त करने का प्रयास करतीं हैं.किन्तु, वे रुकते नहीं..पुनः कुछ कहना चाह रहे होते हैं..माता अपनी सखियों से कहती हैं-

निवार्यतामालि किमप्ययं वटु: 
पुनः विवक्षु: स्फुरितोत्ताराधर:
न केवलं यो महतोSपभाशते
शृणोति तस्मादपि यः स पापभाक.

इतना कह कर वे अपना पैर वहां से हट जाने के लिए उठाती ही हैं कि वटु-वेशधारी सदाशिव उनके सामने प्रकट हो जाते हैं..उस समय माता की जो स्थिति होती है उसी का वर्णन कालिदास ने उक्त छंद मे किया है जो सम्पूर्ण विश्व-साहित्य के सर्वोत्तम काव्य में माना जाता है.भारतीयों द्वारा ही नहीं , भारतविद्या के जर्मन, अंग्रेज,आदि विद्वानों द्वारा भी.

कुमारसंभवं का यह प्रसंग मेरे पिता जी बचपन से ही मुझे सुनाया करते थे.

इतना सरस प्रसंग -- वह भी अपनी माता और पिता का प्रेम प्रसंग ..कितना समाधिकारक है यह..

आज माता के पर्व पर यह प्रस्तुत करने की इच्छा हुई






अरविंद पाण्डेय 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपको गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई | बहुत सुन्दर कथन |

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  2. अति सुंदर स्वर में बहुत ही सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति .जय श्री गणेशाय: नमः .जय माँ दुर्गा जी ..जगतपिता भगवान शिव हमपर भी अपनी असीम कृपा बनाये , ॐ नमः शिवाय:

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  3. ye dekh kar hardik prasannta hui ki kalidas padhne wale aur ras lene wale sudhi jan ke bare mein pata chala

    looking forward to more from kavi kalidas

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