१ जनवरी २००९
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आइए करें आराधन हम नव -वर्ष में ,
हिमगिरि की अखंड - गरिमा का ,
अम्बर की अनंत - महिमा का ,
पक्षी के कलरव से गुंजित
स्वर्णप्रभा - मंडित प्रभात का ,
किन्तु रहे यह ध्यान हमें ---
इस जीवन का एक वर्ष फिर फिसल गया ।
क्या बीते वर्षों में हमने वही किया जो करना था ?
क्या हमने जो लिए फैसले ,
वे उतरेंगे खरे , समय की
शाश्वत कठिन कसौटी पर .?
क्या हमने जो रचे जाल शब्दों , वाक्यों के ,
वे थे दीपित सतत - सत्य से , महिमा से , ऊर्जा से ?
यदि हाँ , तो फिर एक वर्ष ही नहीं ,
इस जीवन का प्रतिपल होगा सुरभित , सुन्दर ,
उत्सव से , ऊर्जा से ..
---- अरविंद पाण्डेय
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आइए करें आराधन हम नव -वर्ष में ,
हिमगिरि की अखंड - गरिमा का ,
अम्बर की अनंत - महिमा का ,
पक्षी के कलरव से गुंजित
स्वर्णप्रभा - मंडित प्रभात का ,
किन्तु रहे यह ध्यान हमें ---
इस जीवन का एक वर्ष फिर फिसल गया ।
क्या बीते वर्षों में हमने वही किया जो करना था ?
क्या हमने जो लिए फैसले ,
वे उतरेंगे खरे , समय की
शाश्वत कठिन कसौटी पर .?
क्या हमने जो रचे जाल शब्दों , वाक्यों के ,
वे थे दीपित सतत - सत्य से , महिमा से , ऊर्जा से ?
यदि हाँ , तो फिर एक वर्ष ही नहीं ,
इस जीवन का प्रतिपल होगा सुरभित , सुन्दर ,
उत्सव से , ऊर्जा से ..
---- अरविंद पाण्डेय