दासोऽहं कोशलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः
राम, तुम्हारी रावण-जय का अब हो नहीं विराम.
भारत के जन जन में अब तुम प्रकट बनो, हे राम.
शुद्ध-बुद्ध-प्रतिबद्ध विभीषण का हो अब अभिषेक
स्वर्णमयी लंका का शासक हो सम्बुद्ध - विवेक .
............ प्रत्येक मनुष्य का हृदय स्वर्णमयी लंका है जिस पर अशुद्ध-राग, निजी-द्वेष, विश्वासघात, छल-छद्म, धर्म-विरुद्ध वासनाओं जैसे विकृत दश-मुख रावण का नियंत्रण बहुधा पाया जाता है...
............. स्वर्णिम लंका पर वास्तव में धर्म-सम्मत राग, अखंड विश्वास, धर्म-सम्मत कामना रूपी विभीषण का राज्याभिषेक किया जाना ही महाप्रकृति की इच्छा होती है....
...... श्री रामभद्र का धरा-अवतरण इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ ..........
............. कलिकाल में अमिताभ बुद्ध, ईश्वर-पुत्र जीसस और पैगम्बर मुहम्मद के माध्यम से उनकी वाणी पुनः अवतरित हुई और संसार को मार्ग-दर्शित किया ..........
श्री रामनवमी इसी ऋत के स्मरण का महापर्व और शुभ अवसर है.....
आप सभी मित्रों को श्री राम नवमी की शुभ कामनाएं .........
ईश्वर , सभी को अशुद्ध-राग, निजी-द्वेष, विश्वासघात, छल-छद्म, धर्म-विरुद्ध वासनाओं से मुक्त करें और
असतो मा सद्गमय की अनुकम्पा करें.....
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आप यहाँ अपने विचार अंकित कर सकते हैं..
हमें प्रसन्नता होगी...