ओ नवाज़ !
मैं जन्म दिवस पर तुझे
बधाई देने खुद घर आया था.
तेरी माँ के चरणों में अपनी
माँ सा शीश झुकाया था .
पर, ओ नवाज़ ! तूने तो
मेरी भारतमाँ को रुला दिया.
धोखे से उसके बेटों को
सोते सोते ही सुला दिया.
मैंने तुझको समझा शरीफ,
पर, तू निकला कमज़र्फ,यार.
लड़ने का दम है नहीं, मगर,
तू लड़ पड़ता है बार बार.
अब सुन ले हमको कभी
न फिर से तू धोखा दे पाएगा.
कश्मीर-मीर रटते, तू सिंध,
बलूचिस्तान गंवाएगा .
-- अरविन्द पांडेय .
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