रविवार, 28 दिसंबर 2008

तू समझना मैंने तुझे चुपके से छुआ है..

ये कुरबतें ये दूरियां तो दिल की जानिब हैं
दिल है करीब तो करीब , दूर है तो दूर ,

दिल में तेरे जो बात मेरी याद से उठे
तू समझना मैंने करीब होके कुछ कहा

गर ,सामने महका हुआ इक गुल दिखाई दे
तू समझना वो महक मेरे दिल से उठी है

गर , मनचला सा कोई झकोरा हवा का हो
तू समझना बेताब मेरा दिल मचल उठा

गर, आसमां में चाँद , कुछ शर्मा के खिला हो ,
तू समझना मैंने तुझे चुपके से छुआ है

जब तू नही हो पास तो कुछ और पास से ,
दिल , दिल से मरासिम हो -यही मेरी दुआ है



----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

तुम मेरे दिल से गुजरना ..



तुम मेरे दिल से गुजरना
जब कभी मायूस होना
ये तुम्हारे पाँव का
मुझ पर बड़ा एहसान होगा ।

ये मेरी साँसे अभी, अक्सर
बड़ी बोझिल सी लगतीं
इनका आना और जाना
कुछ ज़रा आसान होगा ।

----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए ..




तुम रखा करते हो अक्सर,जिनके सर सोने का ताज
कह रहा है मुल्क उनका सर कुचलना चाहिए

हो जिन्हें अब फिक्र अपनी औ ' वतन के शान की
सोनेवाले उन सभी को जाग उठाना चाहिए

दिल में हो ईमान ,बाजू में हो लोहे की खनक
ऐसे ही रहवर के सर पर ताज रखना चाहिए

जिनके आगे तुम खड़े हो सर झुकाए , कांपते
उनका सर , फांसी के फंदे पर लटकाना चाहिए

आज जिनके सर की कीमत सिर्फ़ कौडी भर बची
उनके आगे अब कभी ये सर झुकना चाहिए

इक तरफ़ हो घुप अँधेरा इक तरफ़ दरिया- ए- नूर
अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए


----
अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

तू प्रणय की रागिनी बन बस गयी मेरे हृदय में....




तू नही वह देह जिसको खोजता मै
 देह हैं बिखरी हुई संसार में

तू महक मदमस्त फूलों की , जिसे पाना कठिन है
 तू चमक उस दामिनी की जिसका बुझ पाना कठिन है

तू वसंती वायु जिसका असर अब जाना कठिन है
 तू ग़ज़ल कोयल की जिसके सुर भुला पाना कठिन है

तू प्रणय की रागिनी बन बस गयी मेरे हृदय में ,
 बंद है अब द्वार सारे , अब तेरा जाना कठिन है ..


----अरविंद पाण्डेय