सत्ता के पौरुष का पर्याय पुलिस है.
पर,कौन घोलता इस अमृत में विष है.
यह शक्ति-पुंज कैसे असहाय हुआ है.
यह एवरेस्ट क्यों झुक सा अभी गया है.
षड्यंत्र घृणित दिखता जो, वह किसका है.
है सूत्रधार वह कौन, सूत्र किसका है.
विधि के शासन की गरिमा कौन लुटाता.
मर्यादा की रेखा है कौन मिटाता.
दावा करता है कौन न्याय का, नय का.
सारे समाज के शुभ का और अभय का.
वह कौन कि जिसने स्वर्णिम स्वप्न दिखाया.
पर, कर्म किया प्रतिकूल, मात्र भरमाया.
जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है.
तब तब ललनाओं का सुहाग लुटता है.
जब कर्म-कुंड की अग्नि शांत होती है.
तब दुष्टों से धरती अशांत होती है.
जब उच्छृंखल,अपवाचक लोग अभय हों.
जब सत्यनिष्ठ जन को सत्ता का भय हो.
जब श्रेष्ठ,श्रेष्ठता से मदांध सोता है.
वर्चस्व तब अनाचारी का होता है.
विधि के शासन की गरिमा तब लुटती है.
मर्यादा की सब रेखाएं मिटती हैं.
पौरुष का पर्वत भी झुक सा जाता है.
सारा समाज आतंक तले आता है.
इसलिए,अगर सम्मान सहित है जीना
आतंक का न अब और गरल है पीना .
तब नपुंसकों का बहिष्कार करना है.
क्यों बार बार, बस,एक बार मरना है.
--- अरविन्द पाण्डेय
You have said very right that the people is dying each moment due to this system.So it is better to strive to change the system even by sacrificing the life.
जवाब देंहटाएंIn your words:-
"क्यों बार बार, बस,एक बार मरना है."
You have said very right that the people is dying each moment due to this system.So it is better to strive to change the system even by sacrificing the life.
जवाब देंहटाएंIn your words:-
"क्यों बार बार, बस,एक बार मरना है."
बहुत प्रेरक पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंबिलकुल सत्य है। असम्मान की जिन्दगी से सम्मान की मौत अच्छी। जब जब अमर्यादित के हांथो में सत्ता आई है , इतिहास गवाह है पौरुष का नास हुआ है ,व्यविचार समाज के अन्दर व्याप्त हुआ है।
जवाब देंहटाएंहृदय भेदती सार्थक एवं सारगर्भित रचना ।
जवाब देंहटाएंसर पढ़ते हुए लगा की यही वर्तमान की पीड़ा है ।
आभार -
आइंस्टीन