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रविवार, 6 मई 2012
विपश्यना थी मधुरिम मदिरा..
Labels:
बुद्ध पूर्णिमा बोधगया
Location:India
Patna, Bihar, India
मंगलवार, 1 मई 2012
शनिवार, 21 अप्रैल 2012
अब बिना रीति, तुमसे ,हे शिव ! हो रही प्रीति..
सर्वं खल्विदं ब्रह्म ..
बस एक भाव, बस एक शक्ति की है प्रतीति.
अब बिना रीति, तुमसे ,हे शिव ! हो रही प्रीति....
अद्वैत भाव की उपलब्धि ही जीवन परम ध्येय है जिसका किंचित आभास न्यूटन , आइंस्टीन जैसे श्रेष्ठ वैज्ञानिकों को जीवन के अन्तिक चरण में मिल पाता है ....... So, Good Morning and Happy This Precious Day of our lives.
रविवार, 15 अप्रैल 2012
..वरना , ये चाँद मेरे दिल से ही निकलता है..
शनिवार, 14 अप्रैल 2012
धर्म और विज्ञान-दोनों के प्रति ही अंध-विश्वास वर्जनीय
धर्म और विज्ञान-दोनों के प्रति ही अंध-विश्वास वर्जनीय है. मैं बता दूं कि मैं आज तक किसी बाबा के पास समस्या लेकर नहीं गया..हाँ, कोई संत धर्म-विज्ञान के संसार में यात्रा कर चुके हैं या नहीं -- यह जिज्ञासा रहती है मुझे..
अगर निर्मल बाबा कृपा बरसाने में अक्षम हैं तो यह उनकी अक्षमता है..जीसस क्राइस्ट कृपा बरसाते थे..और , स्टीफन हाकिंग ब्रीफ हिस्ट्री आफ टाइम में यह कहते हैं कि यदि कोई ऐसा यान बने जो प्रकाश की गति से भी अधिक गति से यात्रा कर सके तो उस बैठ कर यात्रा करने वाला व्यक्ति भविष्य में प्रवेश कर सकता है..किसी को अब हाकिंग कैसे समझाएं कि आज से २०० साल बाद जो दुनिया होगी उसे तुम देख सकते हो,, उसमे रह सकते हो , अगर ऐसा यान मिल जाय...उस दुनिया में क्या हो रहा होगा --यह अभी जान सकते हो..
विज्ञान का अंध - विश्वासी कहेगा कि '' जीसस क्राइस्ट किसी रोगी को स्पर्श द्वारा रोगमुक्त कर ही नहीं सकते थे क्योकि चिकित्सा विज्ञान ऐसा नहीं कहता.....''
धर्म का अंध-विश्वासी कहेगा कि '' हम घोड़े की नाल से अंगूठी बनाकर पहने तो संकट-मुक्त हो जायेगें..'' -- ये दोनों ही गलत और अवैज्ञानिक बात कह रहे होगें..
इस सम्बन्ध में मुझे एक आविष्कार की याद आ रही है..
वर्ष १९८८ की बात है..अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के एक वैज्ञानिक के अनुप्रयोग का विवरण मैंने वायस आफ अमेरिका से सुना था..नासा के एक वैज्ञानिक ने अपनी उंगली के इशारे से १२ फिट दूर तक के स्विच से विद्युत उपकरण को आन-आफ करने में सफलता प्राप्त की थी..
सिद्धांत यह था कि हमारे मस्तिष्क से किसी भी अंग के संचालन हेतु आदेश लेकर विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलतीं हैं जो न्यूरान - डेंड्रान-एक्जान से गुज़रती हुई उस अंग तक पहुँचती हैं..तो उंगली तक पहुचने वाली तरंगे उंगली के बाहर भी प्रवाहित की जा सकती हैं जो ईथर के माध्यम से स्विच तक पहुच सकती हैं..इस सिद्धांत के अनुसार उस वैज्ञानिक ने १२ फिट दूर के स्विच पर उंगली का इशारा करते हुए स्विच आन-आफ करके दिखाया था..अब ये बाते समझनी कठिन तो हैं ही , फिर भी पूर्वाग्रह और अंध-विश्वास से मुक्त मस्तिष्क इन्हें समझ सकता है....
अरविंद पाण्डेय
विज्ञान का अंध - विश्वासी कहेगा कि '' जीसस क्राइस्ट किसी रोगी को स्पर्श द्वारा रोगमुक्त कर ही नहीं सकते थे क्योकि चिकित्सा विज्ञान ऐसा नहीं कहता.....''
धर्म का अंध-विश्वासी कहेगा कि '' हम घोड़े की नाल से अंगूठी बनाकर पहने तो संकट-मुक्त हो जायेगें..'' -- ये दोनों ही गलत और अवैज्ञानिक बात कह रहे होगें..
इस सम्बन्ध में मुझे एक आविष्कार की याद आ रही है..
वर्ष १९८८ की बात है..अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के एक वैज्ञानिक के अनुप्रयोग का विवरण मैंने वायस आफ अमेरिका से सुना था..नासा के एक वैज्ञानिक ने अपनी उंगली के इशारे से १२ फिट दूर तक के स्विच से विद्युत उपकरण को आन-आफ करने में सफलता प्राप्त की थी..
सिद्धांत यह था कि हमारे मस्तिष्क से किसी भी अंग के संचालन हेतु आदेश लेकर विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलतीं हैं जो न्यूरान - डेंड्रान-एक्जान से गुज़रती हुई उस अंग तक पहुँचती हैं..तो उंगली तक पहुचने वाली तरंगे उंगली के बाहर भी प्रवाहित की जा सकती हैं जो ईथर के माध्यम से स्विच तक पहुच सकती हैं..इस सिद्धांत के अनुसार उस वैज्ञानिक ने १२ फिट दूर के स्विच पर उंगली का इशारा करते हुए स्विच आन-आफ करके दिखाया था..अब ये बाते समझनी कठिन तो हैं ही , फिर भी पूर्वाग्रह और अंध-विश्वास से मुक्त मस्तिष्क इन्हें समझ सकता है....
अरविंद पाण्डेय
बुधवार, 4 अप्रैल 2012
इश्क ही लिखता हर इक इंसान की तकदीर है
इश्क होता है न महलों में न तख़्त-ओ-ताज में.
इश्क तो अल्लाह के बन्दे की इक जागीर है.
क्या मिला है, क्या मिलेगा बादशाहत से किसे,
इश्क ही लिखता हर इक इंसान की तकदीर है.
अनेक मित्रों ने मुझे इश्क और मानवीय रिश्तों पर भी कवितायें लिखने को कहा है..
यहाँ मैं बता दूं कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में मैंने सैकड़ों मामले ऐसे देखे हैं जिसमें शिकायत-कर्ता और आरोपित मामला पुलिस या अदालत में दर्ज होने के पहले प्रेमी-प्रेमिका थे.. और , बस. छोटे छोटे अहंकारों, छोटी जिद, छोटे स्वार्थों के कारण एक दूसरे के दुश्मन बन गए और अपनी सारी ताकत लगाकर, यहाँ तक कि खुद को नुक्सान पहुचाकर भी उसी कथित प्रेमी या कथित प्रेमिका के पीछे पद गए जिसे कभी प्रेम की कवितायें , प्रेम के गीत सुनाया करते / करती थीं..
वास्तव में प्रेम सिर्फ ईश्वर से हो सकता है या यूँ कहें कि प्रेम सिर्फ ईश्वर ही कर सकते हैं .. यह मनुष्य के वश का नहीं.. यदि कहीं कोई मनुष्य प्रेम में हो तो वह देवता बन चुका होता है..
प्रेम मनुष्य से देवता बनने की प्रक्रिया का दूसरा नाम है -- यूँ कहें इसे और समझें तो शायद बेहतर होगा,,
© अरविंद पाण्डेय..
शनिवार, 31 मार्च 2012
श्री राम,लोक-अभिराम,सतत-निष्काम,सर्व-नयनाभिराम
जय जय श्री रामनवमी
१
१
श्रीराम,लोकअभिराम,सततनिष्काम,सर्वनयनाभिराम.
शीतल-तुषार-सिंचित-इन्दीवर-दीपित-शुभ-सर्वांग वाम.
मर्यादा-पुरुषोत्तम,निकाम-पौरुष-परिपूर्ण,पवित्र-नाम .
शतकाम-सदृश सौन्दर्यधाम,वरदान करें-मन हो अकाम.
२
अम्बर निरभ्र, तरणि-किरणों से संदीपित.
पवन , सुकोमल मधु-गंध से सुवासित है.
नवमी - मध्याह्न भौमवासर शुभंकर -तिथि ,
जन-मानस प्रमुदित, पशु-पक्षि-दल पुलकित है.
जिनके चरण-तल में शत-कोटि सूर्य-चन्द्र ,
शत शत ब्रह्माण्ड भी अनादि काल-कल्पित हैं.
वे ही अनंत, अव्यक्त अपरिमेय राम,
कौशल्या-अंक में बालक बन प्रफुल्लित हैं.
(यह सवैया छंद में रचित है )
© अरविंद पाण्डेय
बुधवार, 28 मार्च 2012
तुम्हें कौन सा कुसुम चढाऊं..
कृष्णं वंदे
तुम ही पुष्पों में परिमल बन महक रहे हो,
तुम्हें कौन सा कुसुम चढाऊं..
जिसकी सुरभि न तुम्हें मिली हो,
ऐसा फूल कहाँ से लाऊं.
तुम भास्कर बन सकल जगत को भासित करते,
तुम्हें कौन सा दीप दिखाऊं,
जो तुमको प्रकाश से भर दे ,
ऐसा दीप कहाँ से लाऊं..
श्रीजगदम्बार्पणमस्तु
© अरविंद पाण्डेय
तेरे दोनों चारु - चरण को चर्चित करूं , सजाऊँ.
शरण्ये लोकानां तव हि चरणावेव निपुनौ !
अपने हृदय-कमल के कोमल किसलय की माला मैं,
माँ तेरी सुन्दर ग्रीवा में आज मुदित पहनाऊँ,
मन्त्र-पूत प्रज्ञा का सुरभित चन्दन-राग बनाकर
तेरे दोनों चारु - चरण को चर्चित करूं , सजाऊँ.
श्रीजगदम्बार्पणमस्तु
© अरविंद पाण्डेय
शुक्रवार, 23 मार्च 2012
किताब-ए-कौम में रोशन जो निशाँ रहते हैं.
वन्दे मातरं !
23 मार्च !
जेहन में जोश हो, पर , फिर भी होश पूरा हो.
न जिसका सोज़, निशाना कभी अधूरा हो.
किताब-ए-कौम में रोशन जो निशाँ रहते हैं.
उसी को राजगुरु , सुखदेव , भगत कहते हैं.
© अरविंद पाण्डेय
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